"भियाजी, काम की बड़ी-बड़ी मछली तो पानी क भित्तर मिलच !
जी देर शाम रविवार 6 फरवरी 2011 को हरदा पहुंच सका . जहां से अगली सुबह मुझे सपत्नीक खिरकिया रवाना होना था. जहां स्वर्गीय श्री शिवानन्द जी चौरे मेरे साढू भाई के त्रयोदशी संस्कार में शामिल होना था.छोटी बहन के बेटों ने घेर लिया. बहुत देर तक सोने न दिया, दुनियां जहान की बातें हुईं. ये अपने निक्की राम थे जो मामा के एन सामने ख्ड़े हो गये बोले :-”मामाजी. लीजिये फ़ोटो " निक्की फ़िर अन्य दो बेटे लकी,विक्की नेट,ब्लाग, माया कैलेण्डर, आदि पर देर तक बतियाते रहे. दूसरे दिन सोचे समय से एक घंटे बाद हम किरिकिया पंहुंचे. कैलाश स्वर्गीय पिता जी के पिंड इंदिरासागर परियोजना के बैकवाटर क्षेत्र के ले आया समर्पित करने त्रयोदशी की पूजन के बाद माँ नर्मदा के भीतर प्रवाहित करने इससे जलचर लाभान्वित होंगे . ये जो दूर तक आप अथाह जल राशि देख रहे हैं न यहीं बसा करते थे कोई 250 गांव जिनमें थी आबादी, आबादी की आंखों मे थे सपने, सपने जो किसान के सपने थे, मज़दूर के सपने थे, पंडित,लोहार,सुतार, धीवर,सोनार, मास्टर,पोस्ट-मैन, चपरासी, किसी के भी थे थे ज़रूर. पुरखों की विरासत सम्हालते थे कुछ, जो जमीनें खोट