माँ तुम्हारी मृदुल मुस्कान
अनवरत प्रवाहित
आस्थामयी रेवा की धार सी
रोमांचित कर गई मुझे
तब हलक तक पीर उभरी
याद आए वो पल जब
अस्थिकलश से
अपनी माँ के
फूल रेवा में प्रवाहित किए थे
तब लगा था अब न मिलेगीं वो
पर आज तुमको अपनी बेटी
जिसे तुमने नाम "टिया"
के साथ देख मुझे मेरे सव्यसाची माँ बहुत याद आई
प्रणाम नमन माँ
तुम जो अक्सर मिल जाती हो मुझे
सड़क पर चौराहे पर दो राहे पर
किसी न किसी रूप में .....
बाल भवन में जब शिप्रा
दिव्यचक्षु बेटियों को करातीं हैं
कण्ठ साधना
तब तुम मुझे
सुनाई देतीं हो
शिव-महिम्न स्त्रोतम का सस्वर गान करती हुईं
तब जब रेणु भरती हैं शक्तिरूपा में रंग
तब तुम्ही नज़र आती हो न
जिरोती में रंग भरती हुईं......
माँ
तुम्हारा जाना असह्य था है रहेगा
फिर भी खोजता हूँ
हर नारी में तुमको
तुम मिल भी जाती हो ...... कितनी सहज हो न माँ
मुझे मालूम है माँ कभी भी मरती ही नहीं ज़िंदा रहती है ..................
उसे तुम मारते हो रोज़ यातनाओं से
सड़क पर चौराहे पर दो राहे पर
एक बार खंजर लेकर आओ
मेरे आँखें निकाल अपनी आँखों पर लगाओ
तुमको रोजिन्ना दिखेगी तुम्हारी माँ
::::::::::::::::::: गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"::::::::::::
अनवरत प्रवाहित
आस्थामयी रेवा की धार सी
रोमांचित कर गई मुझे
तब हलक तक पीर उभरी
याद आए वो पल जब
अस्थिकलश से
अपनी माँ के
फूल रेवा में प्रवाहित किए थे
तब लगा था अब न मिलेगीं वो
पर आज तुमको अपनी बेटी
जिसे तुमने नाम "टिया"
के साथ देख मुझे मेरे सव्यसाची माँ बहुत याद आई
प्रणाम नमन माँ
तुम जो अक्सर मिल जाती हो मुझे
सड़क पर चौराहे पर दो राहे पर
किसी न किसी रूप में .....
बाल भवन में जब शिप्रा
दिव्यचक्षु बेटियों को करातीं हैं
कण्ठ साधना
तब तुम मुझे
सुनाई देतीं हो
शिव-महिम्न स्त्रोतम का सस्वर गान करती हुईं
तब जब रेणु भरती हैं शक्तिरूपा में रंग
तब तुम्ही नज़र आती हो न
जिरोती में रंग भरती हुईं......
माँ
तुम्हारा जाना असह्य था है रहेगा
फिर भी खोजता हूँ
हर नारी में तुमको
तुम मिल भी जाती हो ...... कितनी सहज हो न माँ
मुझे मालूम है माँ कभी भी मरती ही नहीं ज़िंदा रहती है ..................
उसे तुम मारते हो रोज़ यातनाओं से
सड़क पर चौराहे पर दो राहे पर
एक बार खंजर लेकर आओ
मेरे आँखें निकाल अपनी आँखों पर लगाओ
तुमको रोजिन्ना दिखेगी तुम्हारी माँ
::::::::::::::::::: गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"::::::::::::