*जीवन के प्रमेय*
हैं ये साध्य असाध्य से
तुम इनको साध्य नाम मत दो
ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति में
एक मैं हूँ जिसे सारे प्रमेय
सिद्ध करने हैं
वह भी तब जब कि
आधार भी मैं ही हूँ ?
जब आधार में हम न होते तब
आसान था न
सब मान लेते इस सिद्धि को !
है न
पर तुम हो कि आधार से
सम्पूर्ण साध्य की सिद्धी पर आमादा
ओह ! ये मुझसे न होगा
करूंगा भी तो
सिर्फ अपने लिए
सबको यही करना होगा !
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*एक अकेला कँवल*
एक अकेला कँवल ताल में,
संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने,
तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा,
तिनका तिनका छीन कँवल से
दौड़ लगा देता है दरिया
कभी कभी तो त्राण मसल के !
सब को भाता, प्रिय सरोज है ,
उसे दर्द क्या कौन सोचता ?
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*