ज़िंदगी मुझे मंज़ूर है
तुझे खोजना कूड़े-करकट के ढेर में
ढेर में छिपी पन्नियों में.....!
और
और
उन बीमारियों में जो मिलेगी मुझे इस कूड़े में.....?
ज़िंदगी
यहीं से मिलेगी वे पन्नियाँ
जिनसे उगेगी रोटियाँ
रोटियाँ जो पेट भरेंगी मेरी उस माँ का
जिसने फुटपाथ पे मुझे जना था।
वो माँ जो अलग-अलग पुरुषों
को मेरा बाप बताती थी !
हाँ वही माँ जिसकी बेटियाँ दस बरस के बाद कभी
साथ न रही
जी हाँ !
वही माँ जो ममता
भरी आंखों से मुझे टक-टकी बांधे
निहारती जब टक मैं घर नहीं लौटता ।
वो माँ जो मेरी भगवान है
जिसे दुनियाँ से कोई शिकायत नहीं
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