10.8.12

कृष्ण भौतिक एवम आध्यात्मिक मूल्यांकन


श्रीकृष्ण कोई किंवदंती नहीं है न ही वो वर्चुअल रहा है.  सत्य है शास्वत है सर्वकालिक है सार्वभौमिक चिरंतन सत्य है इसे नक़ार सकने की शक्ति मुझ में तो नहीं है
राधा,  रुक्मिणी,  सत्यभामा,  जांबवती,  नग्नजित्ती,  लक्षणा,  कालिंदीभद्रामित्रवृंदा.का पति , भौतिक अर्थों में रसिक  कृष्ण  समकालीन व्यवस्था के खिलाफ़ खड़ा विद्रोही  कृष्ण, राजनीतिग्य  कृष्ण,   सर्वहारा का नेता कृष्ण, जब विराट स्वरूप के दर्शन कराते हैं हैं तो सम्पूर्ण-सृष्टि का दर्शन हो जाता है. यानी कृष्ण को महान  वैज्ञानिक  कहू तो  अतिश्योक्ति नहीं है. यानी सब कुछ कृष्ण हैं  और सब कुछ में कृष्ण..ही हैं.   सत्ता से प्रताड़ित शोषितों  के घर जन्मे विश्व-सचेतक कर्मयोगी कृष्ण के फ़लसफ़े के आगे सर्वहारा के लिये लाये गए सारे आंदोलनों को कृष्णकालीन आंदोलन का अनुवाद करने का प्रयास मात्र लगते हैं . शेष आंदोलनों में आध्यात्मिक तत्व का न होने से पश्चातवर्ती  नकारात्मक  प्रभाव छोड़ते दिखाई  देते हैं. नक्सलवाद इसका सर्वोच्च उदाहरण है. यानी कृष्ण के रूप में ईश्वर ने जो किया उसका पश्चातवर्ती प्रभाव पाज़िटिव रहा है वरना दुर्योधनपौंड्रक जैसे व्यक्ति आज़ पूजे जाते उन्हैं हम याद करते . और  प्रतिहिंसा ही सर्वोच्च परिणाम होता.. कुरुक्षेत्र के बाद पर कृष्ण की गीता का समीचीन होना एक अदभुत तथ्य है.  
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। 
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च: दुष्कृताम, धर्मं संस्थापनार्थाय सम्भावामी युगे युगे॥"
           यह श्लोक सदा उद्घृत किया जाता है क्योंकि कृष्ण धर्म के सुदृढ़ीकरण के लिये अवतरित हुए थे. न कि किसी पंथ की प्राण-प्रतिष्ठा के लिये. धर्म जो सनातन हैं धर्म जो जनोन्मुखी है जनोत्कर्षी होता है.. पंथों को आप एक ज़मात मान सकते हैं. जो समकालीन एवम स्थानीय परिस्थिति सृजित होते हैं.  धर्म की व्याख्या महर्षियों ने की है धर्म जो जीवन की भौतिक एवम आध्यात्मिक  व्यवस्था का दिग्दर्शन करता है. जिसे तलवारें बंदूकें धमाके प्रतिस्थापित नहीं करते किंतु जब जब धर्म के खिलाफ़ हिंसा ने जन्म लिया तो पांचजन्य का फ़ुंकना तय है. पर विध्वंसक युद्धोपरांत गीता के श्लोक आध्यात्मिक दर्शन का अवलोकन कराते रहे और तो और बाद में भी भी सर्वदा सामयिक होने का बोध कराती गीता का आज भी सामयिक है कल भी सामयिक रहेगी .. 
कृष्ण की क्रांति सनातन धर्म के ततसमकालीन अवरोधों के शमन के लिये थी पर इतनी दूरदर्शिता से तैयार की गई स्टेटेज़ी पर आधारित थी...जो सर्वकालिक बन गई. कारण साफ़ है कि उसमें आध्यात्मिक तत्व का समावेश किया था श्रीकृष्ण ने. मिथक नहीं हैं मिथक कभी सर्वकालिक असर नहीं छोड़ते सत्य ही सर्वकालिक होता है. बांसुरी की तान छेड़ने वाला बालक कूटनितिज्ञ,युद्ध संचालक,रण-भूमि संयोजक, विचारक, यानी अपरिमित योग्यता धारक.   सब कुछ उसमें है जो एक ईश्वर में देखना चाहता हूं  अस्तु ऐसा दूसरा न था न होगा यानि वो ईश्वर है.. इससे इंकार करने का  सामर्थ्य न  तो मुझमें है न किसी में ही हो सकता है .
आप ईश्वर के साकार स्वरूप पर विश्वास  करें न करें पर एक चिंतन अवश्य कीजिये जो जनोन्मुखी है जो सदाचारी है जो सर्वग्य है जो व्यष्टि से समष्टि की ओर जाने के लिये हमें सहयोग करता है वो ईश्वर है.. श्रीकृष्ण में यही सब तो विद्यमान है. साकार में द्वापर में द्वारिका वाला कृष्ण निराकार में गीता के रूप में उपलब्ध है और रहेगा भी.  यहां कृष्ण को विराट मानव क्यों न कहूं तब जबकि उनके विराट मानव होने के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं. ऐसा कौन सा मानव होगा जिसे ब्रम्हांड का रहस्य ज्ञात  हो . आज अमेरिका अथवा उसी तरह का कोई देश विश्व के रहस्य को जानने में , ब्रम्हाण्ड के रहस्यों की पड़ताल करने में जुटे हैं पर ब्रह्म के बारे में ये न जान पाए कि -"गाड-पार्टिकल" क्या है. कर्मयोगी को यह ज्ञात था. कृष्ण के महान वैग्यानिक होने का प्रमाण त्रैलोक्य - दर्शन कराने से मिलता है.
            कृष्ण के युग में राजतंत्र ने शोषक आकार ले लिया था. कंस ठीक उसी तरह विद्रोहियों के खात्मे पर आमादा था जिस तरह आम तानाशाह किया करते हैं. ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था छिन्नभिन्न हो चुकी थी . ग्रामीण के श्रम से हुआ उत्पादन शहरों खप रहा था . पर गोकुल की  सम्पूर्ण अर्थ-व्यवस्था नेस्तनाबूत हो रही थी. उस समय सर्वाधिक रूप से गौवंश द्वारा दिये दूध, दही, माखन, घी, और अनाज़ की खपत तो नगरों में थी, पर उत्पादक कृषक को लाभ अपर्याप्त था. कृष्ण ने सखाओं के साथ माखन दूध और दही के उत्पादों को मथुरा भेजने से रोकने बाल लीला के नाम पर लूटना, खत्म करना, ( चुराकर, मटकी आदि फ़ोड़ कर )  प्रारंभ किया. और कंस को संदेश दिया.. कि अब क्रांति आसन्न है. और तानाशाह कंस के अंत के लिये सर्वहारा की संस्तुति प्राप्त की.
            कुल मिला के कृष्ण का मानव जीवन सामाजिक धारा को परिवर्तन के लिये था . आप कृष्ण को जानने जितने भी साहित्यिक रसों रसात्मकता “कृष्ण पर ” साहित्यिक आलेखन करेंगें  कृष्ण उसी रसात्मकता के साथ  वहां  मौज़ूद मिलेगें. .      

9 टिप्‍पणियां:

राजेश सिंह ने कहा…

सही कहा आपने आध्यात्मिकता का समावेश तो था ही. वह प्रासंगिक और समय की ज़रूरत और मांग थी . धर्म का स्थूल अर्थ ही है जो धारणीय हो सम सामयिक हो किसी विशिष्ट काल खंड और प्रस्तुत परिस्थितियों में
पठनीय पोस्ट

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाकई गजब का है कृष्ण
क्या ऎसा बचा है देखिये
जिसे कह लें हम कभी
ये तो नहीं है कृष्ण !!

रविकर ने कहा…

जय श्री कृष्ण ||

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूबसूरत आकलन

बसंत मिश्रा ने कहा…

ATI SUNDAR VISHLESHAN KIYA HIA

बसंत मिश्रा ने कहा…

ati sundar vyakhya ki hai

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Thanks Vasant ji

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Thanks

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Thanks

Wow.....New

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