ज्ञान की अविरल प्रवाहिनी
नमन है हे वीणा वादिनी ।।
गीत स्वर ध्वनि सब अपूरण-
बिन तेरे माँ हंस वाहिनी ।।
मन के कागज़ पे लिखूँ क्या
कृपा का यदि व्योम न हो ?
कंठ को माधुर्य कैसे मिले -
शारदा का आह्वान न हो ।।
हर कला अरु विधाओं की
मातु तुम प्रतिपादिनी ।।
*सरस्वती पूजन के अवसर पर शत-शत नमन*
गिरीश बिल्लोरे मुकुल