28.8.12

भई ये पेंटिंग नहीं रगड़े की पिच्च है..!!

कला साधना के लिये मशहूर शहर में अपने कलासाधक मित्र से पूछ बैठा- भई, क्या चल रहा है..?
सिगरेट का कश खींचते बोले- बस यूं ही फ़ाकाकशी में हूं. 
और ज़ीने का ज़रिया ..?
बस, अब मिल गया, 
क्या..? ज़रिया.. !
न, गिरीश भाई नज़रिया,
     "नज़रिया" शब्द का अर्थ लगाए हम उनसे विनत भाव से विदा लेकर कामकाज़ निपटाने चल पड़े. मुलाकात वाली बात भी आई गई हो गई कि एक दिन वही हमारे मित्र दरवाज़े ज़िंदगी के दर्द भरे गीतों का पोटला लेके पधारे. संग साथ ले आए आए अपनी बीवी को बोले भैया -कलाकारों का भारी शोषण है. अब तो हमारी ज़िंदगी दूभर हो गई..अब बताइये क्या खाएं 
अपन भी कृष्ण बन गये लगा साक्षात सुदामा पधारे हमारे द्वारे बस हमारे हुक़्म पर चाय पेश हुई.. हम भी करुणामय हो गये.उनकी बातें सुनकर  हमारी अदद शरीक़-ए-हयात ने कहा - कुछ मदद कीजिये इनकी  !
बस बीवी के आदेश को राजाज्ञा मान हम ने तय कर लिया इस मित्र की मदद तो करनी ही है. सो हमने कहा -भई पब्लिसिटी खाते से आपको हम अपनी सामर्थ्य अनुसार काम देते रहेंगें. आपसे बड़ा वादा तो नहीं पर हां थोड़े थोड़े काम आपके खाते में ज़रूर आएंगें.
          मित्र को काम दिया कुछ हजार भी दिये काम ठीक ठाक था सबको पसंद आया भाई की डिमांड हुई. एक दिन अचानक श्रीमान ने मुझसे कुछ कविताएं पोस्टर बनाने मांग उपकृत करने का नुस्खा आज़माया. हमने खूब टाला वो टस से मस न हुआ. दे दीं कुछ कविताएं.
  भाई ने आकाश में मछलियां उड़ाईं.. कुछ आड़ी तिरछी लक़ीरें खींची.. गनीमत है कि भाई ने समंदर में घुड़दौड़ का आयोजन चित्रित नहीं किया.
 एक दिन हुज़ूर हमाए घर पधारे आते ही चीखे ..गिरीश भाई   गिरीश भाई !
’चंद स्कैच लाया हूं....!’
..दिखाएं.. भाई
ये रहे.. और फ़िर मित्र ने बेतरतीब लम्बे बालों को जो बिना रिबन के आंखों के सामने आकर हिज़ाब बनने की की कोशिश कर रहे थे को मुंडी उचका के पीछे ढकेलते हुए बड़ी अदा से पेंटिंग्स का पिटारा खोला आर्ट क्या आकाश में मछलियां उड़ रहीं थीं, पानी में घोड़े चर रहे थे, एक औरत की तस्वीर जानते ही होंगे आप तथा कथित आर्टिस्ट जैसी बनाया करते है ठीक वैसी ही. एक सेब का चित्र बीच से काटा गया उसे एक पुरुष बड़े ध्यान से देखे जा रहा था.. यानी उनकी चित्रकला का अर्थ केवल यौनिक अंगों का चित्रण साबित कर रही थी पेंटिंग्स जी में आया कि उनको बता दें कि चित्र कारी क्या चीज़ है पर सोचा कि कौन किस्से को खींचे टालने की गरज़ से हमने  वाह वाह कर दी.  हम  उनके  उत्साह को ठण्डा नहीं करना चाहते थे और न ही  मक़बूलिया कल्ट जो उनने पहन रखी थी  उसे भी क्षति पहुंचाना चाह रहे थे इस लिये हमने कहा भई ये मछलियां उड़ने वाला कांसेप्ट बेहद नया है आपके कई स्कैच में इसे देखा है सो वे तपाक से बोले - "गिरीश भाई.. सच आप तो गद्य,पद्य,कविता, अकविता, आलेख यानी हर क्षेत्र में दखल रखते हैं आज़ जाना कि पैंटिंग्स के मामले में भी क्रिटिक्स वाला नज़रिया रखते है वाह ..! .. ये बाद कहकर बड़ी उदारता से हमारी कुछ मिनिट पहले दी दाद वापस की और बोले आपके यहां कोई पेंटिंग करता है क्या..?
                                         हम अचकचा गये हमने कहा-भाई, हमारी सात पुश्तों में कोई ऐसा नहीं हुआ पर आप ये कयास कैसे लगा रहें हैं..?
वे बोले - ये , (बालकनी  बाएं तरफ़ की दीवार की ओर इशारा कर बोले) वाह क्या चित्र है.. ज़रूर कोई न कोई पेंटिंग वाला है..आपके यहां.
हमें हंसी छूट पड़ी हमने कहा- भैये,ये कोई पेंटिग वेंटिग नहीं है.  कई दोस्त हमारे रगड़ा ( घिसी हुई तम्बाखू ) खाऊ कमेटी के मेम्बर हैं मेरी तरह उनमें से एक हैं जिनने पिच्च से यहीं.. हा हा हा                               भई ये पेंटिंग नहीं रगड़े की पिच्च है.
        यह सुन कर उनकी मक़बूलिया कल्ट ठीक वैसे उतरने लगी गोया घरों की दीवारों पर जमीं पुताई वाली परतें गिरतीं है या ये भी मान लीजिये कि बजरंग बली की प्रतिमा से सिंदूरी चोला छूटता है .
             आपके इर्द-गिर्द ऐसे कल्टधारी आर्टिस्ट और उनके उतरते कल्ट की तस्वीर आप महसूस करेंगे.. !आप यह भी महसूस करएंगे  कि  हम मनुष्यों के सबसे बड़ी खराबी है कि हम जितना प्रतिभावान होते नहीं उससे अधिक प्रतिभावान होने का दावा करतें हैं.हम कितने भी जतन से अपने हुलिये को सजाएं संवांरे पर जब पानी बरसता है तो हमारे शरीर का रोगन बह निकलता है. पता नहीं लोग दिखावे की दौड़ में क्यों दौड़ रहें हैं किसी भी चेहरे पर मौलिकता एवम सामान्य छवि क्यों नज़र नहीं आती ..?

6 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह हमारे यहां तो पूरा हि‍न्‍दोस्‍तान ही आर्टि‍स्‍ट बना बैठा है तब तो :)

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

जबरदस्त कटाक्ष|

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

ha ha kajal bhai thanks sanjay bhai

Sunita Sharma ने कहा…

शायद आपके इर्द-गिर्द ऐसे कल्टधारी आर्टिस्ट और उनके उतरते कल्ट की तस्वीर आप महसूस करेंगे.. !आप यह भी महसूस करएंगे कि हम मनुष्यों के सबसे बड़ी खराबी है कि हम जितना प्रतिभावान होते नहीं उससे अधिक प्रतिभावान होने का दावा करतें हैं.हम कितने भी जतन से अपने हुलिये को सजाएं संवांरे पर जब पानी बरसता है तो हमारे शरीर का रोगन बह निकलता है. पता नहीं लोग दिखावे की दौड़ में क्यों दौड़ रहें हैं किसी भी चेहरे पर मौलिकता एवम सामान्य छवि क्यों नज़र नहीं आती ..?
bahut khub ji

RadhaKannaujia13dastak ने कहा…

मज़ा आ गया देखकर.
मैंने भी इसको पेंटिंग समझ लिया था.

बवाल ने कहा…

ज़ोरदार बात कही। बहुत उम्दा मुकुलजी। यश भारत में भी आपका ये लेख पढ़ा। बधाई।

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