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5.12.10

जबलपुर कार्यशाला के बाद का दिन : मेरी नज़र से

                  जबलपुर ब्लागर्स मीट के दूसरे दिन बाटी-भर्ता का माहौल था मेरी काया बुखार से तप रही थी . उधर कण्डों पर सिकी मनभावन बाटियों से वंचित रहा.पापी के भग में कहां पण्ढरपुर खैर दूसरे दिन का अहवाल नीचे आदरणीय साथियों नें पेश किया मज़ा आ गया
         आधिकारिक रपट के बाद : -  
 श्री समीर लाल की पोस्ट    :- इनसे मिले, उनसे मिले: देखें किनसे मिले
श्री महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट :-
यार बबाल जी दाल बाटी खाने का तरीका क्या है ?
श्री विजय तिवारी जी :-   सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर होना ब्लागर्स का दायित्त्व है : 

                                     जबलपुर ब्लागिंग कार्यशाला पर विशेष
श्री विजय कुमार सप्पती की पोस्ट :- जबलपुर, ब्लागर सम्मेलन:स्नेह भरा अनुभव 
श्री ललित शर्मा जी की पोस्ट      :-  पनघट की पनिहारिन, फ़ाड़ू शायर, रुम नम्बर 120 और गक्कड़ भर्ता -----
 
     बच्चे पढ़ रहे है श्रीमति जी पीपली लाईव को ध्यान से देख रहीं हैं.वास्तविकता है ग्रामीण भारत की. हम भारतीय हैं ही ऐसे फ़िल्म और सियासत के तिलिस्म से जकड़े नत्था तो रोज़ मिलता है हर गांव में रहता है. खैर छोड़िये ब्लाग पर चर्चा के बाद जब आत्म मंथन किया तो पाया कि कार्यशाला में व्यवस्था गत कुछ कमियां रहीं 

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                                                   कार्यशाला: मेरी भूलें
  1. मेरे द्वारा फ़ोन पर बैनर बनाने का आदेश दिया था .... जो सर्वथा ग़लत था. स्वयम यह किया जाना था.
  2. समारोह में घर से तैयार होकर वापस आने में विलम्ब किया जो अक्षम्य था फ़िर भी सभी ने क्षमा किया 
  3. हिमांशु राय ,चैतन्य-भट्ट यानी चुन्नू भैया, अन्शु तिवारी, अजय त्रिपाठी जी, संजीव चौधरी, आदि को कहना भूल गया जो मेरी भयानक ग़लतियों में से एक है.
  4. अरविंद भाई से आज़ तक.... वीडियो न मिल पाया  यह भी मेरी एक ग़लती है. भले ही वो व्यस्त हैं
  5. रपट में फ़ोन्ट के प्रारूप में विविधता से रपट  के पठन में प्रभाव पड़ा है- इस प्रयोग  को यथावत इस लिये रखना चाहता हूं ताक़ि भविष्य में  अनावश्यक प्रयोगवादी न बनूं. 02+02=05 करने की कोशिशें ही अनावश्यक प्रयोग है.    
  6. _________________________________________________________?             

                  मित्रो, सादर-अभिवादन, मैं गीत कार कवि होने के साथ एक कथाकार भी हूं. कई छोटी छोटी विचार कहानियां सुना चुका हूं मित्रों को. अब उपन्यास की ओर रिख किया  अगर कोई बाधा न आई तो मेरा-उपन्यास "सर्किट-हाउस" ज़रूर जनता के सामने आएगा अध्याय एक जो अपने आप में एक पूरी कहानी है सादर पेश है.
"सर्किट-हाउस"
( नोट:-इस कहानी का प्रकाशन करने वाले अखबार/पत्रिका  पारिश्रमिक स्वरूप दी जाने वाली राशी अवश्य दें ताकि किसी एक अपाहिज छात्र/छात्रा को मदद पहुंचाई जा सके अथवा वे सीधे किसी भी चिह्नित अपाहिज छात्र/छात्रा को मदद पहुंचाएं तथा किये गए कार्य का विवरण मुझे भेज दें सादर )

            ( आज़ मन किसी बात को लेकर फ़िर उदिग्न है अक्सर छितिर-बितर मन के मनके जोड़ लेता हूं. उस दिन खूब लिख लेता हूं जब कोई दर्द हृदय को छलनी करे. पर पलायन से मेरा कोई नाता नहीं जितना सताओगे दूने वेग से सामने आऊंगा. ऐसे ही किसी दिन लिखनी शुरु की थी कहानी जो सामने ला रहा हूं इस कथा का  किसी ज़िंदा या मृत सरकारी आदमी से कोई लेना देना नहीं यदी कहानी का कोई किरदार नाम अथवा चरित्र से मैच करे तो इसे संयोग ही कहा जावेगा. )
               ब्रिटिश ग़ुलामी के प्रतीक की निशानी सर्किट हाउस को हमारे तन्त्र ने  ठीक उसी उसी तरह ज़िंदा रखा जैसे हम भारतीय पुरुषों ने शरीरों  के लिये  कोट-टाई-पतलून,अदालतों ने अंग्रेजी, मैदानों ने किरकिट,वगैरा-वगैरा. एक आलीशान-भवन जहां अंग्रेज़ अफ़सरों को रुकने का इन्तज़ाम  हुआ करता था वही जगह सर्किट हाउसके नाम से मशहूर है. हर ज़रूरी जगहों पर  इसकी उपलब्धता है. कुल मिला कर शाहों और नौकर शाहों की आराम गाह .  मूल कहानी से भटकाव न हो सो चलिये सीधे चले चलतें हैं  उन किरदारों से मिलने जो बेचारे इस के इर्द-गिर्द बसे हुये हैं बाक़ायदा प्रज़ातांत्रिक देश में गुलाम के
सरीखे…..! तो चलें
                         आज़ सारे लोग दफ़्तर में हलाकान है , कल्लू चपरासी से लेकर मुख्तार बाबू तक सब को मालूम हुआ जनाब हिम्मत लाल जी का आगमन का फ़ेक्स पाकर सारे आफ़िस में हड़कम्प सा मच गया. कलेक्टर साब के आफ़िस से आई डाक के ज़रिये पता लगा  अपर-संचालक जी पधार रहें किस काम से आ रहें हैं ये तो लिखा है पर एजेण्डे के साथ  कोई न कोई हिडन एजेण्डा  भी होता है  …?   जिसे  वे कल सुबह ही जाना जा सकेगा .
दीपक सक्सेना को ज्यों ही बंद लिफ़ाफ़ा प्रोटोकाल दफ़्तर से मिला फ़टाफ़ट कम्प्यूटर से कोष्टावली आरक्षण हेतु चिट्ठी और मातहतों के लिये आदेश टाईप कर ले आया बाबू. दीपक ने दस्तख़त कर आदेश तामीली के वास्ते चपरासी दौड़ा दिया गया.
चपरासी से बड़े बाबू को मिस काल मारा बड़े बाबू साहब के कमरे में बैठा ही था मिस काल देख बोला :-साब राम परसाद का मिसकाल है..!
दीपक:- स्साला कामचोर, बोल रहा होगा सायकल पंक्चर हो गई..?
मुख्तार बाबू ने काल-बैक किया  सरकारी फ़ोन से . 
हां,बोलो…!’
 ’हज़ूर, श्रीवास्तव तो घर पे नहीं है..?
लो  साहब से बात करोमुख़्तार बाबू बोला,
 रिसीवर लेकर दीपक ने अधीनस्त फ़ील्ड स्टाफ़ रवीन्द्र श्रीवास्तव की बीवी को बुलवाया फ़ोन पर :- जी नमस्ते नमस्ते कैसीं हैं आप..?
ठीक हूं सर ये तो सुबह से निकलें हैं देर रात आ पाएंगे बता रहे थे आप ने कहीं ज़रूरी काम से भेजा है..?”
अर्रे हां…. भेजा तो है याद नहीं रहासारी ठीक है भाभी जी आईये कभी घर सुनिता बहुत तारीफ़ करती हैं आपकी
जी, ज़रूर ….
राम परसाद को दीजिये फ़ोन..?”
     कुर्सी पर  लगभग लेटते हुए दीपक का आदेश रामप्रसाद के लिये ये था कि वो दीपक की जगह अब्राहम का नाम भर के आदेश तामीली उसके घर पर करा दे.
     “अब्राहमफ़ील्ड से वापस आकर सोफ़े पे पसरा ही था कि     रामप्रसाद की आवाज़ ने उसके संडे के लिये तय किये  सारे कामों पर मानों काली स्याही पोत दी. उसने आदेश देखते ही ना नुकुर शुरु कर दी अरे रामपरसाद श्रीवास्तव का नाम तुमने काटा मेरा भी काट के शर्मा का लिख दो
सा,रखना हो तो रखो, वरना लो साहब को मिस काल किये देता हूंकहो तो…?
अर्र न बाबा, वो तो मज़ाक कर रा था लाओ किधर देना है पावती..?”
   लोकल-पावती-क़िताब आगे बढ़ाते हुए अब्राहम से पूछता है:-सा,वो एम-वे वाला धंधा कैसा चल रा है
 मतलब समझते ही बीवी को आवाज़ लगाई:-भई, सुनती हो ले आओ एक टूथ-पेस्ट , अपने परसाद के लिये..! पचास का नोट देते हुए –’हां और ये ये लो रामपरसाद, आज़ बच्चों के लिये कुछ ले जाना. दारू मत पीना बड़ी मेहनत की कमाई है.
जी हज़ूरदारू तो छोड़ दी ? रामपरसाद ने हाथों में नोट लेकर कहा अरे सा, इसकी क्या ज़रूरत थी. आप भी न खैर साहबों के हुक़्म की तामीली मेरा फ़रज़ (फ़र्ज़) बनता है हज़ूर .
        हज़ूर से हासिल नोट जेब में घुसेड़ते ही रामपरसाद ने बना लिया बज़ट  , पंद्र्ह की दारू, पांच का सट्टा , दस का रीचार्ज, बचे बीस महरिया के हवाले कर दूंगा. जेब में टूथ-पेस्ट डाल के रवानगी डाल दी.
सुबह सरकारी फ़रमान के मुताबिक विभाग के अपर-संचालक हिम्मत लाल जी की जी अगवानी के लिये दीपक सक्सेना , अब्राहम, सरकारी गाड़ी से स्टेशन पर पहुंच चुके थे  उन सबके पहले एक दम झक्कास वर्दी पर मौज़ूद था.  वो भी गाड़ी .के आगमन के नियत समय  के तीस मिनिट पहले. दीपक  सक्सेना ने लगभग गरियाते हुए सूचित किया :-ससुरा, अपने दोस्त के बेटे के रिसेप्शन में आया है.
अब्राहम ने पूछा :-तो मीटिंग लेगें.. और टूर भी नहीं ?
दीपक:-लिखा तो है फ़ेक्स में पर पर तुम्ही बताओ इतना सब कर पायेंगे. चलो आने पे पता   चलेगा.
 अब्राहम:-हां सर, वो प्रोटोकाल वाले बाबू से रात बात हो गई थी . कमरा नम्बर तीन और पीली-बत्ती वाली  गाड़ी अलाट हो गई है. एस०डी०एम०साब से भी बात हो गई  थी.
 दीपक:- सुनो भाई, तुम बाबू को कुछ दे दिया करो ?  
अब्राहम:-देता हूं सर,
 दीपक:- हां, तो पुन्नू वाली फ़ाईल का क्या हुआ…?
अब्राहम:- सर, हो जाता तो अप्रूवल न ले लेता आपसे.
  इस हो जाता में  गहरा अर्थ  छिपा था. जिसे एक खग ने उच्चारित किया दूजे  खग ने समझा.
 दीपक:-  हां. ये तो है.
 अब्राहम:- सर, कोई मीटिंग नहीं तो चलिये मैं चर्च हो आऊंगा.
 दीपक:-  . अरे, जीजस नाराज़ न होंगें और अगर साहब नाराज़ हुए तो सब धरा रह   जाएगा.
अब्राहम:-  ओ के सर
 दीपक:-  ज़रा, ट्रेन का पता लगाओ ?
अब्राहम:- सर, वो गिरी जी  को भी बुला लेते उसका स्टेशन पर अच्छा परिचय है..?
 दीपक:-  ओह तो तुम्हारा भी ज़वाब नहीं जाओ भाई जिससे मुझे घृणा है तुम तो बस ?
अब्राहम:- सारी सर !
 दीपक:-  आईंदा इस तरह के नामों का उच्चारण वर्ज़ित है.
                              दीपक का चिढ़ना स्वभाविक था. काम धाम का आदमी न था स्साला कमाई धमाई के नाम पे ज़ीरो इधर सर्किट-हाउस और बीवियों के खर्चे इत्ते बढ़े हुये थे कि गोया कुबेर भी उतर आए तो इन दौनों पे लगाम लगाने की ताक़त उसमें नहीं ऊपर से डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट का बढ्ता प्रचार सरकारी अफ़सरों और मुलाज़िमों की तो बस दुर्दशा समझिये. और सुबह सुबह उस नाकारा मरदूद का नाम लेकर सुबह खराब करदी . ज़ायका बिगाड़ू  स्थिति से मुक्ति की गरज़ से अब्राहम डिप्टी एस एस के कमरे में तांक-झांक यूं कर रहा मानो गाड़ी इसी चेम्बर में छुपा के रखी हो.
बोलिये
कुछ नहीं सर वो इंदौर-बिलासपुर
भई, इनक्वैरी में पूछिये काहे हमारा टाईम खराब करतें हैं आप…?
विश्वकर्मा जी, मै गिरी साब का मित्र हूं..!
पहले देना था न रिफ़रेन्स आईये बैठिये डिप्टी एस एस ने कहा.
                          डिप्टी एस एस की आफ़र की गई कुर्सी पर सवार अब्राहम बाहर खड़े यात्रियों को हिराक़त भरी नज़र से निहारने लगा इस बीच  डिप्टी एस एस  ने ट्रेन की पोज़ीशन ली पता चला कि नरसिंहपुर में बार बार चेन पुलिंग होने से  गाड़ी  समय से एक घण्टा लेट हो रही है. अंदर की पक्की खबर मिलते ही अब्राहम तुरंत रवाना हुआ बिना आभार व्यक्त किये . उधर जिधर ए०सी० डब्बा रुकने के लिये रेलवे ने स्थान  नियत पर दीपक  एक अन्य महिला अधिकारी से गपिया रहा था, जिसका अफ़सर भी इसी से आने वाला था .  
अब्राहम दीपक ने पूरे गब्बर स्टाईल में सवाल दागता है: क्या खबर लाये हो ?”
सर, बस साढ़े छै: के बाद ही आयेगी .
बातों में खलल न हो इस गरज़ से दीपक ने अब्राहम की तरफ़ मुखातिब हो कहा:- ठीक है तो जाओ रामपरसाद को लेकर चाय ले आओ ?
                     लोक-सेवा आयोग इसी टाईप के  क्लास टू अर्दलीयों की भर्ती करता है. जो हज़ूर का हुक़्म सर माथे लगाएं और फ़ौरन कूच करें आदेश के पालन के लिये.
दीपक की तरह कई और अफ़सर अपने अपने अफ़सरों को लेने आये थे जो आपस में दो या तीन के समूह में जन्मभूमि,डायरेक्ट-प्रमोटी,यहां तक कि जाति के आधार पर छोटे-छोटे खोमचों में जमा हो चुके थे, यानी खुले आम क्षेत्रीयता, जातिवाद,और तो और प्रमोटी-डायरेक्ट जैसे वर्ग-भेद का सरे आम प्रदर्शन . क्या कर होंगे मत पूछिये ब्रह्म-मूहूर्त में इन मरदूदों ने   मुख्य प्लेटफ़ार्म पर मातहतॊं और पूर्ववर्ती अफ़सरों और अपने अपने बासों की इतनी  चुगलियां  कीं कि सारा वातावर्ण नकारात्मक उर्ज़ा से सराबोर हो गया.
दीपक जी चाय पिला रहें है इस बात की खबर  बोपचे साब को मिली तुरंत पहुंच गये सलामी देने
अरे भई ,सक्सेना जी, कैसे सुबह सुबह ?
नमस्कार,अपर-संचालक महोदय आ रहें हैं आप कैसे ..?
बोपचे ने मैडम को सर-ओ-पा भरपूर निहारते हुए  कहा:- बस हम भी ऐसे ही मंत्री जी के पी ए का साला और उसकी पत्नी आ रहे हैं. उनको तेवर में माता जी के दरबार में कोई मनता पूरी करनी है सो हम आए हैं चाकरी को . अब बताएं हमारे कने कौन सा गाड़ी घोड़ा है जो ये सब करतें फ़िरें. फ़िर भी ससुरे छोड़ते कहां हैं..?
जी सही कहा..! मैडम और दीपक ने हां हुंकारा किया. तभी अब्राहम चाय लेकर आया पी एस सी सलैक्टेट अर्दली था सो समझदारी से दो की जगह चार चाय ले आया.
बोपचे:- ई अब्राहम बहुतई काम के अफ़सर हैं बहुत बढ़िया चाय ले आये गुप्ता कने से लाए हो का…?
हां, सर अब्राहम बोला
अरे भई सक्सेना जी, बड़े भाग तुम्हारे जलवे दार विभाग मिला है- गाड़ी घोड़ा, अपरासी-चपरासी, और……..!
दीपक : ( बोपचे इस और को परिभाषित न कर दे  इस भय से ) और क्या विभाग की बदौलत चुनाव में हार जीत होती है कौन सरकार इसे हरा न  रखेगी बताईये   कोई और सेवा हो तो
अरे वाह दीपक जी सेवा क्या बस गाड़ी की झंझट है..? आज़ बस के लिये.
ठीक है, किये देता हू व्यवस्था..दीपक के लिये  अच्छा मौका था गिरी को रगड़ने का मोबाईल लगाया उधर फ़ोन उठते ही :- नमस्ते नमस्ते कैसे हो अच्छा एक काम करना दस बजे सर्किट हाउस में गाड़ी भेज देना क्यों बोप
बोपचे : न भाई नौ बजे ठीक नौ बजे
दीपक:- यार दस नहीं नौ बजे डाट नौ बजे हां बोपचे साब के पास गाड़ी भेज देना ? क्या , ड्रायवर नहीं आएगा ? अरे सरकारी काम है बुलाओ साले को . हम भी तो सन डे को खट रये हैं क्या बीवी बीमार है उसकी ..? तो  मैं क्या करूं प्रायवेट लगा के भेजो कुछ खर्च कर लिया करो जानते नहीं प्रौढ़ शिक्षा मंत्रीके रिश्तेदार आने हैं. बेचारे बोपचे जी ने कहा है,पहली बार. बात ज़्यादा न बढ़ाते हुये फ़ोन काटते ही बोपचे से बोला:- ये स्साला गिरी जो है न इतने कानून बताता है कि संविधान की संरचना करने वाले का अवतार हो ? साला नटोरिअस प्रमोटी है न तीनों खिल खिला के हंस दिये.
दीपक और मैडम तनु लोक सेवा आयोग की परीक्षा में साथ साथ थे. पास भी साथ-साथ हुए. तनु भी दीपक पर मोहित तो थी किंतु दीपक के बापूजी की बगावत के चलते मिलन पूरा न हुआ. पर पैंच आज़ भी लड़ा लेतें हैं दौनों. पहला इश्क़ दौनों को भुलाए न भूल पाता उस पर पोस्टिंग भी प्राय: पास में ही हो जाती है.  खैर सरकारी काम की आड़ में जो भी होता है वो सरकारी तो होता है. इससे किसी को क्या आपत्ति होने चली. तनु को मालूम  है कि व्यक्तित्व के हिसाब से दीपक को बेमेल बीवी मिली. जिसे वो ढो रहा है. दिल आज़ भी तनु की संदूकची में बंद है. तनु भी अपने मिसफ़िट पति को ढो ही रही थी. पर क्या करें पति से सात वादे जो कराए उस पोपले पंडत ने कब का मर गया वो पंडित खैर जो भी हो ज़िन्दगी ने रुतबा दिया, कमाई का बेहतरीन ज़रिया दिया तो फ़िर काहे की चिंता अब जिसका हसबैण्ड गंजा हो तो क्या हसबैंड न होगा बस न्यूनतम मुद्दों पे समझौता कर तनु बस सपनों में याद कर लेती है उधर दीपक भी गा लिया करता है "तुम होती तो ऐसा होता तुम ये कहतीं तुम वो करतीं आदि आदि..!" 
दुनियां भर में जहां सरकारी काम काज कानूनों के सहारे चलते हैं वही दूसरी और भारत में हर व्यवस्था क़ायदों से चला करती है. क़ानून ये है कि हज़ूर आयें तो कोई ज़रूरत नहीं कि उनके हर आगमन का सरकारी करण हो.,किंतु कायदा ये है कि हज़ूर की हर यात्रा का सरकारी करण हो और माहहतों द्वारा उनकी जी  हज़ूरी में कोई कमी न हो अब आप समझ ही गये होंगे कानून और क़ायदे का समीकरण. कानून संविधान की  ॠचाएं हैं तो कायदा राज शाही की का अनुवाद है.
नौकरी तो पिता जी किया करते थे सर उठा के. हमारे दौर में तो कितनी डिग्री दुम उठाना है कितनी नहीं  हज़ूरों की अनुमति पे निर्भर करता है. खैर इस का विशद विश्लेषण अन्य अध्यायों में होगा अभी तो दीपक की रोमांटिक सुबह की तरफ़ चलते हैं
                   गाड़ी का अगले पंद्रह मिनिट में प्लेट फ़ार्म पर आ जाएगी ये खबर  न तो दीपक सर को अच्छी लगी और  नही तनु मैडम को अब्राहम इसी बात की पड़ताल कर रहा था कि हाय इन दो बगुला-बगुली का जोड़ा काहे बिछड़ गया . प्रभू के खेल कितने निराले हैं
              अब्राहम का दिमाग फ़्रायड की तरह जुगाली करने में बिज़ी हो चुका था. शेर छाप बीड़ी का एड को ताकते ताकते विचारों की जुगाली किये जा रहा था कि राम परसाद बोला:-सा,गाड़ी आ गई..!
                     राम परसाद की सूचना से  साधना-भंग होते ही पुन: अपनी औकात में लौट आए साहब के पास दौड़ते हुए पहुंचा. तीनों ए०सी० के सामने आते ही लगभग कोच को प्रणाम की मुद्रा में देख रहे थे गोयाजगन्नाथ के रथ को निहार रहे हों. कोच से साहब का न निकलना उनको परेशान कर गया. कुछ देर बाद मोबाईल ने गुदगुदी की सो दीपक ने फ़ोन उठाया :-सर,”“हां सर, आप नहीं आये क्या पूरा कोच खाली हो गया ?”
भई,सक्सेना, तुम बे अक्ल हो मुझे फ़ोन करना था न …?
यस सर सारी सर  क्या हुआआप नहीं आए ?
अरे भई, सी एस मीटिंग इमर्जैन्सी मीटिग ले रहे हैं आप ट्रेन से मैडम को उतरवा लो. यलो सूट में हैं.
कोच में घुसते ही दीपक को तीन पीले सूट वाली देवियों को निहारा दूसरी वाली बेहद बेतकल्लुफ़ी से पसरीं थी बस पारखी नज़रों ने पहचान लिया और एक हल्की मुस्कान के साथ गुड मार्निंग मैम शब्द उगल दिया जिसके जवाब में उनके पास सवाल ही लौटा :- तो आप हैं दीपक जी
यस,मै
                              सच्चा साम्य वाद दिखा मैडम में.  मैडम का दृष्टिकोण सभी के प्रति एक समानता का था. उनके मन में प्रथम श्रेणी और चतुर्थ के मध्य कोई अंतर न समझ में आता आदेश दिया ये ये और हां वो वाला मेरा सामान है   . तीनों से दो ने क्रमश: पदानुक्रम में बारी बारी से भारी , हल्का सामान उठा लिया. सबसे हल्का सामान पानी की बाटल दीपक को  पकड़ा दी इस तरह सभी के हाथ काम के सरकारी नारे को बुलंद करती मैशान से सबसे आगे हो लीं शान से आहिस्ता आहिस्ता कोच से प्लेट फ़ार्म पर आ चुकीं थीं. सारा सामान चैक कर लिया न प्लेटफ़ार्म पर आते ही आदेश हुआ.                                                
जी फ़िर भी कुछ या आ रहा हो बताऎं मैम  ? इस बार अब्राहम ने पूछा..
अरे, वो लेज़ का पैकेट और एक मेगज़ीन है
के मैम देखता हूं, कह कर अब्राहम गाड़ी कोच में पुन: प्रविष्ठ हुआ हां हाथ का वैनिटी-बाक्स दीपक को थमाना न भूला. यह भी कहना न भूला कि आप लोग चलिये मैं आता हूं. यानी कुल मिला के दीपक बाटल और वैनिटी बाक्स ढोयेंगे अब…!!
                   लेज़ का पैकेट और वूमेन मेगज़ीन लेकर अब्राहम तब ट्रेन के कोच से उतरा जब उसने यह देख न  लिया की सारी पीठें गेट की ओर जा रहीं हैं. और फ़िर हौले-हौले लगभग सरकता हुआ चल पड़ा. कैलकुलेशन के मुताबिक जब उसे समझ आया कि अब कार तक पहुंच गये होंगे लोग चाल तेज़ करके पहुंच गया और हांफ़ने का अभिनय भी किया. जाते ही बोला :-मैगज़ीन तो मिल गई थी पर ये लेज़ नहीं दिख पा रहा था उपर वाली सीट पर मिला..बमुश्किल ?
                अपने बास दीपक से बाटल और वैनिटी बाक्स जो ढुलवाना था. मैम कार में सवार, उसके आगे पायलट करता दीपक सबसे पीछे अब्राहम की गाड़ी. पांच मिनट बाद ही सर्किट-हाउस के पोर्च में रुकी गाड़ी रूम नम्बरमें घुस गईं मैम यह कहते हुये दस बजे आ जाईये और हां शादी में शाम पांच बजे जाना है तब तक मार्बल-राक्स घूमना था. हां, नाश्ते में एग और ब्रेड-बटर बस . 
                अब्राहम ने रहमान को सब समझा दिया रामपरसाद की ड्यूटी पूरादिन सर्किट हाउस के लिये तय थी .
          पूरा दिन चाकरी में जुटे इन तीनों ने मैडम के हर आदेश  का पालन राजाज्ञा  मान के किया. भेड़ाघाट विज़िट, शापिंग आदि के फ़लस्वरूप बिलासपुर इंदौर एक्सप्रेस से वापसी के लिये पहुंचने तक  मैम की डाक दुगनी हो चुकी थी .
 कुल मिला कर रुपये…..” का उपरिव्यय.
              सोमवार सरकारी अवकाश था. मंगल को दीपक और जूनियर अफ़सर ने अपने अपने दफ़्तर में जाकर उन फ़ाईलों को गति दी जिनसे उपरिव्यय समायोजित होंगे

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