22.6.15

मुझे चट्टानी साधना करने दो

 रेवा तुम ने जब भी
तट सजाए होंगे अपने
तब से नैष्ठिक ब्रह्मचारिणी चट्टाने मौन हैं
कुछ भी नहीं बोलतीं
हम रोज़ दिन दूना राज चौगुना बोलतें हैं
अपनों की गिरह गाँठ खोलते हैं !
पर तुम्हारा सौन्दर्य बढातीं
ये चट्टानें
  हाँ रेवा माँ                                          
ये चट्टानें  बोलतीं नहीं
कुछ भी कभी भी कहीं भी
बोलें भी क्यों ...!
कोई सुनाता है क्या ?
दृढ़ता अक्सर मौन रहती है
मौन जो हमेशा समझाता है
कभी उकसाता नहीं
मैंने सीखा आज
संग-ए-मरमर की वादियों में
इन्ही मौन चट्टानों से ... "मौन"
देखिये कब तक रह पाऊंगा "मौन"
इसे चुप्पी साधने का
आरोप मत देना मित्र
मुझे चट्टानी साधना करने दो
खुद को खुद से संवारने दो !!

 

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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