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10.8.11

बधाईयां अर्चना चावजी संगीता पुरी, घुघूती बासूती, रश्मि स्वरूप,निर्मला कपिला जी को ..

हिन्दी की मशहूर ब्लागर वेबकास्टए पाडकास्टर मेरे मन की..स्वामिनी एवम मिसफ़िट की सहभागी ब्लागर  तथा  ब्लाग  अर्चना चावजी  सौम्य एवम सतत कर्मशील ब्लागर हैं.. आवाज़ पर इनका हालिया प्रसारण हवा महल आकाशवाणी के आडियो सीरियल  "हवा महल" की याद दिलाता है..


ब्लाग इन मीडिया पर प्रकाशित सूचना के अनुसार,
9 अगस्त 2011 को The New York Times के इंटरनेट संस्करण में संगीता पुरीघुघूती बासूतीअर्चना चावजीरश्मि स्वरूप,निर्मला कपिला का उनके ब्लॉगों के नाम सहित तथा रवि रतलामी का उल्लेख करते हुए भारत में महिला ब्लॉगरों पर आधारित लेख
.
यही आलेख प्रिंट में, The New York Times के एशियाई संस्करण The International Herald में 10 अगस्त 2011 को पृष्ठ 2 पर छपा है. यहाँ उसका सांकेतिक प्रस्तुतिकरण है क्योंकि वह पृष्ठ नहीं मिल सका, केवल मुख्य पृष्ट ही मिल सका
.
                                     संगीता पुरीघुघूती बासूतीअर्चना चावजीरश्मि स्वरूप,निर्मला कपिला को 
मिसफ़िट की ओर से  हार्दिक बधाईयां 
भवदीय
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"


4.2.11

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों

साभार CM Q
गोपाल दास नीरज जी का गीत
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों
- गोपालदास "नीरज" (Gopaldas Neeraj)

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है |

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों, चाल बदलकर जाने वालों
चँद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है |

लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।

 




इस गीत को स्वरों में पिरोया है मिसफ़िट:सीधीबात की सहसंचालिका  पाडकास्टर अर्चना चावजी ने 



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