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भारतीय ज्ञान का खजाना (भाग 01) : प्रशांत पोळ

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पंचमहाभूतों के मंदिरों का रहस्य..! -  प्रशांत पोळ इस लेखमाला, अर्थात ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’ का उद्देश्य है कि हमारे प्राचीनतम देश में छिपे हुए अनेक अदभुत एवं ज्ञानपूर्ण बातों को जनता के सामने लाना. इस पुस्तक का प्रत्येक लेख प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अक्षरशः लाखों लोगों तक पहुँचता है. संभवतः इसीलिए पत्र, फोन एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिक्रियाओं की मानो वर्षा ही हो रही है. परन्तु ऐसी अनेक बातें हैं, जो हमें पता चलने पर हम भौचक्के रह जाते हैं, सुन्न हो जाते हैं. आज जो बातें हमें असंभव की श्रेणी में लगती हैं, वह आज से ढाई-तीन हजार वर्षों पहले भारतीयों ने कैसे निर्माण की होंगी, कैसे बनाई होंगी... यह एक प्रश्नचिन्ह हमारे सामने निरंतर बड़ा होता जाता है. हिन्दू दर्शन में पंचमहाभूतों का विशेष महत्त्व है. पश्चिमी जगत ने भी इस संकल्पना को मान्य किया है. डेन ब्राउन जैसे प्रसिद्ध लेखक ने भी इस संकल्पना का उल्लेख किया है और इस विषय पर ‘इन्फर्नो’ जैसा उपन्यास भी लिखा. यह पंचमहाभूत हैं, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी एवं अग्नि. ऐसी मान्यता है कि हम सभी का जीवनचक्र इन पाँचों म

धरोहर को ना संजोने वाले हम दुर्भाग्यशाली..! - प्रशांत पोळ

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अभी कुछ दिनों से यूरोप में हूँ. पिछले बीस वर्षों में जर्मनी में बहुत घुमा हूँ. लेकिन न्यूरेनबर्ग छूट गया था. इसलिए इस बार वहां जाने का कार्यक्रम बनाया. न्यूरेनबर्ग प्रसिध्द हैं, ‘न्यूरेनबर्ग ट्रायल्स’ के लिए. दूसरे विश्वयुध्द में जिन नाझी अफसरों ने कहर बरपाया था, यहूदियों का सर्वनाश किया था, उन सभी पर मित्र देशों की सेनाओं द्वारा (अर्थात अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस आदि) मुकदमा चलाया गया. उनमेसे अधिकतर लोगों को मृत्युदंड दिया गया. सन १९४६ में दुनिया के समाचार पत्रों के शीर्षकों में यही ‘न्यूरेनबर्ग मुकदमा’ छाया हुआ था. हिटलर की नाझी पार्टी अर्थात NSDAP के उदय में न्यूरेनबर्ग का बड़ा स्थान हैं. हिटलर ने अपना प्रभाव दिखाने के लिए यही पर बड़ी बड़ी रैलियां की थी. दस, दस लाख सैनिकों की अनुशासनबध्द रैलियां. इन सब के लिए न्यूरेनबर्ग में विशाल मैदान और उसमे सारी व्यवस्थाएं की गई. न्यूरेनबर्ग, हिटलर की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा था. और इसीलिए विश्वयुध्द के पश्चात नाझियों पर किये जाने वाले मुकदमों के लिए न्यूरेनबर्ग को चुना गया. ( प्रशांत पोल ) जर्मनी, हिटलर के बारे में बात करना नह

भारत रत्न पंडित बिस्मिल्लाह खान को नमन

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        25-26 जून 2019 की रात मैं बिस्मिल्लाह खां के बारे में सोच रहा था....अचानक जाने कहां से मेरे  सामने बिस्मिल्ला खां साहब नमूदार हो गए मेरे ज़ेहन में...? मेरी दृष्टि में हर कलाकार गंधर्व होता है । जो कहीं भी कभी भी आ जा सकता है और इन गंधर्वों के बारे में कुछ भी कहना उस निरंकार सत्ता पर सवाल उठाना मेरे जैसे अदना लेखक के लिए तो ठीक वैसा ही है जैसे सूरज को लालटेन दिखाकर यह बताना कि तुम इस रास्ते से चलो...!    सुधि पाठक जानिए कि बिहार के किसी गांव में 21 मार्च 1913 को जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के बारे में लिखने के बात मैंने  शीर्षक यानी आलेख टांगने की खूंटी खोजी ।   मैंने पंडित बिस्मिल्लाह खान लिखा है कट्टर पंथी मुझ पर निशाना साधेंगे  पर जानते हो आप हमने ऐसा क्यों किया उस्ताद को पंडित लिखा ? ऐसा इसलिए किया  क्योंकि जब मैं शीर्षक लिखने के बारे में सोच रहा था तो यह सोचा कि नहीं वे मज़हबी एकता यानी असली सेक्युलरिज्म के सबसे बड़े पैरोकार आईकॉन हैं । उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के गुरु उनके नाना अली बख्श साहब हुआ करते थे और भी गंगा के पंच घाट के पास बनी एक कोटरी में रियाज किया करते

क्रिकेट स्पोर्ट नहीं इंडस्ट्री है : गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल"

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Dainik Bhaskar की कवरस्टोरी पढ़कर कुछ असहज सा महसूस कर रहा हूं. 5 साल में 77% बढ़ी स्पोर्ट्स इंडस्ट्री विज्ञापनों से 66% की कमाई कोहली और धोनी को यह है शीर्षक इस कवरस्टोरी का.       इसका अर्थ यह नहीं है कि विकास के इस अनोखे से पहलू का मैं विरोध करूंगा या उससे असहमत हूं । मामला यह है कि मल्टीनेशनल कंपनी के विज्ञापनदाता तथा स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने वाली खास सोसायटी ने जिन खेलों को बढ़ावा दिया है उनमें कबड्डी और क्रिकेट की चर्चा की गई है क्रिकेट को सर्वाधिक स्पॉन्सरशिप का लाभ मिला करता है । बड़े उद्योगपतियों व्यक्तियों एवं मल्टी नेशंस और देसी कंपनियों द्वारा केवल और केवल उन खेलों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो ऑलरेडी लोकप्रिय हैं यहां तीरंदाजी शूटिंग कुश्ती जैसे उन खेलों को 0 अथवा कुछ प्रतिशत ही स्पॉन्सरशिप और सपोर्ट मिलता है यह ग्राउंड रियलिटी ।          बेशक रिपोर्ट बहुत ही उपयोगी एवं सूचना पर है प्रस्तुतकर्ता नहीं भले ही कुछ मुद्दे स्पष्ट ना किया हो तथापि रिसर्च तो की है और विषय भी बेहद समसामयिक है । अखबार लिखता है कि स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में किस पर कितना खर्च किया जाता है यहां 11% 3 की

प्राचीन इतिहास पर नयी रौशनी : स्वराज करुण

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      दक्षिण कोशल में दो हज़ार साल से भी ज्यादा पुरानी  एक  बसाहट का पता चला : मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप के लिए उत्खनन जारी         स्वराज करुण छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सिर्फ़ 25 किलोमीटर की दूरी पर दो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मौर्यकालीन बौद्ध संस्कृति की एक नयी बसाहट का पता चला है । रायपुर जिले  के  तहसील मुख्यालय आरंग के पास ग्राम रींवा में एक टीले पर राज्य शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा  उत्खनन जोर -शोर से किया जा रहा है । माना जा रहा है इस उत्खनन में  दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास पर नयी रौशनी पड़ सकती है ।          यह स्थान मुम्बई -कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 के बिल्कुल किनारे पर है । विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इस टीले से एक बौद्ध स्तूप निकलने की प्रबल संभावना है । यह भी माना जा रहा है कि सुदूर अतीत में वहाँ एक विकसित बसाहट भी रही होगी ।उत्खनन के दौरान वहां स्तूप की दीवारों की बुनियाद और ईंटें  भी नज़र आने लगी है । पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह  मौर्यकालीन स्तूप  ईसा  पूर्व तीसरी  शताब्दी का हो सकता  हैं । याने आज से कोई तेईस सौ