20.3.10

जाग उठा मातृत्व उसका अमिय-पान भी कराया उसने

रेखा श्रीवास्तव जी की कहानी उनके ब्लॉग यथार्थ पर अमृत  की  बूंदे  पढ़कर  मन के एक कोने में  छिपी कहानी उभर आई ..यह कथा बरसों से मन के कोने में .छिपी थी  उसे  आज आप-सबसे  शेयर कर रहा हूँ.
दुनियाँ भर की सारी बातें फ़िज़ूल हैं कुछ भी श्रेष्ठ नज़र नहीं आती जब आप पुरुष के रूप में शमशान में अंतिम विदा दे रहे होते हैं....... तब आप सारी कायनात  को एक न्यायाधीश की नज़र से देखते हैं खुद को भी अच्छे बुरे का ज्ञान तभी होता है . और नारी को अपनी  श्रेष्टता-का अहसास भी तब होता है जब वह माँ बनके मातृत्व-धारित करती है. कुल मिला कर बस यही फर्क है स्त्री-पुरुष में वर्ना सब बराबर है हाँ तो वाकया उस माँ का है जो परिस्थित वश एक ही साल में दूसरी बार माँ बन जाती है कृशकाय माँ पहली संतान के जन्म के ठीक नौ माह बाद फिर प्रसव का बोझ न उठा सकी. और उसने  विदा ले ही ली इस दुनिया से . पचपन बरस की विधवा दादी के सर दो नन्हे-मुन्ने बच्चों की ज़वाब देही ...........उम्र के इस पड़ाव पर कोई भी स्त्री कितनी अकेली हो जाती है इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं किन्तु ममतामयी देवी में मातृत्व कभी ख़त्म नहीं होता. उस स्त्री का मातृत्व भाव दूने वेग से उभरा. मध्यम आय वर्गीय परिवार की महिला एक दिन जब नवजात बच्चे को लेकर डाक्टर के पास गई तो डाक्टर ने उसे सलाह दी कि पूरे चार  माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग पर रखवाईये कोई बाहरी आहार नहीं वरना बच्चे को नुकसान होगा बार बार इसी तरह बीमार होता रहेगा. इस सवाल का हल उस महिला के पास कहाँ. बस भीगी आँखों से टकटकी लगाए पीडियाट्रीशियन  को देखती रही. फीस दी और घर आ गयी. शिशु के जीवन को बचाने की ललक रात को भूख से बिलखते बच्चे को कैसे संतुष्ट करे बार बार डाक्टर की नसीहत याद आती थी. देर तक कभी शिशु को दुलारती पुचकारती एक बार फिर नव-प्रसूता-धात्री माँ बन जाने की ईश्वर से प्रार्थना करती कभी कोरें भिगोती. कभी अकुलाती. व्याकुल आकुल सी वो माँ एक पल के लिए भी ना सो सकी..... तीस बरस पहले के दिन याद करती उन्हीं दिनों को वापस देने ईश्वर से याचना करती उस ममतामयी  की झपकी लगी तब सारे लोग एक बार झपकी ज़रूर लेते है हैं हाँ वो समय रहा होगा सुबह सकारे ४ से ५ बजे का. अचानक उसने शिशु के मुंह  से  अमिय-पात्र लगा दिया. सुबह सवेरे देर आठ बजे जागी वो माँ बन चुकी थी. उसे लगा सच मैं वो माँ है उसे अमृत-आने लगा है . दूध की धार बह निकली अमिय पात्रों से ............उसने   पूरे चार  माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग कराई शिशु को अन्न-प्राशन के दिन अपने भाई को बुलाया. चंडी के चम्मच   से पसनी की गई शिशु की ...... आपको यकीं नहीं होगा किन्तु यह सत्य है इसका प्रमाण दे सकता हूँ फिर कभी ........

11 टिप्‍पणियां:

ρяєєтii ने कहा…

Pranaam karte hai hai is Maa ko..

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

SUKRIYA PREETI JI

Gautam RK ने कहा…

ममतामयी देवी में मातृत्व कभी ख़त्म नहीं होता|




Very True!!!



"RAM"

Udan Tashtari ने कहा…

माँ को नमन!! माँ एक शब्द नहीं, यह एक भाव है.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Shukriya

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

माँ ममता का पर्याय रहा है और हमेशा रहेगा!
माँ को नमन!

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

गिरीश जी,

आपके सच पर तनिक भी संदेह हैं है क्योंकि ऐसा ही वाक्य मैंने भी अपने बचपन में देखा है . दादी ने बच्चे को इसी तरह से पला और अपना ही अमृत पान कराया फर्क सिफ इतना था की उसकी माँ का निधन नहीं हुआ था बल्कि वो छोड़ कर चलीगयी थी.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

इसी ममता का ही पर्याय है महिला। इसी ममता के कारण आज संसार चल रहा है। यह तो निर्विवादित सत्‍य है इसमें शंका की तो कहीं गुंजाइश ही नहीं है।

Unknown ने कहा…

duniyaa kee tamaam maataao ko pranaam kartaa hoo.

Mayur Malhar ने कहा…

shandar prastuti ke liye badhayi.
yeh to sach hai ki bhagwan hai
hai magar insaan hai
dharati pe roop MAA-baap ka
us vidhata ki pehchan hai

हर्षिता ने कहा…

मां शब्द ही अपने आप में काफी होता है,उसे कहा नहीं जाता।

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...