पांच साल तक उलटे लटके रहो फिर विक्रम आएगा..
एक चैनल ने कहा चीलों को बूचड़खानों में खाने का इंतज़ार रहा. बूचड़खानों को बरसों से लायसेंस का इंतज़ार था. मिल जाते तो ? चील भूखे न रहते अवैध बूचड़खाने बंद न होते ... बूचड़खानों को वैध करने की ज़िम्मेदारी और गलती किसकी थी. शायद कुरैशी साहब की जो बेचारे सरकारी दफ्तर में बूचड़खाने को लायसेंस दिलाने चक्कर काट रहे थे... ? और सरफिरी व्यवस्था ने उनको तब पराजित कर दिया होगा.. ? काम कराने के लिए हम क्यों आज भी नियमों से जकड़ दिए जातें हैं . कुछ दिनों से एक इंटरनेट के लल्लनटॉप चैनल के ज़रिये न्यूज़ मिल रही है कि गरीबों के लिए राशनकार्ड बनवा लेना उत्तर-प्रदेश में आसान नहीं है..! ......... दुःख होता है.. दोष इसे दें हम सब कितने खुद परस्त हैं कि अकिंचन के भी काम न आ पाते हैं ... दोष देते हैं.. सरकारों पर जो अफसर, क्लर्क, चपरासी के लिबास में हम ही चलातें हैं. क्यों हम इतने गैर ज़िम्मेदार हैं. आप सब तो जानतें ही हैं कि रागदरबारी समकालीन सिस्टम का अहम सबूती दस्तावेज है.. स्व. श्रीलाल शुक्ल जी ने खुद अफसर होने के बावजूद सिस्टम की विद्रूपता को सामने लाकर आत्मचिंतन