डा. अवध तिवारी |
फ़न उठा कर मुझको ही डसने चला है,
सपोला वो ही मेरी, आस्तीनों में पला है.!
वक़्त मिलता तो समझते आपसे तहज़ीब हम -
हरेक पल में व्यस्तता और तनावों का सिलसिला है.
जो कभी भी न मिला, न मैं उसको जानता-वो भी पत्थर आया लेके जाने उसको क्या गिला है.
हमारी कमतरी का एहसास हमको ही न था -
हम गए गुज़रे दोयम हैं ये सबको पता है.
जीभ देखो इतनी लम्बी, कतरनी सी खचाखच्च -
आप अपनी सोचिये, इन बयानों में क्या रखा है .?
ये अभी तो ”मुकुल” ही है- पूरा खिलने दीजिये-
आप बोलोगें "मुकुल जी, आपका तो जलजला है..!!"