8.4.12

कुछ बेवकूफ़ रोज़ मिला करतें हैं मुझे कल है रविवार हम भी बा-सुकू़ं हुए


जब भी तन्हां हुए तुझसे रूबरू हुए
बरसों हुए - बज़्म  हुए ,गुफ़्तगूं  हुए !!
आए हैं जबसे सामने  धुआंधार  हम तेरे-
थमते गए तूफ़ां वो बेआबरू हुए !!
कुछ बेवकूफ़ रोज़ मिला करतें हैं मुझे
कल है रविवार हम भी बा-सुकू़ं हुए.
बेवज़ह चापलूसी का ईनाम मिला यार-
कुछ इस तरह एक से चार हम हुए.
बच्चों को पालना है वर्ना खोलता छतैं-
कोई बताए आके हम ऐसे क्यूं हुए .

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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