Ad

शनिवार, फ़रवरी 11, 2012

राजकाज

संस्थानों के दीमक आगामी अंक में तब तक इस व्यंग्य को देखिये
साभार : दखलंदाजी.काम 
से इस पन्ने से 
         सरकारी आदमी हर्फ़-हर्फ़ लिखे काम करने का संकल्प लेकर नौकरी में आते हैं सब की तयशुदा होतीं हैं ज़िम्मेदारियां उससे एक हर्फ़ भी हर्फ़ इधर उधर नहीं होते काम. सरकारी दफ़तरों के काम काज़ पर तो खूब लिक्खा पढ़ा गया है मैं आज़ आपको सरकार के मैदानी काम जिसे अक्सर हम राज़काज़ कहते हैं की एक झलक दिखा रहा हूं.                            
        सरकारी महकमों  में अफ़सरों  को काम करने से ज़्यादा कामकाज करते दिखना बहुत ज़रूरी होता है जिसकी बाक़ायदा ट्रेनिंग की कोई ज़रूरत तो होती नहीं गोया अभिमन्यु की मानिंद गर्भ से इस विषय  की का प्रशिक्षण उनको हासिल हुआ हो.                        
               अब कल्लू को ही लीजिये जिसकी ड्यूटी चतुर सेन साब  ने वृक्षारोपण-दिवस” पर गड्ढे के वास्ते  खोदने के लिये लगाई थी मुंह लगे हरीराम की पेड़ लगाने में झल्ले को पेड़ लगने के बाद गड्डॆ में मिट्टी डालना था पानी डालने का काम भगवान भरोसे था.. हरीराम किसी की चुगली में व्यस्तता थी सो वे उस सुबह “वृक्षारोपण-स्थल” अवतरित न हो सके जानतें हैं क्या हुआ..हुआ यूं कि सबने अपना-अपना काम काज किया कल्लू ने (गड्डा खोदा अमूमन यह काम उसके साब चतुर सेन किया करते थे)झल्ले ने मिट्टी डालीपर पेड़ एकौ न लगा देख चतुर सेन चिल्लाया-ससुरे  पेड़ एकौ न लगाया कलक्टर साब हमाई खाल खींच लैंगे काहे नहीं लगाया बोल झल्ले ?“
चतुरसेन :- औ’ कल्लू तुम बताओ , ? झल्ले बोला:-साब जी हम गड्डा खोदने की ड्यूटी पे हैं खोद दिया गड्डा बाक़ी बात से हमको का मामूल  ?”
कल्लू:-का बताएं  हज़ूरहमाई ड्यूटी मिट्टी पूरने की है सो हम ने किया बताओ जो लिखा आडर में सो किया हरीराम को लगाना था पेड़ लाया नहीं सो का लगाते जिसकी ड्यूटी बोई तो लाता और लगाता बो नईं आया  उससे पूछिये सरकार ! 
         “कल्लू दादा स्मृति समारोह” के आयोजन स्थल पर काफ़ी गहमा गहमीं थी सरकारी तौर पर जनाभावनाओं का ख्याल रखते हुए इस आयोजन के सालाना की अनुमति की नस्ती से सरकारी-सहमति-सूचना” का प्रसव हो ही गया जनता के बीच उस आदेश के सहारे कर्ता-धर्ता फ़ूले नहीं समा रहे थे. समय से बडे़ दफ़्तर वाले साब ने मीटिंग लेकर छोटे-मंझौले साहबों के बीच कार्य-विभाजन कर दिया. कई विभाग जुट गए  कल्लू दादा स्मृति समारोह” के सफ़ल आयोजन के लिये कई तो इस वज़ह से अपने अपने चैम्बरों और आफ़िसों से कई दिनों तक गायब रहे कि उनको इस महत्वपूर्ण राजकाज” को सफ़ल करना है. जन प्रतिनिधियों,उनके लग्गू-भग्गूऒंआला सरकारी अफ़सरों उनके छोटे-मंझौले मातहतों का काफ़िला दो दिनी आयोजन को आकार देने धूल का गुबार उड़ाता आयोजन स्थल तक जा पहुंचा. पी आर ओ का कैमरा मैन खच-खच फ़ोटू हैं रहा था. बड़े अफ़सर आला हज़ूर के के अनुदेशों को काली रिफ़िलर-स्लिप्स पर ऐसे लिख रहे थे जैसे वेद-व्यास के  कथनों गनेश महाराज़ लिप्यांकित कर रहे हों. छोटे-मंझौले अपने बड़े अफ़सर से ज़्यादा आला हज़ूर को इंप्रेस करने की गुंजाइश तलाशते नज़र आ रहे थे. आल हज़ूर खुश तो मानो दुनियां ..खैर छोड़िये शाम होते ही कार्यक्रम के लिये तैयारियां जोरों पर थीं. मंच की व्यवस्था में  फ़तेहचंद्रजोजफ़और मनी जीप्रदर्शनी में चतुर सेन साब,बदाम सिंगआदिपार्किंग में पुलिस वाले साब लोगअथिति-ढुलाई में खां साबगिल साबजैसे अफ़सर तैनात थे. यानी आला-हज़ूर के दफ़्तर से जारी हर हुक़्म की तामीली के लिये खास तौर पर तैनात फ़ौज़. यहां ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इतने महान कर्म-निष्ठअधिकारियों की फ़ौज तैनात है कि इंद्र का तख्ता भी डोल जाएगा वाक़ई. इन महान सरकारीयों” की सरकारियत” को विनत प्रणाम करता हूं .
                                                             
               मुझे मंच के पास वाले साहब लोग काफ़ी प्रभावित कर रहे थे. इनके चेहरे पे वो भाव थे जैसे बैल गाड़ी के नीचे चलने वाला कालू कुत्ते के चेहरे पर किसी कहानी में सुने गए. हुआ यूं कि गाड़ीवान को रात भर में एक गांव से दूसरे गांव अनाज ले जाना था. गाड़ीवान ने अपने हीरा-मोती नामके बैलों को हिदायत दी –“रे रात भर में रामपुर का जंगल पार कराना समझे ”
      तीसरे प्रहर आंख लग गई थी गाड़ीवान की जब जागा तो भोर की सूचना देने वाला तारा निकल आया था. गाड़ी चल रही थी हीरा-मोती सम्हल सम्हल के चल रहे थे अपने मालिक नींद में दखल न हो इस गरज़ से धीरे-धीरे गाड़ी खैंच रहे हीरा-मोती को गाड़ीवान ने तेज़ चलने के लिये डपट के हिदायत दी.. मालिक की नींद खुली देख कालू झट गाड़ी पे उच्चक के आया बोला- मालिक ससुरे हीरा मोती रात भर सोये..
तो गाड़ी किसने खींची..
कालू-“हज़ूर.. हमने और कौन ने बताओ...? ”
                                               अब फ़तेहचन्द जी को लीजिये बार बार दाएं-बाएं निहारने के बाद आला हज़ूर के ऐन कान के पास आके कुछ बोले. आला हज़ूर ने सहमति से मुण्डी हिलाई फ़िर तेज़ी से टेण्ट वाले के पास गये .. उसे कुछ समझाया वाह साहब वाह गज़ब आदमी हैं आप और आला-हज़ूर के बीच अपनत्व भरी बातें वाह मान गए हज़ूर के मुसाहिब” हैं आप की क्वालिटी बेशक 99% खरा सोना भी शर्मा जाए.  आपने कहा क्या होगा बाक़ी अफ़सरान इस बात को समझने के गुंताड़े में हैं पर आप जानते हैं आपने कहा था आला-हज़ूर के ऐन कान के पास आकर सरदस कुर्सियां टीक रहेंगी. मैं कुर्सी की मज़बूती चैक कर लूंगा..आला-हज़ूर ने सहमति दे ही दी होगी. 
               जोज़फ़  भी दिव्य-ज्ञानी हैं. उनसे जिनका भी सरोकार  पड़ा वे खूब जानतें हैं कि "रक्षा-कवच" कैसे ओढ़ते हैं उनसे सीखिये मंच के इर्दगिर्द मंडराते मनी जी को भी कोई हल्की फ़ुल्की सख्शियत कदाचित न माना जावे. अपनी पर्सनालटी से कितनों को भ्रमित कर चुकें हैं . 
               आला-हज़ूर के मंच से दूर जाते ही इन तीनों की आवाज़ें गूंज रही थी ऐसा करो वैसा करोए भाई ए टेंट ए कनात सुनो भाई का लोग आ जाएंगे तब काम चालू करोगे ए दरी   भाई जल्दी कर ससुरे जमीन पे बिठाएगा का .. ए गद्दा ..
  जोजफ़ चीखा:-अर्रए साउंडइधर आओ जे का लगा दियामुन्नी-शीला बजाओगे..अरे देशभक्ति के लगाओ. और हां साउण्ड ज़रा धीमा.. हां थोड़ा और अरे ज़रा और फ़िर   मनी जी की ओर  मुड़ के बोला इतना भी सिखाना पड़ेगा ससुरों को “ 
 तीनों अफ़सर बारी-बारी चीखते चिल्लाते निर्देश देते  रहे टैंट मालिक रज्जू भी बिलकुल इत्मीनान से था सोच रहा था कि चलो आज़ आराम मिला गले को . टॆंट वाले मज़दूर अपने नाम करण को लेकर आश्चर्य चकित थे  जो दरी ला रहा वो दरी जो गद्दे बिछा रहा था वो गद्दा .. वाह क्या नाम मिले . 
        कुल मिला कर आला हज़ूर को इत्मीनान दिलाने में कामयाब ये लोग जैक आफ़ आल मास्टर आफ़ ननवाला व्यक्तित्व लिये  इधर से उधर डोलते  रहे इधर उधर जब भी किसी बड़े अफ़सर नेता को देखते सक्रीय हो जाते थोड़ा फ़ां-फ़ूं करके पीठ फ़िरते ही निंदा रस में डूब जाते . 
 फ़तेहचंद ने मनी जी से दार्शनिक भाव सहित पूछा :यार बताओ हमने किया क्या है..?
जवाब दिया जोजफ़ और मनी जी ने समवेत स्वरों में ;”राजकाज 
फ़तेहचंद – यानी  राज का काज हा हा 

**************


Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में