10.5.11

दोस्तो एक आंदोलन करो

दोस्तो
एक आंदोलन करो
बहुत ज़रूरी है आंदोलन करो
करो या मरो
दोस्तो
इस बात के लिये आंदोलन करो
कि मुझे लोग ताक़तवर मानें
मेरी औक़ात को पहचाने
तुम ने क्या कहा ..?
बीहड़ों का शेर कभी आंदोलन नहीं करता
हां कहा तो सही
पर ये भी तो सही है
गीदड़ भी षड़यंत्र से रच लेते हैं
बताओ कितने नाहर उनकी चाल से बच लेतें हैं..?
आंदोलन करो न
आंदोलन के लिये हामी भरो न !!
बता दो
कि तुम भी एक हुज़ूम
की ताक़त रखते हो..!
लड़ो विरोध करो
व्यवस्था का
क्या कहा- “उसे सुधारना.है.?
नामाकूल
वो सुधरी तो तुम किस काम के होगे
चलो
उठाओ झण्डे
तुम लाल उठा लो
ए बाबू तुम पीला
अरे तू कहां जा रहा है
दुरंगा छोड़ कर..
ऐन वक्त पर मेरा हाथ छोड़ कर
अरे मूरख
हल्ला बोल हल्ला..!
अरे
वैसे ही जैसे धौनी घुमाता है जब बल्ला
तू मचाता है हल्ला !!
चल उठा
जाति के नाम पर
धर्म के नाम पर
वर्ग के नाम पर
डायरेक्ट
इन डायरेक्ट के नाम पर
हो जा लामबंद
सरकारी बाबूओं सा..?
जिसका दांव जब लगे
तब उसके भाग जगे
चलो
आग लगाओ
तोड़ो 
फ़ोड़ो
शहर गांव जलाओ
मित्र को अमित्र
चित्र को विचित्र
बनाओ न 
आओ 
रेज़ा रेज़ा कर दो
सम्बंध
तार तार कर दो अनुबंध
तुम जो
ये न कर सके तो
शायद महान न बन पाओगे
क्या कहा..?
हां, 
सच कहा
"दूसरों को अपमानित किये बिना 
सम्मान कहां पाओगे  ?"





6 टिप्‍पणियां:

लाल और बवाल (जुगलबन्दी) ने कहा…

एक बेहद सटीक और हृदयस्पर्शी कविता। बहुत बेहतरीन लहजा। क्या कहना !

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बेहद सटीक, क्या कहना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"दूसरों को अपमानित किये बिना
सम्मान कहां पाओगे ?"
यही जीवन जीने का उद्देश्य होना चाहिए!

किलर झपाटा ने कहा…

क्या हमारा देश सिर्फ़ आन्दोलन ही करता रहेगा या कुछ काम धन्दा भी करेगा ?
मुकुल अंकल, क्या अब हमारे समाज को इन सब बेसिरपैर की बातों से उबर नहीं जाना चाहिये ?

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

झपाटा जी
यही तो लिक्खा है

Dr Varsha Singh ने कहा…

सही और सार्थक बात।

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