जितनी बार बिलख बिलख के रोते रहने को मन
कहता
उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख सन्मुख
है रहता....!
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सच तो है अखबार नहीं तुम,
जिसको को कुछ पल बांचा जाये.
न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका-
जिसे तपा के जांचा जाए.
मनपथ की तुम दीप शिखा हो
यही बात हर गीत है कहता
जितनी बार बिलख बिलख के ...............
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सुनो प्रिया मन के सागर का
जब जब मंथन मैं करता हूं
तब तब हैं नवरत्न उभरते
और मैं अवलोकन करता हूँ
हरेक रतन तुम्हारे जैसा..?
तुम ही हो ये मन है कहता.
जितनी बार बिलख बिलख के ...............