मैं जाउंगा
तो अश्क के सैलाब उठेगें,
झुक
जाएँगी नज़रें, कई लोग झुकेंगे
महफ़िल
कभी चिराग बिना, रौशन हुई है क्या .....?
रोशन
न रहोगे तुम भी, जो चिराग बुझेंगे..!!
दिल
खोल के मिलिए गर मिलना हो किसी से –
वो
फिर न मिला लम्हे ये दिन रात चुभेंगे !!
हरेक
मामले में उठाते हो अंगुलियाँ –
क्या
हश्र होगा आपका जो हाथ उठेंगे .. ?
गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
पग
पग पे मयकदा है हर शख्स है बादाकश
बहका
वही है जिसने, कभी घूँट भर न पी !!
रिन्दों
के शहर में हमने भी दूकान सज़ा ली
इक
वाह के बदले में हम करतें हैं शायरी ..!!
गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
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मसले
हल हुए न थे कि, कुहराम मच गया-
बदली
हुई सूरत में वो आवाम तक गया !
अक्सर
हुआ यही है मेरे हिन्दोस्तान के साथ –
जिसपे
किया यकीं वही बदनाम कर गया .!!
फिर
कहने लगा चीख के, संगे-दिल हो आप-
रिश्तों
तार तार कर नुकसान कर गया !!
मुम्बई
के धमाकों की समझ पेरिस में पाई है
समझा
बहुत देर से, एहसान कर गया !!
गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”