ज़िंदगी मुझे मंज़ूर है
तुझे खोजना कूड़े-करकट के ढेर में
ढेर में छिपी पन्नियों में.....!
और
और
उन बीमारियों में जो मिलेगी मुझे इस कूड़े में.....?
ज़िंदगी
यहीं से मिलेगी वे पन्नियाँ
जिनसे उगेगी रोटियाँ
रोटियाँ जो पेट भरेंगी मेरी उस माँ का
जिसने फुटपाथ पे मुझे जना था।
वो माँ जो अलग-अलग पुरुषों
को मेरा बाप बताती थी !
हाँ वही माँ जिसकी बेटियाँ दस बरस के बाद कभी
साथ न रही
जी हाँ !
वही माँ जो ममता
भरी आंखों से मुझे टक-टकी बांधे
निहारती जब टक मैं घर नहीं लौटता ।
वो माँ जो मेरी भगवान है
जिसे दुनियाँ से कोई शिकायत नहीं
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9 टिप्पणियां:
ye rachana to mene din mei bhi padi thi. bhut khub. likhate rhe.
वकील साहिबा
सादर अभिवादन
आपने दोपहर जो पढी थी वो रचना इससे कुछ अलग थी
और ब्लॉग था खजाना .
आप का आभारी हूँ जो आप मेरे सारे ब्लॉग देख रहीं हैं
url for khazana http://billoresblog.blogspot.com/
url for misfit
http://sanskaardhani.blogspot.com/
ये भी बहुत बढ़िया.
क्या कहें? बहुत बढ़िया लिखा है आपने।
घुघूती बासूती
shama jee kee koshish / mail
post kar rahaa hoon
Girishji,
Aapke commentke liye bohot,bohot dhanyawad!!Maine aapke blogpe
comment/jawab chhodneki kaafi koshish ki lekin safal nahi rahi!
Blog ka maza zaroor uthaya !
Shama
Maza aaya gaya!!
Shama
Likhna chah rahi thi,"maza aa gaya"!
Shama
Thank's Shama je
घुघूती बासूती
Rashmi je
or SAMEER BHAI
really bahut accha likha hai
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