जिन्दगी का गीत ---मेरे साथ गाइये

 सुनिये---शुक्रवार,२४अक्तूबर २००८ को पोस्ट की गई दिगंबर नासवा जी की ये रचना---ज़िंदगी का गीत

ज़िंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए
यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए
शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर
स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए
दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर
दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए
मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर
रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए
चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी
आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए
आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला
सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए



एक बेहतरीन रचना को वाक़ई गुनगुनाना चाहिये.  एक गज़ब रचना है प्रस्तुति में जो भी कमीं हो अवश्य बताएं
सादर अर्चना चावजी

टिप्पणियाँ

जिंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए।

यूं कोई भी गीत नहीं गुनगुनाना चाहिए।।

वाह क्‍या बात है .. जितना सुंदर गीत .. उतनी ही अच्‍छी आवाज .. गजब की प्रस्‍तुति !!
जिंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए।
यूं कोई भी गीत नहीं गुनगुनाना चाहिए।।
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सरस गीत के साथ मधुर स्वर का
यह संगम बहुत बढ़िया रहा!
अर्चना जी की सुंदर अवाज़ .... में ..... यह गीत बहुत अच्छा लगा....
शरद कोकास ने कहा…
गीत के भाव बहुत बढ़िया हैं । तीनो को बधाई ।
सन्जय त्रिपाठी ने कहा…
बहुत मधुर स्वर हैं गीत के तो क्या कहने
अर्चना जी ने बहुत ही मधुर कंठ से इस गीत की खूबसूरती को और बढ़ा दिया है ..... आप सब का शुक्रिया इसे पसंद करने के लिए .....
नासवा जी लिखा भी तो बेहतरीन है आपने
ज़िदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए,
यूं नहीं कोई भी गीत गुनगुनाना चाहिए।

वाक़ई बेहतरीन ग़ज़ल...एक एक शेर प्रशंसनीय...अर्चना जी की प्रस्तुति भी अच्छी है...बधाई।

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