21.6.15

चार कविताएँ

(1) 
ज़्यादातर मौलिक नहीं
“सोच”  
सोच रहा होता हूँ
सोचता भी कैसे
प्रगतिशीलता के खेत में
मौलिक सोच
की फसल उगती ही नहीं .
(2)
सोचता हूँ
गालियाँ देकर
उतार लूं भड़ास ..?
पर रोज़िन्ना सुनता हूँ
तुम गरियाते हो किसी को
बदलाव
फिर भी
नज़र नहीं आता !!
(3)
जिस दूकान पर मैं बिका
सुना है ..
तुम भी
उसी दूकान से बिके थे ?
बिको जितना संभव हो
वरना
जब मरोगे तब कौन खरीदेगा
सिर्फ जलाने
दफनाने के लायक ही रहोगे
आज बिको
पैसा काम आएगा  !

(4)
पापा
आप जो रजिस्टर
दफ्तर से लाए थे
बहुत काम आया
कल उसमें मैंने लिखी थी
ईमानदारी पर एक कविता
सबको बहुत अच्छी लगी
मुझे एवार्ड भी मिला
ये देखो ?
मैं उसका एवार्ड  
देख न पाया !!   

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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