3.9.14

अदभुत सोचते हैं पी नरहरि जी

नित नया करना सहज़ है लेकिन नित नया सोचना वो भी आम आदमी की मुश्किलों से बाबस्ता मुद्दों पर और फ़िर रास्ता निकाल लेना सबके बस में कहां. जितना मानसिक दबाव कलेक्टर्स पर होता है शायद आम आदमी उसका अंदाज़ा सहज नहीं लगा पाते होंगें. ऐसे में क्रियेटिविटी को बचाए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है. किंतु कुछ सख्त जान लोग ऐसे भी हैं जो दबाव को अपनी क्रिएटिविटी के आधिक्य से मानसिक दबाव को शून्यप्राय: कर देने में सक्षम साबित हो जाते हैं.
इनमें से कुछेक नहीं लम्बी फ़ेहरिस्त है.. मेरे ज़ेहन में इस क्रम में आई ए. एस. श्री पी. नरहरी की क्रियेटिविटि का प्रमाण प्रस्तुत है.


       

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मेरे बारे में

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जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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