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16.11.10

गनीमत है कि बेडरूम तक इनका बस नहीं चलता. वरना ?

              भड़ास ब्लाग पर प्रकाशित   टीआरपी और पाखंड चेहराआलेख बेहद समयानुकूल लगा किंतु   टी आर पी के लिये मीडिया की हथकण्डे बाज़ी के लिये पाठक /दर्शक  भी सनसनाहट पसंद करतें हैं.१० फ़ीसदी लोग ही सही मायने में सच्चे पाठक या दर्शक हैं और इसी बात का फ़ायदा उठाता है "मीडिया" . मीडिया ही क्यों मनोरंजन जगत भी इसी का उदाहरण है. सबको चाहिये सनसनाहट रूमानी बातैं, अधनंगे चित्र गनीमत है कि बेडरूम तक इनका बस नहीं चलता. वरना खैर छोड़िये एक दौर था पति-पत्नि भी मनोहर कहानियों टाइप की किताबें घर में छिप कर बांचते थे. किंतु अब सारे विषय कथानकों में लपेट कर सामान्य रूप से टी०वी० पर परोसे जा रहे हैं. टी आर पी के लिये भागते मीडिया की दुर्दशा की ज़वाब देही हमारी भी तो उतनी ही है भाई . अब तो ब्लाग भी अछूते नहीं. रीडरशिप पाने के लिये जिन विषयों का चयन होता है उनमें पूर्वोक्त विषय अवश्य शामिल होते हैं. सभी उसी दौड़ में हैं. इस आलेख का शीर्षक सामान्य होगा तो कौन आयेगा देखने लेकिन ज़रा भी सनसनाहट वाला हुआ तो पक्का रीडरशिप दो शौ क्या पांच सौ तक निकल जावेगी.  पिछले चार दिन   मैने एक प्रयोग किया और साबित हुआ कि ब्लागर बिरादरी क्या चाहती है :- 
भारत ब्रिगेड जिसका पेज रेंक तीन है के पाठक आध्यात्मिक पोस्ट लगाने के बाद लगभग "71" थे जबकि मिसफ़िट पर"दो सुन्दरीयों के साथ : उडनतश्तरी दिल्ली में उतरी..!!""दो नहीं..... समीरलाल जी के साथ आईं थीं छै: तरुणियां !!"जैसी पोस्ट के पाठक दो सौ के आस पास रहे . आज भी शीर्षक जन रुचि का लगाया है. देखिये ब्लाग की टी.आर.पी. एकाएक बढ़ जावेगी. यह मेरे ब्लाग के लिये भले अच्छी बात है किंतु मेरी नज़र में ठीक नहीं.
   गैर अकादमिक पठन-पाठन  में यौन,राजनीति, ज्योतिष, विवाहेत्तर-सम्बंधों, फ़िल्म, फ़िल्मी-सेलीब्रिटीज़ पर गाशिप, सनसनीखेज विषयों पर केंद्रित   आलेख में पाठकों की सर्वप्रथम  अभिरुचि होती है, फ़िर भी हिन्दी ब्लागिंग के बारे में स्पष्ट करना ज़रूरी सार्थक लेखन के धनी लोगों की उपस्थिति की वज़ह से तथा एग्रीगेटर की आचार सहिंता के चलते फ़िर भी लोग धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करते इधर नज़र आ ही रहे हैं . बहरहाल केवल एक याचना है कि हम हिन्दी ब्लागिंग को हैप्पी-हिन्दी-ब्लागिंग के रूप में बनाएं रखें मुम्बई,जबलपुर,वर्धा,दिल्ली और अब रोहतक सभी जगह इस बात पर एक मत था जानकर खुशी है .  

16.8.09

मांगो तो हजूर दिल और जाँ सब कुछ तुमको दे दूंगीं



वो दूर से देख मुस्कुराती शोख चंचल नयनो वाली सुकन्या मुझे भा गई ऊपर की जितनी भी तारिकाएँ हैं उनका हुस्न फीका पड़ गया उसके सामने।
मैंने पूछा - मुझे ,कुछ देर का वक्त मिलेगा
क्यों नहीं ! ज़रूर मिलेगा ।
उत्तर में थी मादक खनक ...एक-एक काफी का आफ़र उसमें भी सहज स्वीकृति मैंने फ़िर कहा -आज मेरी छुट्टी है जबलपुर के पास भेडाघाट है चलो घूम आते हैं उसमें भी सहमत लगा आज लाटरी लग गई वीरानी जीवन बगिया में प्रेमांकुर फूट पड़ा .... सोचा आज पहले दिन इतनी समझदार ओर मुझे सहज स्वीकारने वाली अनुगामिनि मिल गई अब जीवन का रास्ता सहज़ ही कट जाएगा।
बातों ही बातों में मैंने कहा: तुम मुझे कुछ देने का वादा कर सकोगी ?
वादा क्या दे दूंगीं जो कहोगे
दिल,
हां ज़रूर
मोहब्बत
ऑफ़ कोर्स
वफ़ा
क्यों नहीं ?
और कभी जब मुझे वक्त की ज़रूरत हो तो
ज़नाब ये सब कुछ अभी के अभी या फ़िर कभी ?
सोच के बताता हूँ कुछ दिन बाद कह दूंगा
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घर में माँ के ज़रिये पापा तक ख़बर की मुझे ".......'' से प्यार हो गया है । अब चाहता हूँ कि मैं शादी भी उसी से करुँ ! घर से इजाज़त मिलते ही मैंने फोन डायल किया....98........... लेटेस्ट रूमानी गीत न होकर "एक मीरा का भजन हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा....''सुन कर लगा आग उधर भी तेज़ है इश्क की जैसी इधर धधक रही है ।
बातों ही बातों में मैंने उससे वो सब दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त की मांग कीउसने कहा शाम को तुम्हारे घर रहीं हूँये सब साथ ले आउंगी
शाम को पापा,माँ,दीदी अपनी होने वाली बहू का इंतज़ार कर रहे थे। मेरे मन में भी चाकलेट के रूमानी विज्ञापन वाले प्यार का जायका ज़ोर मार रहा था। एक खूबसूरत नाज़नीन का घर में आना मेरे लिए दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त साथ लाना मेरी उपलब्धि थी ।
सभी सभी उससे बारी बारी बात कर रहे थे अन्त में मुझे मौका मिला . मैने पूछा "वो सब जो मैने कहा था "
"हां लाई हूं न"
सुनहरी पर्स खोल कर उसने मेरे हाथों रख दीं - दिल,मोहब्बत,वफ़ा और वक्त की सीडीयां और पूछने लगी : पुरानी फ़िल्मों के शौकीन लगतें हैं आप . ?
"हां"
अब मुझे फ़िल्म ज़हर और ज़ख्म की सी डी ज़रूर ला देना .
ज़रूर ला दूंगी.... पर एक हफ़्ते बाद कल मेरी एन्गेज़्मेंट है. एन्गेज़्मेंट के बाद हम दौनो हफ़्ते भर साथ रहेंगे एक दूसरे को समझ तो लें .

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...