लाल फ़ीतों में
बांध के लपेट के चलो या कि टोपी के नीचे समेटते चलो....
देश मज़बूर है
आपके सामने.. जैसे भी चाहो जीभर रगेदते चलो...!!
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आपकी बेबसी आपकी
बेरुखी देश का हाल क्या आप जानोगे कब...!
कुर्सियों के लिये उफ़्फ़ ये ज़द्दो-ज़हद - घर है दुश्मन का घर में मानोगे कब ?
पांव के नीचे
बोलो कहां है ज़मी.. ! उड़ने वालो ज़मीनों को देखते चलो !!
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बोलने की इज़ाज़त जो मिली आपको , बोलते बोलते बीते पांचों बरस ,
जाने किसके मुसाहिब हैं शोहदे यहां..! नन्हे बच्चों पे भी न जो खाते तरस !
कुछ ने आके जलाई है बस्ती मेरी,आके तुम भी यहां रोटी सेकते चलो !!
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