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सोमवार, जुलाई 20, 2020

लमटेरा : शिवाराधना का एक स्वरूप



सुधि जन
आज कुछ कविताएं विभिन्न भावों पर आधारित हैं प्रस्तुत कर रहा हूँ । पसंद अवश्य ही आएगी । पहली कविता बुंदेलखंड की लोक गायकी लमटेरा पर केंद्रित है । इस कविता में शिव आराधना करते हुए नर्मदा यात्रा पर निकले यात्रियों का जत्था जिंदगी तो को गाता है वह ईश्वर एवं उसके मानने वालों के बीच एक अंतर्संबंध स्थापित करता है । कुल मिलाकर लमटेरा शिव आराधना का ही स्वरूप है । 

लमटेरा : -

नर्मदा के किनारे
ध्यान में बैठा योगी
सुनता है
अब रेवा की धार से
उभरती हुई कलकल कलकल
सुदूर घाट पर आते
लमटेरा सुन
भावविह्लल हो जाता
अन्तस् की रेवा छलकाता
छलछल....छलछल .
हो जाता है निर्मल...!
नदी जो जीवित है
मां कभी मरती नहीं
सरिता का सामवेदी प्रवाह !
खींच लाता है
अमृतलाल वेगड़ की
यादों को वाह !
सम्मोहित कर देता है
ऐसा सरित प्रवाह..!!
यह नदी नहीं बूंदों का संग्रह है..!
यह आपसी अंतर्संबंध और
प्रेम और सामंजस्य भरा अनुग्रह ..
शंकर याचक से करबद्ध..!
अंतत से निकली प्रार्थना
गुरु को रक्षित करने का अनुरोध
सच कहा मां है ना रुक जाती है
बच्चे की करुण पुकार सुन पाती है
मां कभी नहीं मरती मां अविरल है
मां रगों में दौड़ती है जैसे
बूंदें मिलकर दौड़ती हैं रेवा की तरह
आओ चलें
इस कैदखाने से मुक्त होते ही
नर्मदा की किनारे मां से मिलने
💐💐💐💐💐


प्रेरणा-गीत

नाहर के दंत गिनते कुमार
हर ओर मुखर भू के विचार
गीता जीवन का हर्ष राग
अरु राम कथा जीवन सिंगार ।
जय भरत भूमि जय राम भूमि जय कृष्ण भूमि ............ !
परबत अंगुल पर थाम खड़ा
जा बीच समर निष्काम अड़ा
दूजे ने वनचर साथ लिए –
रावण भू पर निष्प्राण पड़ा !!
जय कर्म भूमि जय धर्म भूमि जय भरत भूमि ............ !
जब जागा तो पूरब जागा
उसकी आहट से जग जागा
जो भोर किरन फिर मुसकाई
तो नेह नीति ने दिन तागा !
जय भरत भूमि जय भरत भूमि जय भरत भूमि ............ !
करुणा के सागर बुद्धा ने
शमशीर समर्पण दिखा दिया !
जिस वीतराग गुरु चिंतन ने –
सबको जिन दर्शन सिखा दिया !
जय बुद्ध भूमि जय आदि भूमि जय भरत भूमि ............ !



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