सोशल मीडिया पर जितनी भी पोस्ट हो रही है वह बहुधा अनुशासनहीन एवं व्यक्तिगत आक्षेप युक्त सामाजिक राजनैतिक आर्थिक विषयेत्तर होतीं है ।
युवा पीढ़ी अपने तरीके से एन्जॉय के लिए इस न्यू-मीडिया का प्रयोग करता है तो कुछ लोग उसका उपयोग रोमांटिक साधन के रूप में लिया करतें हैं । सामाजिक मापदड़ों के विपरीत भी पोस्ट धड़ल्ले से इधर से उधर करने से बाज़ नहीं आते ।
विवाहेत्तर एवं अनैतिक व्यापार का साधन भी इसी रास्ते पनप चुका है । कुछ एप्लिकेशन तो निहायत उच्छृंखल यौन संबंधों के मुक्त प्लेटफार्म हैं । जहां का हाल देख कर आप शर्मिंदगी से तुरंत को डिलीट करेंगे ।
सियासी होना सोशल मीडिया का
सोशल मीडिया के दुरूपयोग की हद तो इस बार चुनाव के पूर्व पूरे वर्ष सियासी लग्गू-भग्गुओं ने भरपूर की है । कभी कभी तो लगा वाट्सएप के सृजन का कारण ही सोसायटी में भ्रम फैलाने के लिय हुआ हो । सियासी घटनाक्रम पर नज़र डालें तो कुछ लोगों ने बेहद निकृष्टतम पोस्ट पेश कीं ।
अगर आप किसी समूह के सदस्य हैं तो गुड मॉर्निंग, गुड नाईट, हैप्पी बर्थडे, आदि आदि की भरपूर मौज़ूदगी मिलेगी । लतीफे तो लाजवाब मिलते हैं । ये अच्छा है कि कोई विवादित विषय इसमें नज़र नहीं आता । परन्तु अगर देखें तो इस सशक्त माध्यम से केवल इतना लाभ न लिया जाए वरन अपनी सृजनात्मकता का प्रदर्शन भी करना चाहिए । ऐसा करना बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है ।
आप अगर इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं तो मैं भाग्यशाली हूँ कि आप ने अक्षरसः इसे देखा पर बहुतायत मित्र गण वाह कह कर छुट्टी पाते नज़र आते हैं ।
सामान्यतः लोग विषयाधारित पोस्ट को देखना ही पसंद नहीं करते । दरअसल आज का दौर विज़ुअलिटी का दौर है । लोगों में अध्ययन क्षमता का ह्रास हो रहा है । आप किसी से पूछकर देखिए - मुद्रा का अवमूल्यन क्या है ? या क्यों किया जाता है ? सनाका खिंच जावेगा ।
मेरा और मेरे मित्र का एक अघोषित सा समझौता है फेसबुक पर हम अनोखे अचर्चित विषय पर बात करते हैं । मित्र और हमको बेहतरीन लोग मिलते हैं टिप्पणियों में नवीनता नज़र आती है । हम आध्यत्मिक चिंतन पर केंद्रीय विषयों पर बात करते हैं । सौभाग्य है कि गम्भीर लोगों की भीड़ में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो गम्भीरता भरी पोस्ट देखते हैं और अपने विचार रखते हैं । दरअसल हम चाहते थे कि लोग फूहड़ता से विमुक्त हों ताकि विमर्श हो चिंतन को सही दिशा मिले ।
लब्बोलुआब यह है कि आज ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो सकारात्मक चिंतन चाहते हैं ।
गैर अनुशासित लोग हमारी पोस्ट को देखें न देखें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता पर ट्रेंड में बदलाव के लक्ष्य से हम दौनों मित्र संतुष्ट हैं ।
अवचेतन में अक्सर कुंठाएं छिपा करतीं हैं । सोशल मीडिया पर कभी कभी युद्ध जन्य स्थिति बन जाती है ।
हाल में एक समूह में एक बच्ची एक शीर्ष नेतृत्व को जूते से मारते हुए नज़र आ रही है उसकी माता जी उससे ऐसा करने का कारण पूछ रही है तो बच्ची बताती है कि इस व्यक्ति ने अमुक को चोर कहा ! उस बच्ची उम्र को देख कर मुझे नहीं लगता कि बच्ची चोर शब्द के अर्थ से भी परिचित हो बल्कि ये अवश्य समझ सका कि परिवार में क्रोध बोने की कितनी क्षमता है ।
यह सब सोशल मीडिया के दुरुपयोग का उदाहरण हैं । हम किसे क्या प्रोट्रेट कर रहे हैं ।
हमारे दौर में माता पिता अगर किसी से दुःखी होते थे तो वे अगर निंदा भी करते थे तो हमें आता देख शांत हो जाते थे । अब तो शाम के चैनल्स उन विषयों पर बात करते हैं जिनको विस्तार मिलते ही सामाजिक समरसता का अंत स्वाभाविक हो सकता है ।
इलैक्ट्रोनिक मीडिया पर भी अब स्वायत्त अनुशासन को लेकर बौध्दिक तबकों में घोर अवसाद है ।
यह है सचाई क्यों न हम मीडिया का सदुपयोग करें क्योंकि हमारे पूर्वज बंदर रहे होने पर हम नहीं न ही मीडिया अस्तुरा है ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*