8.8.21

नीरज चोपड़ा की जीत से सबा नक्वी को तकलीफ हुई है...!

एक शर्मनाक और दिल को चोट पहुंचा देने वाली टिप्पणी की है सबा नक्वी ने। जी हां और कोई मुद्दा होता तो शायद इन्हें क्षमा भी कर दिया जाता परंतु सबा नक्वी ने नीरज चोपड़ा की जीत खासकर गोल्ड मेडल जीतने पर एक बड़ी अभद्र टिप्पणी की है .
देखेंगे क्या लिखती हैं
Just the way we are all celebrating one gold shows how starved we were for it..
वे मानती हैं कि हम गोल्ड मेडल के सोने के लिए कितने लालची हैं तभी तो हम जश्न मना रहे हैं। एक पत्रकार टिप्पणीकार विचारक का यह अशोभनीय ट्वीट देख कर बहुत दुख हुआ।

  और दूसरी और मैं बहुत खुश हूं इस वतन की हर एक उस इंसान के साथ जो सिर से पांव तक गौरव का अनुभव कर रहा है। हर हिंदुस्तानी के मन में नीरज के लिए सम्मान जाग उठा है। ऐसी हजारों लाखों प्रतिभाएं भारत की गली कूचे मोहल्लों में अब तक अवसर न मिलने के कारण जब जाया करती थी लेकिन आप कुछ वर्षों से उस सुबह का आगाज हो चुका है जो सुबह अपनी उजली किरणों से भारत को रोशन करती है . अवसर तो अब मिल रहे हैं पर समूचे देश में एक प्रभावी खेल नीति की भी जरूरत है। आज सुबह सुबह ट्विटर के स्पेस में चर्चा चल रही थी कि दक्षिण एशियाई देशों में स्वर्ण पदक कम क्यों आते हैं ?
  संवादों से निकले निष्कर्ष थे...
[  ] अखंड भारत महा क्षेत्र में भारत को छोड़कर अन्य किसी देश में खेलों के प्रति सकारात्मक वातावरण नहीं है
[  ] लोगों का यह भी मानना था कि प्रत्येक देश की अपनी प्राथमिकताएं हैं और प्रतिभाओं के संरक्षण और प्रोत्साहन जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकताओं में छिप जाती है या कम है।
[  ] कैनेडियन वक्ता ने कहा कि-" भारत को छोड़ दिया जाए तो शेष दक्षिण एशियाई देश न केवल इकोनॉमिकली कमजोर हैं बल्कि उनकी बौद्धिक क्षमता भी कमजोर है। "
[  ] एक पाकिस्तानी मूल के वक्ता ने अपने देश की प्रतिभाओं को ना पहचानने के लिए वहां के समाज और सरकारी दोनों पक्षों को दोषी करार दिया है।
मित्रों यह बात सही है कि भारत का लोकतंत्र बेहद प्रभावी और परिपक्व होता नजर आ रहा है परंतु बाहरी यानी आयातित विचार शैली के कारण जनता के मन मानस में भटकाव है।
   सुधि पाठको.... भारत के युवा अब सम्मान के महत्व को समझने लगे हैं और वह अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए सजग होते जा रहे हैं। उसी का परिणाम है कि टोक्यो ओलंपिक 2020 जो अपने समय से 1 वर्ष बाद यानी 2021 में खेला जा रहा है में भारत के युवा खिलाड़ियों ने एक स्वर्ण दो रजत और चार कांस्य पदक हासिल किए हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने जीते हुए खिलाड़ियों को जहां एक और बधाई दी वहीं दूसरी ओर उन्होंने पदक ना पानी वाली टीम के मनोबल को बढ़ाने के लिए उन से टेलीफोन पर बातचीत की उन्हें ढांढस बंधाया ताकि वे भविष्य में निराशा के अंधेरे में अपने लक्ष्य से ना भटक जाएं। और दूसरी ओर मेजर ध्यानचंद के नाम पर राष्ट्रीय खेल पुरस्कार देने के मुद्दे पर राजनीति की परोपकारों और राष्ट्र के प्रति नकारात्मक भाव रखने वाली सबा नक्वी जैसे व्यक्तियों के सीने पर सांप भी लोटा है ।
मित्रों जब देश की सेना एयर स्ट्राइक करती है तो उनसे सबूत मांगा जाता है ऐसे अविश्वास फैलाने वाली ताकतों और अपने गलत नैरेटिव को स्थापित करने वाली ताकतों की मस्तिष्क को खोलने की जरूरत है। उन्हें समझाना होगा कि वे जिस थाली में भोजन करें कम से कम उसमें छेद तो ना करें। समूचे भारत को बधाई स्वर्ण रजत कांस्य पदक विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएं

1 टिप्पणी:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

जो भी है अच्छा है अब कुछ तो लोग कहेंगे ।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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