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गुरुवार, सितंबर 22, 2011

बेटी बचाओ अभियान :एक ज़रूरी अभियान


मध्य-प्रदेश में 5 अक्टूबर 2011 से बेटी बचाओ अभियान का शुभारम्भ जनचेतना को जगाने का एक महत्वपूर्ण कदम है. यह बेहद ज़रूरी भी है. कारण है पिछले दस वर्षों में सम्पूर्ण भारत का  लिंगानुपात 933 से बढ़कर 940 हो गया साथ ही बच्चो का लिंगानुपात स्वतंत्र भारत के सबसे निचले स्तर पर जो एक नकारात्मक  सूचना है. एक और ज़रूरी तथ्य जो समाज का बेर्टियों के बारे में दृष्टिकोण उज़ागर करता है वो है नवजात शिशुओं की मृत्यु दर  वर्ष 1990,1995,2000,2005 तथा  2009  तक
हमेशा बालिकाओं की मृत्यु का आंकड़ा सदैव अधिक ही रहा. ये अलग बात है कि नवजात शिशु मृत्यु की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आया है. किंतु बालिका मृत्यु दर सदा ही प्रथम दो वर्षों क्रमश: 90,95 में तीन, 2000 में 2, 2005 में 5, तथा 2009 में पुन: 3 देखी गई. यानी प्रदेश की स्थिति देखें तो सकल शिशु मृत्यु दर 67 मध्य-प्रदेश में तथा 12 प्रति हज़ार केरल में आंकलित की गई. यानी प्रति हजार जीवित जन्मों में से 67 बच्चों का पहला जन्मदिन न मना पाना दु:खद स्थिति है. बालिकाओं के संदर्भ में सोचा जाए तो लगता है कि वास्तव में हम बेटियों के उपरांत उनकी बेहतर देखभाल के लिये  अभी भी उत्साहित नही हैं.     
                    जबकि सरकार ने प्रसव हेतु अब जननी एक्सप्रेस   लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान  जैसी योजनाए क्रियांवित कर “पालने से पालकी तक” की ज़िम्मेदारी स्वीकार ली है तो फ़िर हम क्यों बालिकाओं के लिये नज़रिया बदलने में विलम्ब कर रहें है
   मध्य-प्रदेश सरकार  का "बेटी-बचाओ अभियान" पांच अक्टूबर से प्रारंभ होगा जो  हमारे चिंतित मन को चिंतन की राह देगा ये तय है.. बस एक समझदारी की ज़रूरत को दिशा देते इस अभियान में छिपे संदेशों को समझिये और समझाईये उनको जो यह नहीं जानते कि बेटी का होना कोई बोझ नहीं यदि हमारी सोच सकारात्मक है. नर्मदांचल में माएं अपनी बेटियों को ससुराल विदा करते वक़्त उसकी कोख की पूजन करतीं हैं. जो यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि देश की सांस्कृतिक-सामाजिक व्यवस्था बेटी के लिये कदापि नकारात्मक नहीं किंतु काय-विज्ञान और परीक्षण तक़नीकी विकास ने भ्रूण परीक्षण को आकार दिया.और आम आदमी अजन्मी-बेटियों के अंत के लिये सक्षम हो गया. इस पाशविक सोच से मुक्ति का मार्ग है प्रशस्त करेगा  "बेटी बचाओ अभियान.
  देश के समग्र विकास के साथ लिंगानुपात में कमी आना हमारे सर्वांगीण विकास की सूचना तो कदापि नहीं है. आकंड़े देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हम किस कदर भयभीत हैं बेटी के जन्म से. यद्यपि हम समूचे भारत में जहां देश का सम्पूर्ण आंकड़ा .75 की कमी का सूकाक है वहीं मध्य-प्रदेश में महिलाओं की संख्या में 1.20 प्रतिशत की कमी को सूचित करता यह आंकड़ा कहीं न कहीं हमारी नकारात्मक सोच को दर्शाता है. 
  
क्रम
भारत एवम मध्य-प्रदेश
1991
2001
2011
01
भारत
927
933
940
02
मध्य-प्रदेश
912
920
930

   यानी कुल मिला कर हम बेटीयों के प्रति अपना नज़रिया न बदल सके.    
  मध्य-प्रदेश-सरकार ने लाड़ली-लक्ष्मी योजना, और मंगल दिवस कार्यक्रमों का संचालन बालिकाओं के प्रति  सामुदायिक सोच में बदलाव लाने के प्रारंभ किया. इतना ही नहीं सरकार की कन्या दान योजना, नि:शुल्क गणवेश और सायकल वितरण,कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से लागू कर दिया. 
 यानी सरकार की चिंता है आपकी बेटी आप बस चिंतन कीजिये .. खुद से पूछिये कि "बेटियों के बग़ैर आपको आपका घर" कैसा लगता है. कभी सोचा है आपने कि धीरे धीरे कम होती बेटियां देश को किस गर्त में ढकेलने जा रहीं हैं. यदि नहीं तो आज से अभी से सोचना शुरु कीजिये. तय है कि आप ज़ल्द ही इस नतीज़े पर पहुंच जाएंगे कि बेटी बचाना क्यों ज़रूरी है..?
जी सही सोच रहे हैं आप बेटियों के अभाव में विकास का पहिया अपनी धुरी पर घूमता नज़र आएगा आपको.  
एक सृजनिका को समाप्त होना जिन सामाजिक विकृतियों को आपको सौंपेगा उनमें से एक होगी "मानव-संसाधनों की कमीं" जिसकी भरपाई के लिये कोई सा विज्ञान सक्षम न होगा

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