“विचार कुम्भ हेतु सेमीनार दिनांक 26 अप्रैल 16”
भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिपेक्ष्य में महिलाओं के समग्र विकास की अवधारणा को आकार देने के लिए जन्म से ही उसे एक शक्ति-कलश के रूप में सशक्त करने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता . आशय यह कि कन्या के जन्म से ही उसे सामान्य नज़रिये से समझाने की जरूरत है . भारत में स्त्रियों को लेकर एक ऐसा विचार समाज और परिवारों में व्याप्त है कि “महिला सक्षम नहीं होती !” सच भी है क्योंकि हमने उसे सक्षम होने के अवसर दिए ही नहीं . अगर हमारा समाज और समाज की परम्पराएं नारी को “ शक्ति-कलश ” के रूप में मान्यता दे तो ये तय है कि भारतीय भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थियों में तेज़ी से सकारात्मक बदलाव आ ही जावेंगें . ऐसा कदापि नहीं है कि प्राचीनकाल में नारी शक्ति का स्रोत न थी. पर भारतीय समाज पर मध्यकालीन परिस्थितियों पर गहरा असर हुआ है . जिसके चलते महिलाओं को वैदेशिक आक्रमण से अप्रवित रखने के उद्देश्य से कुछ सीमाएं निर्धारित की गई किन्तु उनको अत्यधिक सीमित करने के कई और भी कारण सामने आते हैं . जिनमें पुरुष प्रधान सोच कहीं न कहीं प्रमुख रही है . कि