29.9.17

रामायण के राम जनजन के राम

एक था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ाविश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा राम को हम भारतीय जो आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं राम को मैने कभी भी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी 
रामायण-कालीन वैश्विक व्यवस्था का दृश्य 

रावण के संदर्भ में हिंदी विकीपीडिया में दर्ज़ विवरण को देखें जहां बाल्मीकि के हवाले से (श्लोक सहित ) विवरण दर्ज़ है- 

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। 
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूपसौन्दर्यधैर्यकान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।" 
रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति कामभाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्यारजस्वलाअकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
चूंकि इतनी अधिक विशेषताएं थीं तो बेशक कोई और वज़ह रही होगी जो राम ने रावण को मारा मेरी व्यक्तिगत सोच है कि रावण विश्व में एक छत्र राज्य की स्थापना एवम "रक्ष-संस्कृति" के विस्तार के लिये बज़िद था. जबकि त्रेता-युग का रामायण-काल के अधिकतर साम्राज्य सात्विकता एवम सरलतम आध्यात्मिक सामाजिक समरसता युक्त राज्यों की स्थापना चाहते थे. सामाजिक व्यवस्था को बनाने का अधिकार उनका पालन करने कराने का अधिकार जनता को ही था. सम्राठ तब भी जनता के अधीन ही थे केवल "देश की भौगोलिक सीमाओं की रक्षाशिक्षा केंद्रों को सहयोगअंतर्राष्ट्रीय-संबंधों का निर्वाह, " जैसे दायित्व राज्य के थे. जबकि रावण की रक्षकुल संस्कृति में अपेक्षा कृत अधिक उन्नमुक्तता एवम सत्ता के पास सामाजिक नियंत्रण नियम बनाने एवम उसको पालन कराने के अधिकार थे. जो वैदिक व्यवस्था के विपरीत बात थी. वेदों के व्याख्याकार के रूप में महर्षिगण राज्य और समाज सभी के नियमों को रेग्यूलेट करते थे. इतना ही नहीं वे शिक्षा स्वास्थ्य के अनुसंधानों के अधिष्ठाता भी थे यानी विशेषज्ञ को उनका अधिकार था .
इसके विपरीत रावण को रामायण कालीन अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवस्था का सबसे ताक़तवर एवम तानाशाह कहा जाए तो ग़लत नहीं है. रावण का सामरिक तनाव उस काल की वैश्विक-सामाजिक,एवम आर्थिक व्यवस्था को बेहद हानि पहुंचा रही थी.कल्याणकारी-गणतंत्रीय राज्यों को रावण के सामरिक सैन्य-बल के कारण रावण राज्य की अधीन होने के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग शेष नहीं होता. लगभग सारे विश्व में उसकी सत्ता थी.यानि रावण के किसी अन्य किसी प्रशासन को कोई स्थान न था.वर्तमान भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहां कि रावण को स्वीकारा नहीं गया. जिसका सत्ता केंद्र उत्तर-भारत में था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट कर देना चाहता था ताक़ि भारतगणराज्य जो अयोध्या के अधीन है वह अधीनता स्वीकर ले . इससे उसके सामरिक-सामर्थ्य में अचानक वृद्धि अवश्यम्भावी थी. कुबेर उसके नियंत्रण में थी यानी विश्व की अर्थव्यवस्था पर उसका पूरा पूरा नियंत्रण था. यद्यपिरामायण कालीन भौगोलिक स्थिति का किसी को ज्ञान नहीं है जिससे एक मानचित्र तैयार करा के आलेख में लगाया जा सकता ताक़ि स्थिति अधिक-सुस्पष्ट हो जाती फ़िर भी आप यह जान लें कि यदि लंका श्री लंका ही है तो भी भारतीय-उपमहादीपीय क्षेत्र में भारत एक ऐसी सामरिक महत्व की भूमि थी है जहां से सम्पूर्ण विश्व पर रावण अपनी "विमानन-क्षमता" से दवाब बना सकता था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट क्यों करना चाहता था..? 
रावण के अधीन सब कुछ था केवल "विद्वानों" को छोड़कर जो उसके साम्राज्य की श्री-वृद्धि के लिये उसके (रावण के) नियंत्रण रहकर काम करें. जबकि भारत में ऐसा न था वे स्वतंत्र थे उनके अपने अपने आश्रम थे जहां "यज्ञ" अर्थात "अनुसंधान" (प्रयोग) करने की स्वतन्त्रता थी. तभी ऋषियों .के आश्रमों पर रावण की आतंकी गतिविधियां सदैव होती रहतीं थीं. यहां एक और तथ्य की ओर द्यान दिलाना चाहता हूं कि रावण के सैनिक द्वारा कभी भी किसी नगर अथवा गांवों में घुसपैठ नहीं कि किसी भी रामायण में इसका ज़िक्र नहीं है. तो फ़िर ऋषियों .के आश्रमों पर हमले..क्यों होते थे
उसके मूल में रावण की बौद्धिक-संपदाओं पर नियंत्रण की आकांक्षा मात्र थी. वो यह जानता था कि  यदि ऋषियों पर नियंत्रण पा लिया तो भारत की सत्ता पर नियंत्रण सहज ही संभव है. साथ ही उसकी सामरिक शक्ति के समतुल्य बनने के प्रयासों से रघुवंश को रोकना .
अर्थात कहीं न कहीं उसे "रक्षकुल" की आसन्न समाप्ति दिखाई दे रही थी. 
राम के गणराज्य में प्रज़ातांत्रिक व्यवस्था को सर्वोच्च स्थान था. सामाजिक व्यवस्था स्वायत्त-अनुशाषित थी. अतएव बिना किसी राजकीय दबाव के देश का आम नागरिक सुखी था. 
रावण ने राम से युद्ध के लिये कभी पहल न की तो राम को खुद वन जाना पड़ा. रावण भी सीता पर आसक्त न था वो तो इस मुगालते में थी कि राम सीता के बहाने लंका आएं और वो उनको बंदी बना ले पर उसे राम की संगठनात्मक-कुशाग्रता का कदाचित ज्ञान न था 
वानर-सेना :-
राम ने वनवासियों के युवा नरों की सेना बनाई लक्ष्मण की सहायता से उनको योग्यतानुसार युद्ध कौशल सिखाया . 
सीता हरण के उपरांत रावण को लगा कि राम की सीता हरण के बाद बनाई गई वानर-सेना लंका के लिये (मेरी दृष्टि में यु +वा+ नर+ योद्धा ऐसे युवाओं की सेना जो वन में निवासरत थे राम ने उनको लक्ष्मण की सहायता से युद्ध कौशल सिखाया ) कोई खतरा नहीं है बस यही एक भ्रम रावण के अंत का कारण था . 
राम ने रावण का अंत किया क्योंकि रावण एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा था जो विश्व को अपने तरीक़े से संचालित करना चाहती थी. राम को पूरी परियोजना पर काम काम करते हुए चौदह साल लगे. यानी लगभग तीन संसदीय चुनावों के बराबर .
क्या रावण विस्तार वादी था ...?
          जी हाँ , आप सच की तरफ जा रहे हैं अगर इस प्रश्न का उत्तर हाँ में देंगें . रावण के पराक्रम और ज्ञान के चलते उसमें विस्तारवादी होने की उत्कंठा कूट कूट के भरी थी. विस्तार का अर्थ ही विश्व को नियंत्रित कर रक्ष-संस्कृति का विस्तार करना. रक्ष-संस्कृति का अर्थ है- खाओ-पीओ-मौज-करोयानी उपभोगता वादी संस्कृति जहां सब कुछ सीमा हीन होता है. आत्मनियंत्रण शब्द रक्षसंस्कृति की शब्दावली का हिस्सा नहीं है. यह शब्द ईश्वरवादियों के लिए आक्सीजन है .. ईश्वर वादी कभी भी पंथ-निर्मित नियमों को त्यागना नहीं कहता तो कोई भी रक्ष उसे स्वीकारना नहीं चाहता. बस विवाद का विषय यही है.
तो क्या रावण वाम मार्गी था ? ..
न रावण एकेश्वर वादी था. उसे बहुल देववाद से अरुचि थी . उसके राज्य की प्रजा भी केवल शिवास्क्त थी. जिसे रक्षाकुल के संरक्षक के रूप में रावण सा राजा मिला और विलासिता के लिए सम्पूर्ण संसाधन तो कौन ऐसे राजा के विरुद्ध हो सकता है.
सवाल तो यह भी उठ सकता है कि राम ने रावण को इस कारण मारा होगा कि वे विस्तार के साथ साथ धनार्जन चाहते थे .
मित्रो , रामराज्य का विस्तार सदाचार के विस्तार के साथ अतिवादी शक्ति स्रोत के अंत से आशयित था. क्योंकि राम के पास मध्य-एशिया, चीन, रूस, इंडोनेशिया थाईलैंड आदि क्षेत्रों का राजपाठ विरासत मिला था पर छोटी सी लंका पर राम ने आक्रमण क्यों किया ? सिर्फ इस लिए किया क्योंकि वे विधर्मी नेतृत्व का अंत चाहते थे.



           

27.9.17

फिल्म रेड में होंगी जबलपुर की 81 वर्षीया श्रीमती पुष्पा जोशी

27 अगस्त 1936 में नर्मदांचल में जन्मीं 81 वर्षीया  श्रीमती पुष्पा जोशी जी की पौत्रवधु श्रीमति हर्षिता ने एक वीडियो ज़ायका बनाकर उनके  ज़िंदगी के जायके को ऐसा तड़का लगाया कि उसकी ख़ुशबू  से कुछ ऐसा लगा कि मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर भूषण कुमार दुआ  ,  निर्देशक राजकुमार गुप्ता  और अजय देवांगन  ऐसे प्रभावित हुए कि उनने श्रीमती पुष्पा जोशी को   अपनी “आगामी सच्चे कथानक पर आधारित  फिल्म - रेड” में चरित्र अभिनय के लिए आमंत्रित कर लिया .
मेरे एलबम बावरे फ़कीरा के विमोचन अवसर पर श्री सक्सेना,  चिरंजीव आभास, श्रेया, जाकिर हुसैन मैं स्वयं, श्रीमती पुष्पा जोशी, श्री ईश्वरदास जी रोहाणी, ......, श्री सतीश बिल्लोरे, मेरे बाबूजी श्रीयुत काशीनाथ बिल्लोरे  

फिल्म में उत्तर प्रदेश के  आयकर अधिकारी की मुख्य भूमिका अजय देवांगन की होगी तथा फिल्म  
की नायिका हैं इ-लीना डी'क्रूज़  होंगी .  साथ ही सौरभ शुक्ल इस फिल्म में अभिनय करेंगे . जबलपुर 81 वर्षीया  श्रीमती पुष्पा जोशी  पिछले एक सप्ताह से   फिल्म रेड की शूटिंग लखनउ में व्यस्त हैं .   फिल्म रेड के प्रोड्यूसर हैं भूषण कुमार तथा इसका निर्देशन किया है राजकुमार गुप्ता ने. यह फिल्म अगले साल  16  मार्च  2018 को रिलीज़ की जावेगी .
जबलपुर की इन स्टार दादी सुप्रसिद्ध गायक संगीतकार आभास-श्रेयस जोशी की दादी हैं . प्रेमनगर जबलपुर निवासी स्वर्गीय बालकृष्ण  जोशी मध्य-प्रदेश शासन में उप जिलाध्यक्ष थे. समूचा परिवार  कला साधना एवं लोक सेवा के लिए प्रसिद्ध है. सत्यसाई सेवा समिति के ज़रिये सेवा में जुटीं रहने वाली श्रीमती पुष्पा जोशी अपने बड़े पुत्र  बैंक अधिकारी एवं गिटारिस्ट  संगीतकार रवीन्द्र जोशी के पास मुंबई प्रवास पर थीं . इसी दौरान पौत्रवधु के निर्देशन में यूट्यूब फिल्म “ज़ायका” में काम किया . जिसे अब तक 15 हज़ार से अधिक दर्शकों ने देखा . इन्हीं देखने वालों में एयर लिफ्ट एवं पिंक के निर्देशक राजकुमार गुप्ता  अजय देवांगन भी देखा और इन स्टार दादी से संपर्क कर अपनी आने वाली फिल्म के लिए साइन किया .
टेलीफोन पर हुई चर्चा में श्रीमती जोशी ने बताया – “ उन्हें जबलपुर बहुत याद आता है. शूटिंग शैड्यूल पूर्ण होने के बाद जबलपुर आएंगी. मध्य-प्रदेश वासियों के साथ साथ विशेष रूप से जबलपुर वासियों को दशहरे दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं प्रेषित कीं हैं .


25.9.17

प्रबंधकीय कमजोरियां उजागर हुईं है बी एच यू में

27 नवम्बर 2014 को  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के 26वें कुलपति प्रोफेसर गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने गुरुवार को अपना पदभार ग्रहण करते हुए  कहा था-  "बीएचयू में प्रवेश करते ही महामना की मूर्ति स्मरण हो गई और ऐसा लगा कि मेरे कंधों पर उनकी कल्पना को मूर्त रूप देने की ज़िम्मेदारी का पूरा भार है जिसे मैं पूरी निष्पक्षता के साथ पूरा करूंगा ।"
उनकी शब्दावली में उम्रदराज शिक्षा शास्त्री होने के कारण सभी को सहज विश्वास हो सकता है किन्तु उनका व्यक्तित्व इतना कठोर सा क्यों नज़र आ रहा है 22 सितम्बर 17 से आज तक यानी 24 सितम्बर 2017 तक के घटना क्रम में .  जबकि वे कार्यभार ग्रहण करते समय ही  चुकें थे कि - " परिसर में प्रवेश करते समय जब मैंने छात्रों के भाव देखे तो उनकी आंखों में दिखाई देने वाली उम्मीद से मैं भाव विभोर हो उठा । विश्वविद्यालय में वे सभी प्रयास किये जायेंगे जिससे ये विश्व के सभी विश्वविद्यालयों में अग्रणी हो सके । यहां शिक्षा के हर आयाम पर ज़ोर दिया जाएगा जिससे नवीन तकनीक से जुड़कर छात्रों का मनोबल और दृढ़ हो सके।"
नवागत वी सी ने तीन साल पूरे होते होते बेटियों से बात करने आने में अपनी बेइज्जती महसूस की . कारण जो भी हो नारी सम्मान की रक्षा के लिए अगर कुर्बानी भी देना पड़े तो मुझे नहीं लगता कि वो गलत कदम होगा .
1916 में महामना के प्रयासों से स्थापित बनारस हिन्दू वि. वि. की प्रतिष्ठा उससे जुड़े इन नामों से भी आकर्षित करती है   शांति स्वरूप भटनागर, बीरबल साहनी  के पुरावनस्पति वैज्ञानिक, जयन्त विष्णु नार्लीकर, भारत रत्न वैज्ञानिकसी एन आर राव, हरिवंश राय बच्चन,भूपेन हजारिका, प्रोफ़ेसर  टी आर अनंतरमन, अहमद हसन दानीपुरातत्व विद्वान एवं इतिहासकार, लालमणि मिश्र संगीतकार ,प्रकाश वीर शास्त्री, ,आचार्य रामचन्द्र शुक्लचित्रकार रामचन्द्र शुक्लएम एन दस्तूरीधातुकर्म , नरला टाटा राव, अभिनेता सुजीत कुमार, गीतकार समीर, मनोज तिवारी , माधव सदाशिव गोलवलकर बाबू जगजीवन राम अशोक सिंघल आदि ये वो नाम हैं जो इस वि.वि. के  इतिहास में सम्मान सहित दर्ज हैं .
इस वि.वि. से 35 हज़ार छात्र छात्राएं अध्ययन कर डिग्री हासिल करने आते हैं . इनमें से एक छात्रा ने अपने साथ हुए अश्लील आचरण पर वि.वि. से बात की तो विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर ने प्रधानमंत्री जी की आसन्न यात्रा  हवाला देते  ये कह दिया कि आप अपने कमरे में जाएं , क्या आपको बलात्कार का इंतज़ार है . चलें जाएं ... यदि ये सत्य है तो एक जिम्मेदार  
छात्राएं क्या मांग रहीं थीं 
छात्रावास के नियम  
प्राक्टर का ये गैर जिम्मेदाराना बयान कुप्रबंधन का सबसे बड़ा उदाहरण है. इसके बाद छात्राओं ने धरना प्रदर्शन किया जो केवल इस बात की ओर वि.वि. प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए था कि उनकी कुछ मांगें  (जो मांग कम सुझाव अधिक थे ) मान ली जावें .
प्रसारित समाचारों सूचनाओं और वीडियो क्लिप्स से लगता है  धरना दे रहे बच्चों के समर्थन में कोई सियासी न थे बहरहाल जो भी हो अगर बेटियों से बात करने की तमीज प्रॉक्टर में न हो और कुलपति महोदय हठयोग पर जा बैठें हों तो उदय प्रकाश की टिप्पणी  से मुझे भी असहमति न होगी जो   जो ये कहते हैं कि-   इतना डर छात्र-छात्राओं से कि बी एचयू का हॉस्टल ख़ाली करवा रहे हैं और बनारस के सारे कॉलेज बंद कर दिये गये । लग रहा है कि देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को बंद करने से बस एक-दो क़दम की दूरी बची है   
यह स्त्री है, जो जाग गयी है । 
काशी करवट ले रहा है ।

बच्चों की सही मांगें  जो महामना के कल्पनालोक वाले परिसर को पावन बनाए रखने की उम्मीद से कीं जा रहीं तीन के लिए वीसी साहब की कथित   हठधर्मिता से विवाद के आकार तक पहुंच गई. शायद उचित प्रबंधन से इसे रोका जा सकता थी . 
मित्रो यहाँ परिस्थितियां  जाधवपुर ,जे एन यू , जैसी नहीं प्रतीत हो रही है . केवल कुप्रबंधन जन्य विवाद है. अत: बजाए मीडिया मंथन कराने का अवसर देने एवं अन्य किसी को दोषी कहने  के पूर्व कुलपति महोदय एवं प्रॉक्टर जी को स्वयमेव अंतरआत्मा से संवाद की ज़रूरत था और  है भी .  
  

  

24.9.17

आतंकिस्तान : धोये क्या निचोये क्या ..?

भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में आतंक का आवास बना पाकिस्तान कितना भी कोशिश करे भारत की बराबरी कदापि नहीं कर सकता । बावज़ूद इसके की चीन का उसे सपोर्ट हासिल है । चीन से इसकी रिश्तेदारी केवल एक आभासी वर्चुअल रिश्तेदारी है । रहा सवाल पाकिस्तान की आतंकी आश्रय शाला का तो वह अपनी आवाम की जगह आतंक को सर्वाधिक बड़ी जवाबदेही मानता है । कारण यह भी है कि टेरेरिज्म से पाक सेना को राहत मिलती है । यानी पाकिस्तान आतंकियों आउटसोर्सिंग से सैन्यकर्मियों की पूर्ति करते हुए मिलिट्री स्थापना व्यय  कम करता है । 
भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार नवीनतम प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर 400.72 अरब USD हो गया . यह समाचार भारतीयों के लिए एक सुखद एवं उत्साहित करने वाली खबर है. 
         सरकारी मुद्दों पे संवेदित खबरिया चैनल का एक विश्लेषण देखिये  NDTV ने अपनी खबर में भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार के मामले में अपनी छोटी किन्तु असरदार रिपोर्ट में स्वीकारा है कि भारत में अप्रत्याशित ढंग से विदेशी मुद्रा भण्डार में इजाफा हुआ है. सितम्बर 2017 में हुई समीक्षा के हवाले से प्रकाशित समाचार के अनुसार :-   
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में इस बढ़ोतरी की प्रमुख वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) का बढ़ना है. समीक्षा अधीन सप्ताह में यह 2.56 अरब डॉलर बढ़कर 376.20 अरब डॉलर हो गईं. देश का स्वर्ण भंडार इसी अवधि में बिना किसी बदलाव के 20.69 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा.

भारत का विदेशी ऋण 13.1 अरब डॉलर यानी 2.7% घटकर 471.9 अरब डॉलर रह गया है. यह आंकड़ा मार्च, 2017 तक का है. इसके पीछे प्रमुख वजह प्रवासी भारतीय जमा और वाणिज्यिक कर्ज उठाव में गिरावट आना है.
आर्थिक मामलों के विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में हालत बेहतर हुए हैं और ऋण प्रबंधन सीमाओं के तहत बना हुआ है.
मार्च, 2017 की समाप्ति पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और विदेशी ऋण का अनुपात घटकर 20.2% रह गया हैजो मार्च 2016 की समाप्ति पर 23.5% था.

मार्च, 2017 की समाप्ति पर लॉन्ग टर्म विदेशी कर्ज 383.9 अरब डॉलर रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 4.4% कम है. समीक्षावधि में कुल विदेशी ऋण का 81.4% लॉन्ग टर्म विदेशी ऋण है.
उपरोक्त समाचार के साथ साथ जब हमने दक्षिण एशिया के अन्य प्रमुख देशों पाकिस्तान और बंगला देश की आर्थिक स्थिति की पता साजी की तो ज्ञात हुआ कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान एक फिसड्डी देश है बेशक बंगला देश से भी पीछे . भारत के खजाने में 400.72 अरब डालर , बांगला देश में 33 अरब  डालर , तो आतंकिस्तान में कुल 20 अरब डालर शेष है. 
पाकिस्तान को 1 डालर के मुकाबले 105.462  पाकिस्तानी रूपए खर्च करने होते हैं . जबकि भारत में एक डालर 64.80 बांगला देश में 1 USD के लिए 81.93 टके खर्च करने होते हैं . 
उसका विदेशी मुद्रा भण्डार इसी तरह कम होता रहेगा तो पाकिस्तान के पास केवल तीन विकल्प शेष  हैं 
  एक - अपने रूपए का अवमूल्यन करे 
  दो   - विश्व मुद्रा कोष सहायता ले.
         तीन   -  चीन से मदद में तेज़ी आए
सबसे पहले तीसरे बिंदु का खुलासा करना ज़रूरी है कि चीन से उसे मदद मिलती रहेगी. किन्तु चीन की मदद एक ऐसे ब्याजखोर साहूकार की होती है जो भविष्य में सर्वाधिक शोषण करता है. ऐसी स्थिति की जिम्मेवारी पाकिस्तानी सैन्य डेमोक्रेटिक सिस्टम की है. साथ ही आप समझ पा रहे होंगे कि पाकिस्तान अब बेहद नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है. 
मौद्रिक अवमूल्यन तब सफल साबित  होता है जबकि देश में विकास  की धारा बहाने के वैकल्पिक रास्ते मौजूद हों . पाकिस्तान में ऐसा नहीं है वहां मानवता कराहती है जिसकी चीखें विश्व को सुनाई नहीं दे रहीं चिकित्सा ,शिक्षाऔर आतंरिक सुरक्षा एवं भयमुक्त समाज निर्माण  के मामलों में पाकिस्तानी फैडरल एवं राज्यों की  सरकारें  असहाय एवं सफल हैं.  
विकास गतिविधियों में फिसड्डी आतंकिस्तान को सितम्बर 2017 यूएन की 72 वीं सालाना बैठक में विश्वसमुदाय के सामने बेहद अपमानजनक परिस्थियों का सामना तक करना पड़ा है. किसी भी राष्ट्र के प्रबंधन कर्ताओं का धर्म लोकसेवा है न कि आत्मकेंद्रित होकर स्वयं का भला करना . पाकिस्तानी मीडिया अब तो खुल के आरोप लगाने लगा है कि – “पाकिस्तान के नेता अपने बच्चों को पाकिस्तान में रहने नहीं देते क्योंकि न तो वे पाकिस्तान को उनकी पौध के काबिल समझते और न ही खुदके रहने लायक समझतें हैं”
इसी सितम्बर 2017 यूएन की 72 वीं सालाना भारत ने  खुले तौर पर एक दिन पाकिस्तान को आतंकिस्तान का दर्ज़ा दिया दूसरे दिन वजीर-ए-खारजा श्रीमती सुषमा स्वराज ने बता दिया कि हम विकास के पैरोकार हैं जबकि पाकिस्तान आतंक का न केवल पैरोकार है बल्कि वो विश्व के लिए भी खतरा बन गया है.

 आइये एक नज़र इन दौनों देशों की आर्थिक स्थिति पर एक नज़र डालतें हैं
1.     विकासदर :- भारत – 7.57 पाकिस्तान :- 4.71
2.     प्रति नागरिक आय :- भारत – 5,350 पाकिस्तान :- 4,840
3.     बेरोजगारी :-  भारत – 3.6 , पाकिस्तान – 5.2
     ये आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि भारत किस प्रकार एक बड़ी जनसंख्या को प्रबंधित करते हुए विकास पथ पर अग्रसरित है जबकि पाकिस्तान 13 वीं बार अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष की शरण में जाने की दिशा में है . हालांकि भारतीय प्रतिव्यक्ति आय पाकिस्तान के सापेक्ष बहुत उत्साहित करने योग्य नहीं है तथापि यहाँ आप जान लीजिये कि भारत का अर्थतंत्र तेज़ी से पर कैपिटा इनकम को अगले तीन सालों में बहुत आगे ले जा सकता है और इसे चीन के सापेक्ष 13 से 14 हज़ार डालर तक आसानी से ले जावेगा . याद रखना होगा कि यह तथ्य भारतीय युवा जनसंख्या की कर्मठता , आतंरिक एवं सीमाओं पर शान्ति एवं विदेशी निवेश से होगा. इस विकास-प्रवाह को बनाए रखने के लिए समूचे राष्ट्र को बिना आपसी (सियासी, धार्मिक, क्षेत्रीयतावादी, जातिवादी ) संघर्ष के केवल राष्ट्र हित में सोचते और करते रहना होगा . अगर अगले तीन साल में हम चीन से आगे निकल गए तो कोई भी ताकत भारत के पासंग  अगले कम से कम  500 साल तक न बैठ सकेंगीं .
इसी के सापेक्ष पाकिस्तान तेज़ी नीचे जा सकता है क्योंकि उसके पास सामाजिक  आर्थिक विश्लेषण के लिए समय नहीं है बल्कि अगर समय  है भी तो सियासी-इच्छा शक्ति आर्मी डामिनेटेड फैडरल प्रबंधन के कारण कश्मीर बलूच सिंध जैसी समस्याओं के साथ साथ आतंरिक आतंकवाद से जूझने पर खर्च करतें हैं .
ऐसा नहीं है कि वहां {पाकिस्तान में } मेरे जैसी उम्र वाले विचारक न होंगे कर्मठ युवा न होंगें परन्तु उस तिलिस्मी देश के  अभागे नागरिकों को धर्मान्धता , भारत के खिलाफ उकसाने और झूठा इतिहास बताने का धीमा ज़हर  बाकायदा दिया जाता है. और भारतीय मुसलमान भारतीय अर्थतंत्र में एक बड़ी भूमिका का निर्वाह हुए अर्थतंत्र को मज़बूती देते नज़र आते हैं .
एक छोटे से नगर जबलपुर का उदाहरण लें तो आप साफ़ समझ जाएंगे कि भरतीपुर जैसी जगह में मस्जिद, गुरुद्वारा , चर्च, और मंदिर में सबकी आस्थाएं परवान चढ़ रहीं होतीं हैं सभी एक दूसरे के साथ भारतीय बन के रहतें हैं. न कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई बनकर ..!
उसके पीछे आत्मीय संबंधो का सिंक्रोनैज़ेशन है. जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. वहां तो आतंक की जड़ें बेहद गहरीं हैं . ये सभी लोग जानतें हैं. हाफ़िज़ सईंद इसका सर्वोच्च उदाहरण हैं .
कहाँ गया होगा  पाकिस्तान को मिला विदेशी पैसा ..?
ऐसी स्थिति में पाकिस्तान अनिवार्यरूप से मुद्राकोष से वित्तीय मदद अवश्य लेगा. और  IMFA से मिलने वाले संभावित धन से भी कोई लाभ मुझे तो नज़र नहीं आता . आपको याद होगा कि 1980 में पाकिस्तान ने 12वीं बार IMFA से वित्तीय मदद ली  थी , और भारत को वर्ष 1991 में सहायता मिली थी. पाकिस्तान  70 सालों में चीनी इमदाद से इतर 13वीं बार एक बार फिर कटोरा लिए खडा है. 12 बार अमेरीकी इमदाद के साथ संभावित रूप से बड़ा  क़र्ज़ लेने वाले पाकिस्तान ने प्राप्त धन का उपयोग न तो विकास में किया न ही जीवन-समंकों को सुधारने में बल्कि अब तो सवाल ये है कि इतनी मदद भारत को आज़ादी के बाद से हासिल होना शुरू हो जाती तो भारत आज के भारत से 25 साल आगे होता.  पाकिस्तान के सन्दर्भ में देखें तो आपको समझ आएगा कि उसे मिलने वाली विदेशी धनराशी भारत के खिलाफ आतंक, गुड और बैड आतंकवाद वाले  सैनिक प्रशासन के सिद्धांत के चलते कपूर हो गया होगा. बचा-खुचा धन भ्रष्टाचार के हवन कुंड में अवश्य ही गया होगा .
  पाकिस्तानी रूपए के अवमूल्यन के क्या परिणाम होंगे ..?
सुधि पाठको , बेहद विस्तार से पाकिस्तानी अर्थशास्त्र को आपने पूर्व के पैराग्राफ देख ही लिया होगा , फिर भी बताना ज़रूरी है कि – पाकिस्तानी दुष्प्रबंधन में  अर्थव्यवस्था में तेज़ी से मुद्रा स्फीति एवं मूल्यों की अस्थिरता के चलते घरेलू उत्पादकता घटेगी बावजूद इसके कि कई मामलों में पाकिस्तान के पास सिंध और बलोचस्तान में प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन हैं तथा कृषि उत्पादों के कुछ मामलों में तो पाकिस्तान भारत से अधिक उत्तम है का भी लाभ पूंजी के अभाव में न मिल सकेगा
क्या भारत से पाकिस्तान युद्ध करेगा ?
इस सवाल का उत्तर ग्लोबलाईजेशन के इस युग में नहीं में है. बल्कि अगर भारत के साथ युद्ध किया भी गया तो “अबकी बार पाक में भारत सरकार” की स्थिति को नकारना भी गलत ही होगा. भारत ने विश्व के समूचे अतिमहत्वपूर्ण देशों के साथ स्नेहिल रिश्ते बना लिए . विश्व के आम नागरिक भारतीय संस्कृति , इसकी डेमोक्रेसी, के प्रशंसक भी हैं . इस बात का इल्म पाकिस्तान सरकार को और उनके सैन्य प्रशासन को है. वे  कभी भी ऐसा नहीं करेंगे . साथ ही युद्ध का विचार कुछ लोगों के मन में अवश्य है परन्तु वे यदि ऐसा करते हैं तो तय है कि युद्धोंमादित उत्साह रुदन में बदलने में कोई विलम्ब न होगा.
मेरे मित्र अक्सर पूछतें हैं कि – चीन ने डोकलाम के बाद भारत से सम्बन्ध सुधार लिए हैं ..?

मेरा उत्तर यही होता है कि – “पाकिस्तान चीन के सामने आया एक भिक्षुक है भारत चीन के बीच व्यावसायिक सम्बन्ध हैं. अब बताएं आप चीन होते मैं भारत होता और रामलाल जी पाकिस्तान होते तो ऐसी स्थिति में आप किसके साथ कॉफ़ी हाउस जाते ?” मित्र मुस्कुराकर कहते कोई भी अध्यात्मिक भिक्षुकों के अलाव दरवाजे पर आए भिखारी के साथ कॉफी तो क्या पानी भी न पिएगा.. हा...हा...हा..!
बहरहाल मुद्दे पर आए और सोचें कि यदि पाकिस्तान भारत को युद्ध के लिए प्रोवोक करता है तो पाकिस्तान को गहरे आर्थिक संकट का सामना करना होगा । भारत सहित मित्र राष्ट्र निश्चित तौर पर अनेकों प्रकार के आर्थिक बंधन लगा सकते हैं ।  और भारत बिना युद्ध किये ही पाकिस्तान को गम्भीर गृह युद्ध में झोंक सकता है । और अगर युद्ध हुआ तो विश्व के लिए दुखदाई स्थिति होगी । 

22.9.17

दीपावली मुबारक हो

बात पिछली दीपावली की है । भूल गया थापर इस बार दीपावली की धूमधाम शुरू होते ही याद आ गई। त्योहार की धूमधाम भरी तैयारियों में पिछले साल श्रीमती गुप्ता ने ढेरों पकवान बनाए सोचा मोहल्ले में गज़ब का प्रभाव जमा देंगी।  बात ही बात में गुप्ता जी को ऐसा पटाया की यंत्रवत श्री गुप्ता ने हर वो सुविधा मुहैय्या कराई जो एक वैभवशाली दंपत्ति को को आत्म प्रदर्शन के लिए ज़रूरी थी। माडलजैसी दिखने के लिए श्रीमती गुप्ता ने साड़ी ख़रीदी और गुप्ता जी को कोई तकलीफ न हुई।
घर को सजाया सँवारा गयाबच्चों के लिए नए कपड़े बने । कुल मिलाकर यह कि दीपावली की रात पूरी सोसायटी में गुप्ता परिवार की रात होनी तय थी । चमकेंगी तो गुप्ता मैडम, घर सजेगा तो हमारे गुप्ता जी का, सलोने लगेंगे तो गुप्ता जी के बच्चे, यानी ये दीवाली केवल गुप्ता जी की होगी ये तय था ।
समय घड़ी के काँटों पे सवार दिवाली की रात तक पहुँचासभी ने तयशुदा मुहूर्त पे पूजा पाठ की । उधर सारे घरों में गुप्ता जी के बच्चे प्रसाद आत्मप्रदर्शन के उद्देश्य से पैकेट बांटने निकल पड़े । जहाँ भी वे गए सब जगह वाह वाह के सुर सुन कर बच्चे अभिभूत थे किंतु भोले बच्चे इन परिवारों के अंतर्मन में धधकती ज्वाला को न देख सके।
ईर्ष्यावश सुनीति ने सोचा बहुत उड़ रही है प्रोतिमा गुप्ता, क्यों न मैं उसके भेजे प्रसाद-बॉक्स दूसरे बॉक्स में पैक कर उसे वापस भेज दूँ, यही सोचा बाकी महिलाओं ने और नई पैकिंग में पकवान वापस रवाना कर दिए श्रीमती गुप्ता के घर। यह कोई संगठित कोशिश न ही बदले की भावना बल्कि एक स्वाभाविक आंतरिक प्रतिक्रया थी, जो सार्व-भौमिक सी होती है। आज़कल आम है। कोई माने या न माने सच यही है जितनी नकारात्मक कुंठा इस युग में है उतनी किसी युग में न तो थी और न ही होगी । इस युग का यही सत्य है।
 दूसरे दिन श्रीमती गुप्ता ने जब डब्बे खोले तो उनके आँसू निकल पड़े जी में आया कि सभी से जाकर झगड़ आऐं किंतु पति से कहने लगीं, ”अजी सुनो चलो ग्वारीघाट गरीबों के साथ दिवाली मना आएँ।
इस साल- देखते हैं क्या होता है। मिसेज़ गुप्ता मुहल्लेवालों के साथ दीपावली मनाती हैं या ग्वारीघाट के गरीबों की उन्हें दुबारा याद आती है।

21.9.17

सरित-प्रवाह और समय प्रवाह

सुधि पाठक
            सुप्रभात एवं शारदेय नवरात्री के पूजा-पर्व पर पर आपकी आध्यात्मिक उन्नति की कामना के आह्वान के साथ अपनी बात रखना चाहता हूँ .  
           नदियों के किनारे विकसित सभ्यता का अर्थ समृद्ध जीवन ही है . आज प्रात: काल से मैं अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत करने जा रहा हूँ. ज़िंदगी अपनी 54 वर्ष के बाद बदलेगी मुझे यकीन नहीं हो रहा . हमारा नज़रिया होता है कि नदी अपने साथ समय की तरह बहाकर बहुत कुछ ले जाती है परन्तु हम बहुत देर समझ सोच पाते हैं कि नदियाँ अपने साथ बहुत कुछ लेकर भी आतीं हैं . और अपने किनारों को बांटतीं हुईं  निकल भी जातीं हैं . ठीक वैसे तरह  सरिता के प्रवाह सा समय भी बहुत कुछ लेकर आता और लेकर  जाता है. इस लेकर आने और लेकर जाने के व्यवसाय में नहीं से अधिक लाभ स्थानीय रूप से होता है.
     हम सभी समय-सरिता के इस पार या उस पार रहा करतें हैं . जहां हम आत्म चिंतन के ज़रिये इस प्रवाह के साथ कुछ न कुछ  चाहते न चाहते बह जाने देतें हैं. कुछ नया जो बहकर आता है उसे आत्मसात कर लेतें हैं. 29 नवम्बर 1962 को मेरा जन्म हुआ था. जीवन का हिसाब किताब जन्म से ही रखना चाहिए  सो रख रहा हूँ.
     54 वर्ष की आयु में आकर पता चला कि अभी तक जो हासिल हुआ या कहूं हासिल किया उसे शून्य ही मानता हूँ. क्योंकि हमेशा सोचता रहा नदी की तरह समय ने भी मुझमें से बहुत कुछ बहा लिया है. सोच ठीक थी पर जो समय-सरिता  में बहा उसका शोक मनाते मनाते जो समय-सरिता ने दिया उसे संजो न पा सका . करते कराते उम्र की आधी सदी बीत गई.
    जो कुछ भी बहा के लेगी समय सरिता वो मेरा न था और अब जो पास में है या जो प्रवाह से मुझे मिला तथा मेरे पास सुरक्षित है वो मेरा है इस बात को समझने के लिए 54 साल लगना एक अलहदा बात है. इस पर कभी और बात होगी. आज शारदेय नवरात्री के पूजा पर्व शुरू हो चुकें हैं . इन 9 दिनों में कुछ चमत्कार अवश्य होगा. क्योंकि अब मेरा नज़रिया बदल गया है.

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...