6.11.10

महाजन की भारत यात्रा

"स्वागत के क्षण "
                  अमेरिका के चवालीसवें राष्ट्रपति  "बराक़-ओबामा" जो व्यक्तिगत रूप से भारत के हितैषी माने जाते है की भारत यात्रा आज़ से अगले शेष दो  दिनों में क्या रंग दिखाएगी इस बात से का असर अगले तीन बरस के बाद से सामने आयेगा.कोई उनको अमेरिकी उद्योगों-उद्योगपतियों के वक़ील के रूप में  देख रहें हैं तो कुछ लोग बराक़ सा’ब को भारत का खैर-ख्वाह मान रहें हैं.शायद इस बात को सहजता  से स्वीकरने में मुझे हिचकिचाहट है. पर उनकी यात्रा पर लगातार अपडेट होतीं  खबरों से एक बात ज़रूर स्पष्ट है कि भारत के प्रति अमेरिकी नज़रिये में कुछ बदलाव ज़रूर आया है.सच यही कि भारत ने कम से कम इतना एहसास तो करा ही दिया है कि अब वो एक आर्थिक महाशक्ति  है.पहली बार लगा कि वे  भारत को  पाकिस्तान के बाजू वाले पलड़े में नहीं रख रर्हें हैं जैसी आशंका मेरे अलावा कई लोगों की थी .  अमेरीक़ी राष्ट्रपति महोदय ने नेहरू जी के कथन का पुनरुल्लेख :-"'हम आज़ादी की  मशाल को कभी बुझने नहीं देंगे, और कहा :- अमरीकी इस कथन पर विश्वास करते हैं !" सचाई भी यही है तभी तो ओबामा साहब यह भी जान चुकें हैं कि :-"भारत के बाज़ार में स्थान पाने के लिये दबाव की कूटनीति प्रभावशाली नहीं हो सकती" उनके भाषण से साफ़ तौर पर स्पष्ट हो चुका है कि वास्तव में अमेरीकी उत्पादों को भारतीय बाज़ार कितना ज़रूरी है. सो सुविधा -द्वार खोलना ज़रूरी भी है भारत के लिये भी यह ज़रूरी होगा कि अपने सुरक्षा-द्वारों की व्यवस्था सुनिश्चित कर ली जावे. 
इसरो,डीआरडीओ,डीई को काली सूची से हटाने की मांग जायज़ ही थी जिसे स्वीकार लेना अमेरिका के लिए बेहद ज़रूरी है.भारत के इन सम्मानित संगठनों का नाम काली सूची में दर्ज़ किया जाना अमेरीका की सबसे बड़ी भूलों में से एक भूल थीं. अब अमेरीकी सेटेलाईटस को भारत से लांच किया जा सकेगा. हमारी-तकनीकियों का आदान-प्रदान सहज हो सकेगा इससे कुक हद तक साबित हो रहा है कि भारत के विकास को अमेरीका हलके तौर पर नहीं ले रहा है. वरन भारत की सह-अस्तित्व की अवधारणा को अमेरिका नकार नहीं रहा है.. 
उम्मीद है कि ओबामा साहब अपने पहले भाषण की पहले वाक़्य को न भूलेंगें "मैं यहाँ स्पष्ट संदेश देने के लिए आया हूँ - आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमरीका और भारत एक जुट हैं. हम 26 नवंबर 2008 के स्मारकों पर जाएँगे और कुछ पीड़ित परिवारों से मुलाक़ात भी करेंगें.
http://thatshindi.oneindia.in/img/10/01/091124153210_manmohan_singh226_thump.jpg

17 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

मुझे न्यूज चैनल वालों की सोच पर तरस आता है और गुस्सा भी. ओबामा के अलावा भी और दर्द हैं जमाने में. बराक ओबामा को जबरदस्ती बराक "हुसैन" ओबामा भरा जा रहा था. लेकिन डेविड कोलमैन को "दाऊद गिलानी" कहने में मुंह में दही जम जाता है. "सलमान खुर्शीद" साहब की उपस्थिति! पता नहीं साम्प्रदायिक कौन है..

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

जी चैनल्स जो भी करें उनको देख कौन रहा है दादाजी के अलावा घर की औरतें देखतीं हैं नारी ब्राण्ड सीरीयल्स / अपन तो ब्लाग से खबरते रहते हैं / अच्छा हुआ आपने न कहा ओबामा बिन लादेन एक ने किसी रीयलिटी शो में यही नाम बताया था खैर
"भारतीय अर्थतंत्र के संदर्भ पर विचार किया है टीवी चेनल से इस आलेख की कोई नातेदारी नहीं है स्वागत है पधारने का"

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

सामयिक लेख, महत्वपूर्ण पहलूओ को रेखांकित किया है. धन्यवाद.
--mansoorali hashmi

chankya ने कहा…

आज भारत को अमेरिका कि नहीं , पर अमेरिका को अपनी मंदी से उबरने के लिये भारत कि जरुरत है . भले से अमेरिका एक दबंग देश हो पर आर्थिक रूप से युद्ध
में उसका दिवाला निकला हुआ है . यह दौरा शुद्ध रूप से व्यापारिक है . अब जो भी पैसा भारत से जाएगा क्या उसका उपयोग पाकिस्तान को देने में नहीं होगा ,
जरुर होगा . और उस पैसो को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में काम में लाया जायेगा .इसी ओबामा ने कहा था कि अमेरिकी मदद का हिसाब माँगा
जाएगा क्या ऐसा हुआ ?
नहीं .आज भारत कि स्थति भिन्न है . आज भारत कि स्थति घुटने टेकने वाली नहीं है . मुंबई में ओबामा ने अपनी स्पीच में पाकिस्तान का नाम बी नहीं लिया .
क्या ओबामा पाकिस्तान को आतंकवादी देश नहीं मानते है . क्या ऍफ़ बी आई ने मुंबई हमलो में आई एस आई और पाकिस्तानी फोज़ का हाथ नहीं बताया है .?
फिर उसको क्यों अमेरिका मदद कर रहा है ., ? अब उनको दो टूक शब्दों में कह देना का है दो नाव में पैर रखकर चलना भारत को स्वीकार नहीं है .
फिर भारत का अन्तरराष्ट्री संगठन में परमानेंट सीट का भी सवाल है . क्या अमेरिका के राष्ट्रपति सदस्यता का अनुमोदन करने को तैयार है .?
आज भारत कि स्थति काफी मजबूत है . तो अब भारत अपनी बात रख सकता है . अब देखना है भारत

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे इस लाला कन्हेया लाल से बच के , आज तक जिस तरह भी दोस्ती का हाथ बढाया उसी का सत्य नाश किया हे इस अमेरिका ने, यह क्यो भारत को झाड के पेड पर चढा रहा हे, यह तो तब पता चलेगा जब कुछ नही बचेगा

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

चलिये ये भी ठीक कह दिया
पाबला जी और ललित जी की बैल गाड़ी तैयार है.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

रोहतक में आकर अपन ओबामा पर चर्चा करेंगे ताऊ आ रहें हैं कि नहीं.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

esjk fo'okl lgh gS
vksckek gh GS
मेरा विश्‍वास सही है
ओबामा ही है

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अमेरिका अपनी कूट नीति पर चल रहा है। बराक इसमें क्या कर सकते हैं, पहले पाकिस्तान को थपथपाते हैं फ़िर हिन्दुस्तान चले आते हैं। दोगली नीति पर चलना इनका शगल रहा है।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

काटे चाटे स्वान के................।
अच्छा आलेख है दादा

Swarajya karun ने कहा…

ओबामा तो एक प्रतीक हैं उस देश की साम्राज्यवादी सत्ता का ,जिसने वियतनाम और इराक जैसे देशों पर क्या-क्या जुल्म नहीं ढाए ? आलोचना ओबामा की नहीं ,बल्कि उनके देश की विस्तारवादी नीतियों की होनी चाहिए . इतिहास गवाह है. इराक से भी अमेरिका ने पहले दोस्ती का खूब नाटक किया था. बाद में क्या हुआ ? ये तो ज्यादा पुरानी बात नहीं है .जार्ज बुश ने तेल के कुओं पर कब्जे के लिए रासायनिक हथियारों के आरोप लगाकर कत्ले-आम कर उस छोटे से देश को बर्बाद कर दिया.बाद में चला कि रासायनिक हथियार वहाँ थे ही नहीं !तब तक उसने इराक को गुलाम बना लिया.संयुक्त-राष्ट्र संघ के निर्देशों की भी अमेरिका ने परवाह नहीं की . ऐसे खतरनाक देश से हमें सावधान रहने की ज़रूरत है , जो गाहे-बगाहे दूसरे देशों के आतंरिक मामलों में अपनी टांग अडाता है .हमे अपने राष्ट्रीय -स्वाभिमान का ध्यान रखना चाहिए. दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

जी इस बात से कौन असहमत होगा मेरे दौनों बराक़ साहब के नाम एक खत
महाजन की भारत-यात्रा
आलेख भारतीय राष्ट्रवादी सोच को ही सामने लाने की कोशिश है

Deepak chaubey ने कहा…

अमेरिका को आर्थिक मंदी से उबारने की योजना के तहत अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत यात्रा पर आये हुए हैं | इस दौरे में वे भारत के साथ ज्यादा से ज्यादा समझौते करना चाहेंगे और इसके साथ वह चाहेंगे की भारत में अमेरिकी निर्यात अधिक से अधिक बढे | आज हम मजबूत स्तिथि में हैं अपनी बात रखने के लिए बस हमें इनसे थोडा सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि अमेरिका हमेशा से दूसरो के मामले में टांग अड़ाता रहा है पहले दोस्ती का नाटक करता है फिर उसी दोस्त को मौका देखकर बर्बाद कर देता है |

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

दीपक जी बिलकुल सही कहा और मेरा आशय अपने दौनो आलेखों में यही तो है
बराक़ साहब के नाम एक खत
महाजन की भारत-यात्रा

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

करोडों डालर झोंक कर भी वे पाकिस्तान को अपना नहीं बना सके और इस का अहसास उन्हें कहीं सालता भी होगा॥ देखें, इस अहसास को कब तक बरकरार रख पाते हैं:)

ZEAL ने कहा…

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अरे भाई , शान्ति के लिए गलती से मिले नोबेल प्राइज का मान रख रहे हैं जनाब ओबामा।

.

Meenu Khare ने कहा…

दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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