भारतीय
सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक  एवं राजनैतिक
परिपेक्ष्य में महिलाओं के समग्र विकास की अवधारणा को आकार देने के लिए जन्म से ही
उसे एक शक्ति-कलश के रूप में
सशक्त करने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता .  आशय यह कि कन्या के जन्म से ही उसे सामान्य
नज़रिये से समझाने की जरूरत है . भारत में स्त्रियों को लेकर एक ऐसा विचार समाज और
परिवारों में व्याप्त है कि “महिला सक्षम नहीं होती !”
सच भी है
क्योंकि हमने उसे सक्षम होने के अवसर दिए ही नहीं . 
   अगर हमारा समाज और समाज की परम्पराएं नारी को
“शक्ति-कलश” के रूप
में मान्यता दे तो ये तय है कि भारतीय भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक  एवं राजनैतिक परिस्थियों में तेज़ी से सकारात्मक
बदलाव आ ही जावेंगें .  ऐसा कदापि नहीं है
कि प्राचीनकाल में नारी शक्ति का स्रोत न थी. पर भारतीय समाज पर  मध्यकालीन परिस्थितियों पर गहरा असर हुआ है .
जिसके चलते महिलाओं को वैदेशिक आक्रमण से अप्रवित रखने के उद्देश्य से कुछ सीमाएं
निर्धारित की गई किन्तु उनको अत्यधिक सीमित करने के कई और भी कारण सामने आते हैं .
जिनमें  पुरुष प्रधान सोच कहीं न कहीं
प्रमुख रही है . किन्तु बदलाव समयानुसार बेहद ज़रूरी हैं  इस तथ्य को अब अधिक देर तक अनदेखा नहीं किया जा
सकता . जबकि भारत में तथा मध्य-प्रदेश में 2001 के सापेक्ष 2011  लिंगानुपात में  +10 देखा गया जबकि सर्वाधिक सकारात्मक स्थिति
चंडीगढ़ एवं दिल्ली में +45 एवं  पांडिचेरी
और मिजोरम की रही जहां  लिंगानुपात
में  +37 का अंतर देखा गया . मध्यप्रदेश की
स्थिति अभी भी बेहद नाज़ुक न होकर भी चिंतनीय अवश्य है . इसके लिए हमें कारगर कदम
उठाते हुए बालिकाओं के प्रति सोच में व्यक्तिश: नज़रिया बदल देने की आवश्यकता है .
ताकि हर नारी समग्र विकास का किसी न किसी रूप में हिस्सा बन जाएं { स्रोत- विकी}
राष्ट्र के
सम्पूर्ण विकास के लिए महिलाओं के योगदान को कम आंकना सर्वथा अनुचित है ये सच है
कि सामाजिक प्रतिरोधी व्यवस्थाओं के कारण महिलाओं का योगदान अपेक्षाकृत कम दिखाई
दिया . स्पष्ट कहें तो विकास के सन्दर्भ 
महिलाओं के योगदान का मूल्यांकन बेहद पाजिटिव रूप से रेखांकित नहीं किया
जाता . जबकि आप गंभीरता से एक परिवार की गृहणी की दिनचर्या पर गौर करें तो 
Ø गृहणी
दिनभर में घर के भीतर 50 किलोमीटर से अधिक पैदल चलती है, 
Ø 99% कार्य
महिला के हिस्से में आते हैं 
Ø
आहार-स्वास्थय के लिए उसकी प्राथमिकताएं आज भी सर्वोच्च नहीं हैं .
Ø सामान्यतया
परिवार के सामाजिक आर्थिक निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी एवं दखल का 
   प्रतिशत 25 से अधिक नहीं है 
Ø महिलाओं के
निर्णय पर पुरुष एवं परिवार के सयाने लोगों की सहमति अनिवार्य मानी जाती है
Ø बेहतर
प्रबंधक होने के बावजूद महिलाओं के प्रबंधकीय कौशल को सकारात्मक स्वीकृति नहीं 
   मिलती
       ये कुछ उदाहरण हैं जो महिलाओं की वर्तमान
स्थिति को दर्शाते हैं . जो यह समझाने के लिए पर्याप्त है  कि – “अर्थचक्र में महिला नेपथ्य में हैं ”
अत: उसे
नेपथ्य से निकाला जाना है . ताकि उसकी भूमिका को सटीक तौर पर  विकास के रडार पर रखकर नीतियाँ बनाईं जावे.
यद्यपि  ये उदाहरण बेहद पारिवारिक से  हैं 
पर  साफ़ तौर  पर 
विकास चक्र  से  सम्बंधित हैं . अत: महिला  को 
उसके  जन्म  से ही 
प्राथमिकता के  क्रम पर  रखा जाना है ताकि  विकास एवं अर्थचक्र में न केवल उसकी भूमिका को
पहचान  मिले ताकि उसके प्रति  सामाजिक नज़रिए में  सकारात्मक रूप बदलाव स्पष्ट हो . 
       सामान्यरूप से समाज में नववधुओं को
“पुत्रवती भव:” कहकर  आशीर्वाद दिया जाता
है . किन्तु  किसी में  “पुत्रीवती भव:” कहकर आशीर्वाद देने का साहस
नहीं होता . 
       “यह स्थिति  सामाजिक सोच में सकारात्मक बदलाव न आ पाने
की  सूचक है ..!!”
• कैसे बदलेगी ऐसी
परिस्थियां  ?
•कब बदलेंगी ये सोच ?
•कौन बदल सकता है ...?
कैसे बदलेगी
ऐसी परिस्थियां  ?
पुत्री के जन्म
को पुत्र के जन्म के समतुल्य माना जाकर 
दहेज़ जैसी
कुरीतियों के स्थान पर योग्यता को महत्व देकर 
 इन परिस्थितियों में  बदलाव सहज है .. 
कब बदलेंगी
ये सोच ?
 “जब जन्म देने वाले दंपत्ति के मन में  सकारात्मक सोच होगी ”
कौन बदल
सकता है ...?
समुदाय
स्वयं इस बदलाव को ला सकता है
 एक समुदाय
बदलाव लाने के लिए क्या करे 
समुदाय में
ऐसे बदलाव तेज़ी आने चाहिए इस हेतु व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं .
महिला सशक्तिकरण संचालनालय ने वैचारिक बदलाव के लिए सोशल-एक्टिव-फ़ोर्स के रूप में
शौर्या दलों का ढांचा तैयार कर दिया है . दलों को 
प्रशिक्षण की ज़रुरत को भी पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है . इन समूहों
को कार्यसंचालन के लिए 
Øवित्तीय
व्यवस्था आवश्यक है . कम से कम रूपए 5000 /- हर 6 माह के  अंतराल से देना प्रस्तावित 
Øदलों  को सतत रूप से नियमो, अधिनियमों, योजनाओं,
कार्यक्रमों की जानकारी दी जाती रहे
Øदलों को एक
एन जी ओ के रूप में पंजीकृत करना 
Øदलों  को स्व सहायता समूह के रूप में विकसित करते हुए
उनको कम से कम एक आर्थिक गतिविधि जैसे सेनेटरीनेपकिंस के उत्पादन , शासकीय
कार्यक्रमों में भोजन प्रदायक इकाई के तौर विकसित किया जा सकता  है . 
          शौर्या-दलों को उत्पादक अथवा विपणन
{मार्केटिंग} इकाई बनाकर उसे निजी एवं संस्थागत आय प्राप्त कराने से शासकीय अनुदान
का प्रतिशत प्रारम्भिक रूप से प्रस्तावित 
राशि से आधा किया जा सकता है . 
Ø
लिंगानुपात नकारात्मक न हो इस हेतु लिंग परीक्षण को कठोरता से रोकना
होगा.  इस हेतु  हमारे “शौर्या दलों” को अधिक प्रभावी एवं
परिणाम मूलक भूमिका देनी आवश्यक है. शौर्या दल आंगनवाड़ी सेवाओं एवं स्वास्थ्य
सेवाओं के साथ सिन्क्रोनाइज़ होकर कार्य कर सकते हैं ताकि इकाई स्तर यानी ग्राम
अथवा नगरीय स्तर पर प्रत्येक प्रसव जन्म में परिवर्तित हो अगर जन्म के समय शिशु
जीवित न हो
§तो उसका
लिंग एवं जीवित न रहने की  वजह स्पष्ट हो. 
§ग्राम अथवा
वार्ड  में बालिकाओं के जन्म को
सकारात्मक  रूप से ग्राह्य करने की प्रवृति
को बढ़ावा मिले.
§स्वास्थ्य
विभाग निजी नर्सिंग होम्स, सोनोग्राफी सेंटर्स पर कड़ी निगरानी रखें
§मातृशिशु
रक्षा कार्ड की जानकारियाँ आनलाइन की जा सकतीं हैं . ताकि जहां नवजात बालिका
मृत्यु दर में  ज़रा सी भी  नकारात्मकता देखी जाए उस क्षेत्र को तुरंत अलर्ट ज़ोन  में  रखकर कारणों को
ज्ञात करने का प्रयास हो . 
§प्रत्येक
संभावित प्रसव की निगरानी के लिए पूर्वोक्त अनुसार आँगनवाड़ी कार्यक्रम एवं शौर्या
दल को वर्क फ़ोर्स के रूप में कार्य करना होगा 
§दो प्रसवों
के मध्य  ऐसा हो कि दोनों जन्मों में लगभग
तीन साल का अंतर बना रहे 
बालिका के जन्मोपरांत लाडली-लक्ष्मी
योजना का लाभ सहजता से मुहैया कराया जा रहा है . लेकिन
सामाजिक सोच में बदलाव के लिए  ऐसी
पारिवारिक भेंट शौर्या-दलों के ज़रिये हों जिसका मुख्य एजेंडा बालिका के स्वास्थ्य
उसकी शिक्षा एवं बालिका को पुत्र संतान की तरह ही विकसित करने की प्रेरणा से
ओतप्रोत होना आवश्यक है . शौर्यादलों ऐसे परिवारों को  हर क्षेत्र की 
महिला आइकान {अगर स्थानीय हो तो बेहतर होगा} की जानकारी दें ताकि परिवार
बेटी को लेकर  सिर्फ बेटी की शादी को
प्राथमिक  मुद्दा न मानकर बेटी के
सामाजिक,आर्थिक, विकास के लिए तैयार करने पर सर्व प्रथम चिंतित हो . उसकी
शिक्षा-दीक्षा, कौशल विकास के  सन्दर्भ में
सोचे. यह भी तय करे कि भविष्य में अगर कोई विपरीत परिस्थिति हो तो उसका मुकाबला
बेटी कैसे करेगी ? कुल मिला कर बेटी को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करे . 
            5 वर्ष की
आयु तक बालिकाओं को आँगनवाडी से मिलाने वाली सेवाएं गुणवत्ता पूर्ण रहें तदुपरांत
शालाओं में उनको पर्याप्त समानता के अवसर 
शैक्षिकेत्तर गतिविधियों में भी दिए जावें . जैसे उनमें नेतृत्व का गुण प्रदान करने एवं निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करने के अतिरिक्त प्रयास हों . बालिकाएं में  स्वयं ही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा
तो सहज विकास में उसकी भागीदारी  सुनिश्चित
हो सकेगी .      
लिंगानुपात
में सकारात्मक बदलाव की दर को तीव्रता देने की कोशिश के साथ साथ “स्वागतम लक्ष्मी”
योजना को स्कूल चलो अभियान के लिए
शिक्षा विभाग के साथ समन्वय स्थापित करते हुए उसमें ICDS सेवाओं की तरह शौर्या-दलों को भी जोड़ देना आवश्यक है .
जिससे शिक्षा के प्रति अधिकाधिक “वर्क-फ़ोर्स” जुटे और अभियान 99 % सफल हो . 
• कक्षा 06 से 08 तक जूनियर
बालिका क्लब का शालाओं गठन कराकर अतिरिक्त गतिविधियों के रूप सृजनात्मक गतिविधियों
यथा संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला, हस्तकला,
पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर  पर
उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों को अधिक रुचिकर बनाया जाना चाहिए .
सांस्कृतिक हस्तक्षेप से शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में सफलता सहज ही प्राप्त
होती है. इसके प्रमाण स्वरुप “आई सी डी एस बरगी, एवं बालाघाट जिले की परियोजनाओं
में प्रयोग के तौर पर लागू किये गए कार्यक्रम गोद-भराई, अन्न-प्रासन, जन्म-दिवस,
तथा किशोरी क्लब” की गतिविधियों के विकसित स्वरुप “मंगल-दिवस” से आँगनवाड़ी
कार्यक्रम के क्रियान्वयन को सुदृढ़ता मिलना है. 
• कक्षा 09  से 12 तक सीनियर बालिका क्लब का शालाओं गठन
कराकर संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला,
हस्तकला, पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर 
पर उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों के साथ साथ स्वास्थ्य एवं
पोषण शिक्षा, मार्शल-आर्ट, क़ानून एवं योजनाओं की जानकारी बालिकाओं को अवश्य दी
जावे. ताकि वे किसी ऐसे बिंदु से अनभिज्ञ न रहें जो उनके सशक्तिकरण के लिए आवश्यक
हो 
   लिंगानुपात
में सकारात्मक बदलाव की दर को तीव्रता देने की कोशिश के साथ साथ “स्वागतम लक्ष्मी”
योजना को स्कूल चलो अभियान के लिए
शिक्षा विभाग के साथ समन्वय स्थापित करते हुए उसमें ICDS सेवाओं की तरह शौर्या-दलों को भी जोड़ देना आवश्यक है .
जिससे शिक्षा के प्रति अधिकाधिक “वर्क-फ़ोर्स” जुटे और अभियान 99 % सफल हो .
• कक्षा 06 से 08 तक जूनियर
बालिका क्लब का शालाओं गठन कराकर अतिरिक्त गतिविधियों के रूप सृजनात्मक गतिविधियों
यथा संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला, हस्तकला,
पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर  पर
उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों को अधिक रुचिकर बनाया जाना चाहिए .
सांस्कृतिक हस्तक्षेप से शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में सफलता सहज ही प्राप्त
होती है. इसके प्रमाण स्वरुप “आई सी डी एस बरगी, एवं बालाघाट जिले की परियोजनाओं
में प्रयोग के तौर पर लागू किये गए कार्यक्रम गोद-भराई, अन्न-प्रासन, जन्म-दिवस,
तथा किशोरी क्लब” की गतिविधियों के विकसित स्वरुप “मंगल-दिवस” से आँगनवाड़ी
कार्यक्रम के क्रियान्वयन को सुदृढ़ता मिलना है. 
• कक्षा 09  से 12 तक सीनियर बालिका क्लब का शालाओं गठन
कराकर संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला,
हस्तकला, पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर 
पर उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों के साथ साथ स्वास्थ्य एवं
पोषण शिक्षा, मार्शल-आर्ट, क़ानून एवं योजनाओं की जानकारी बालिकाओं को अवश्य दी
जावे. ताकि वे किसी ऐसे बिंदु से अनभिज्ञ न रहें जो उनके सशक्तिकरण के लिए आवश्यक
हो 
  •हमें यह सुनिश्चित करना
आवश्यक है कि 50% से अधिक बालिकाएं इंटरनेट पर सकारात्मक रूप से जुड़ें . इसके लिए प्रत्येक हायर सैकेंडरी
शाला में इंटरनेट से सम्बंधित प्रारम्भिक ज्ञान अनिवार्य रूप से कराया जावे .
•प्रबंधकीय प्रशिक्षण :- स्वरोजगार की सबसे बड़ी बाधा उत्पादन एवं विक्रय के लिए  प्रबंधकीय कौशल का अभाव है . इस हेतु राज्य
शिक्षा केंद्र अथवा किसी विश्वविद्यालय में एक से तीन  माह का कुटीर लघु-उत्पादक इकाई, के लिए शार्ट
टर्म प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार कराया जाकर बालिकाओं को प्रशिक्षण का अवसर “एन जी
ओ” के माध्यम से पंचायत स्तर पर दिया जा सकता है .   
सामाजिक
कुरीतियों जैसे दहेज़, बालविवाह, नतारा, विधवा-विवाह की अस्वीकृति, आदि के विरुद्ध
जनमानस बनाने ओपीनियन-लीडर्स, कलाकारों, लोक-कला दलों, आकाशवाणी, दूरदर्शन ,
सिनेप्लेक्स, आदि का उपयोग सहज ही किया जा सकता है . 
प्रदेश में
चलने वाले निजी इलेक्ट्रानिक एवं ऍफ़ एम रेडियो, आदि को  प्रति दिन महिला एवं बालिका सशक्तिकरण पर
केन्द्रित योजनाओं एवं स्वनिर्मित कार्यक्रमों के प्रसारण हेतु बाध्यता के लिए
नियम एवं  क़ानून बनाना संभव है .
राज्य-विधिक
सेवा प्राधिकरण के विधिक साक्षरता कार्यक्रम को सपोर्ट देने की आवश्यकता है . साथ
ही  प्रत्येक जिले स्तर एवं सब डिविज़न स्तर
पर “गौरवी” की तरह एक ही स्थान पर बहु आयामी सेवा केंद्र आवश्यक हैं .   
•हमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि 50% से अधिक
बालिकाएं इंटरनेट पर सकारात्मक रूप से जुड़ें . इसके लिए प्रत्येक
हायर सैकेंडरी शाला में इंटरनेट से सम्बंधित प्रारम्भिक ज्ञान अनिवार्य रूप से
कराया जावे .
•प्रबंधकीय प्रशिक्षण :- स्वरोजगार की सबसे बड़ी बाधा उत्पादन एवं विक्रय के लिए  प्रबंधकीय कौशल का अभाव है . इस हेतु राज्य
शिक्षा केंद्र अथवा किसी विश्वविद्यालय में एक से तीन  माह का कुटीर लघु-उत्पादक इकाई, के लिए शार्ट
टर्म प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार कराया
जाकर बालिकाओं को प्रशिक्षण का अवसर “एन जी ओ” के माध्यम से पंचायत स्तर पर दिया
जा सकता है .   
सामाजिक
कुरीतियों जैसे दहेज़, बालविवाह, नतारा, विधवा-विवाह की अस्वीकृति, आदि के विरुद्ध
जनमानस बनाने ओपीनियन-लीडर्स, कलाकारों, लोक-कला दलों, आकाशवाणी, दूरदर्शन ,
सिनेप्लेक्स, आदि का उपयोग सहज ही किया जा सकता है . 
प्रदेश में
चलने वाले निजी इलेक्ट्रानिक एवं ऍफ़ एम रेडियो, आदि को  प्रति दिन महिला एवं बालिका सशक्तिकरण पर
केन्द्रित योजनाओं एवं स्वनिर्मित कार्यक्रमों के प्रसारण हेतु बाध्यता के लिए
नियम एवं  क़ानून बनाना संभव है .
राज्य-विधिक
सेवा प्राधिकरण के विधिक साक्षरता कार्यक्रम को सपोर्ट देने की आवश्यकता है . साथ
ही  प्रत्येक जिले स्तर एवं सब डिविज़न स्तर
पर “गौरवी” की तरह एक ही स्थान पर बहु आयामी सेवा केंद्र आवश्यक हैं .    
 •उषा-किरण योजना के  क्रियान्वन के लिए
संरक्षण अधिकारियों के रूप में काम करने के लिए अब खंड महिला सशक्तिकरण अधिकारियों
की सेवाएं अनिवार्य करने के लिए उनके खंड-स्तरीय कार्यालयों की स्थापना एवम उनमे
आवश्यक अमले की पदस्थापना अत्यावश्यक हो गई है.
•एन जी ओ :- शौर्या दलों का अब सम्पूर्ण प्रदेश में गठन हो चुका है . उनके लिए
गतिविधीयों संचालन हेतु अब वित्त पोषण की आवश्यकता को देखते हुए उनको एक आदर्श
बाय-लाज के साथ पंजीकृत किया जा सकता है. ताकि वे विभाग द्वारा निर्धारित  अनुदान प्राप्त करते हुए एक वैधानिक सहायक
संस्था के रूप में “महिला-सशक्तिकरण” के लिए काम करें . यह अनुदान उनकी बैठकों,
स्टेशनरी, आदि के व्ययों की भरपाई हेतु 
किया जा सकता है.   
 महिलाओं को
पैतृक अचल सम्पतियों के प्राप्त करने एवं अधिकारों को संरक्षित  लिए आवश्यक कानूनी प्रावधानों में बदलाव
अपेक्षित हैं
1.विधवा,
परित्यक्ता बहन, भाभी, पुत्रवधू,  अथवा
विधवा माँ से सम्पति अनापत्ति बेहद भावात्मक रूप हासिल कर लेने की घटनाएं आमतौर पर
घटित होतीं हैं . ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस हेतु ग्रामसभाओं को ये अधिकार
देने होंगे कि विधवा, परित्यक्ता बहन, अथवा विधवा माँ द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण
पत्र सार्वजनिक रूप ग्रामसभा रखे जावें एवं उनका पुष्टिकरण हो . ग्राम सभा में
पुष्टि करते समय ग्रामसभा अनापत्ति प्रमाण पत्र के गुण - दोषों का व्यापक परीक्षण
करे तदुपरांत ही सम्पति के विक्रय अथवा अन्य प्रकार से अंतरण का अनुमोदन
अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा दिया जावे . शहरी क्षेत्र में सम्पूर्ण अधिकार
अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को दिए जा सकते हैं . 
2.पैतृक
संपत्ति का बंटवारा / विक्रय :- किसी भी स्थिति में पैतृक संपत्ति का बंटवारा
विक्रय पिता अथवा माता की मृत्यु के एक माह बाद ही हो ताकि भावनात्मक स्थितियों
लाभ न लिया जा सके . सामान्यत:
यह प्रक्रिया संपत्ति धारक की मृत्यु के तुरंत बाद की जाती है .   
महिलाओं के
अधिकारों की रक्षा, उनके लिए बनाई एवं चलाई जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों के
लिए  स्थानीय, जिला एवं राज्य-स्तर पर नोडल
विभाग के रूप में महिला सशक्तिकरण  को
चिन्हित किया जा सकता है   इसे नियमों में शामिल किया जाना प्रस्तावित
है
परामर्श 
 सुश्री नीतू पांडे, एक्टिविस्ट  
 श्रीमति विजश्री खन्ना , रंगकर्मी एवं  फिल्म 
निर्माता, निर्देशक 
 श्रीमति अर्चना ठाकुर , जर्नलिस्ट 
 सुश्री अपर्णा असाटी, युवा विचारक एवं उद्यमी 
 श्रीमति आरती साहू , शौर्या दल
सदस्य  
●
        

 
 
