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मंगलवार, जुलाई 23, 2013

आप बोलोगें "मुकुल जी, आपका तो जलजला है..!!"

डा. अवध तिवारी

फ़न उठा  कर  मुझको  ही डसने चला है,
सपोला वो ही मेरी, आस्तीनों में पला है.!
वक़्त मिलता तो समझते आपसे तहज़ीब हम -
हरेक पल में व्यस्तता और तनावों का सिलसिला है.
जो कभी भी न मिला, न मैं उसको जानता-
वो भी पत्थर आया लेके जाने उसको क्या गिला है.


हमारी कमतरी का एहसास हमको ही न था -
हम गए गुज़रे दोयम हैं ये सबको पता है. 
जीभ देखो इतनी लम्बी, कतरनी सी खचाखच्च -
आप अपनी सोचिये, इन बयानों में क्या रखा है .?
ये अभी तो ”मुकुल” ही है- पूरा खिलने दीजिये-
आप बोलोगें "मुकुल जी, आपका तो जलजला है..!!"
                   















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