28.12.18

सोशल मीडिया एवम इलैक्ट्रोनिक पर स्वायत्त-अनुशासन से विमुख होते लोग


सोशल मीडिया पर जितनी भी पोस्ट हो रही है वह बहुधा अनुशासनहीन एवं व्यक्तिगत आक्षेप युक्त सामाजिक राजनैतिक आर्थिक  विषयेत्तर होतीं है ।
युवा पीढ़ी अपने तरीके से एन्जॉय के लिए इस न्यू-मीडिया का प्रयोग करता है तो कुछ लोग उसका उपयोग रोमांटिक साधन के रूप में लिया करतें हैं । सामाजिक मापदड़ों के विपरीत भी पोस्ट धड़ल्ले से इधर से उधर करने से बाज़ नहीं आते ।
विवाहेत्तर एवं अनैतिक व्यापार का साधन भी इसी रास्ते पनप चुका है । कुछ एप्लिकेशन तो निहायत उच्छृंखल यौन संबंधों के मुक्त प्लेटफार्म हैं  । जहां का हाल देख कर आप शर्मिंदगी से तुरंत को डिलीट करेंगे ।
  सियासी होना सोशल मीडिया का
सोशल मीडिया के दुरूपयोग की हद तो इस बार चुनाव के पूर्व पूरे वर्ष सियासी लग्गू-भग्गुओं ने भरपूर की है । कभी कभी तो लगा वाट्सएप के सृजन का कारण ही सोसायटी में भ्रम फैलाने के लिय हुआ हो । सियासी घटनाक्रम पर नज़र डालें तो कुछ लोगों ने बेहद निकृष्टतम पोस्ट पेश कीं ।
अगर आप किसी समूह के सदस्य हैं तो गुड मॉर्निंग, गुड नाईट, हैप्पी बर्थडे, आदि आदि की भरपूर मौज़ूदगी मिलेगी । लतीफे तो लाजवाब मिलते हैं । ये अच्छा है कि कोई विवादित विषय इसमें नज़र नहीं आता । परन्तु अगर देखें तो इस सशक्त माध्यम से केवल इतना लाभ न लिया जाए वरन अपनी सृजनात्मकता का प्रदर्शन भी करना चाहिए । ऐसा करना बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है ।
आप अगर इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं तो मैं भाग्यशाली हूँ कि आप ने अक्षरसः इसे देखा पर बहुतायत मित्र गण वाह कह कर छुट्टी पाते नज़र आते हैं ।
सामान्यतः लोग विषयाधारित पोस्ट को देखना ही पसंद नहीं करते । दरअसल आज का दौर विज़ुअलिटी का दौर है । लोगों में अध्ययन क्षमता का ह्रास हो रहा है । आप किसी से पूछकर देखिए - मुद्रा का अवमूल्यन क्या है ? या क्यों किया जाता है ? सनाका खिंच जावेगा ।
मेरा और मेरे मित्र का एक अघोषित सा समझौता है फेसबुक पर हम अनोखे अचर्चित विषय पर बात करते हैं । मित्र और हमको बेहतरीन लोग मिलते हैं टिप्पणियों में नवीनता नज़र आती है । हम आध्यत्मिक चिंतन पर केंद्रीय विषयों पर बात करते हैं । सौभाग्य है कि गम्भीर लोगों की भीड़ में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो गम्भीरता भरी पोस्ट देखते हैं और अपने विचार रखते हैं । दरअसल हम चाहते थे कि लोग फूहड़ता से विमुक्त हों ताकि विमर्श हो चिंतन को सही दिशा मिले ।
लब्बोलुआब यह है कि आज ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो सकारात्मक चिंतन चाहते हैं ।
गैर अनुशासित लोग हमारी पोस्ट को देखें न देखें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता पर ट्रेंड में बदलाव के लक्ष्य से हम दौनों मित्र संतुष्ट हैं ।
अवचेतन में अक्सर कुंठाएं छिपा करतीं हैं । सोशल मीडिया पर कभी कभी युद्ध जन्य स्थिति बन जाती है ।
हाल में एक समूह में एक बच्ची एक शीर्ष नेतृत्व को जूते से मारते हुए नज़र आ रही है उसकी माता जी उससे ऐसा करने का कारण पूछ रही है तो बच्ची बताती है कि इस व्यक्ति ने अमुक को चोर कहा ! उस बच्ची उम्र को देख कर मुझे नहीं लगता कि बच्ची चोर शब्द के अर्थ से भी परिचित हो बल्कि ये अवश्य समझ सका कि परिवार में क्रोध बोने की कितनी क्षमता है ।
यह सब सोशल मीडिया के दुरुपयोग का उदाहरण हैं । हम किसे क्या प्रोट्रेट कर रहे हैं ।
हमारे दौर में माता पिता अगर किसी से दुःखी होते थे तो वे अगर निंदा भी करते थे तो हमें आता देख शांत हो जाते थे । अब तो शाम के चैनल्स उन विषयों पर बात करते हैं जिनको विस्तार मिलते ही सामाजिक समरसता का अंत स्वाभाविक हो सकता है ।
इलैक्ट्रोनिक मीडिया पर भी अब स्वायत्त अनुशासन को लेकर बौध्दिक तबकों में घोर अवसाद है ।
यह है सचाई क्यों न हम मीडिया का सदुपयोग करें क्योंकि हमारे पूर्वज बंदर रहे होने पर हम नहीं न ही मीडिया अस्तुरा है ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

मां तो हमेशा साथ होती है आपकी रगों में आप कैसे हैं

आज स्वर्गीय मां सव्यसाची  प्रमिला देवी  की 15वीं  पुण्यतिथि
पुण्य स्मरण स्वर्गीय मां सव्यसाची प्रमिला देवी के श्री चरणों में शत शत नमन ।
विश्व विराट प्राणियों  का सृजन कर्ता ईश्वर नहीं है ?
 कौन है फिर बताओ कौन है भाई जब तुम ईश्वर के अस्तित्व को नकार रहे हो और उसे सृजन करता नहीं मान रहे हो तो कौन है ?
 यह प्रश्न भी स्वभाविक है उठना भी चाहिए हम जैसे सामान्य ज्ञान रखने वाले लोग अगर यह ऐलान करें कि प्राणियों का सृजन करता ईश्वर नहीं है तो एक बौद्धिक बहस छिड़ जाएगी हो सकता है कि बात निकलेगी और दूर तलक जाएगी ।
बात को बहुत दूर तक ले जाने की मेरी कोई मंशा नहीं है साफ तौर पर कह रहा हूं की मां के बिना सृजन किसी का भी संभव नहीं है मां है तो फिर ईश्वर ने सृजन किया ऐसा कहने में कठिनाई महसूस करता हूं ।
   तो फिर सत्य क्या है बस सत्य ही है सरोज सृजन करता है । आगे कुछ कहूं उसके पहले आपको स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा का छोटा सा हिस्सा बताना चाहता हूं बतौर रेफरेंस यद्यपि यहां पर स्वामी विवेकानंद ने यह नहीं कहा है जो मैं कह रहा हूं की ईश्वर से बड़ा सृजित करने वाला अगर कोई है तो मां है अब आप मेरी बात को किनारे कर दीजिए देखिए स्वामी विवेकानंद क्या कहते हैं-
" जो मनुष्य सकल नारियों में अपनी मां को देखता है सकल मनुष्यों की विषय संपत्ति को धूल के ढेर के समान दिखता है जो समग्र प्राणियों में अपनी आत्मा को देख पाता है वही प्रकृत ज्ञानी होता है !"
      उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने तो ऐसा महसूस भी किया था एकमात्र ईश्वर से साक्षात्कार करने वाली महायोगी रामकृष्ण परमहंस की यह बात मुझे भी बेहद प्रभावित कर देने वाली लगी जब उन्होंने पत्नी शारदा मां कहा था।
     स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण ने सत्य का ज्ञान कराया और उन्हें विवेकानंद ने अपनी आत्मकथा की प्रथम भाग में ही मां के महत्व को रेखांकित किया है ।
 मित्रों मेरी मां भी बरसों पहले चिर यात्रा पर निकल चुकी है लेकिन महसूस तो यह होता है कि वह साथ कभी-कभी साथ होने का एहसास भी कराती है मां...! रगों में उसका रक्त दौड़ता है चिंतन में उसकी बातें मस्तिष्क में दुनिया को समझ पाने के लिए जो रेखाचित्र मान्य बनाए थे वह आज तक मौजूद हैं ।
      मां जन्म से अब तक मौजूद है किसी ना किसी स्वरूप में ईश्वर का एहसास करने की आज मैंने बहुत कोशिश की सोचता रहा कुछ ध्यान मग्न हो जाओ लेकिन हो ना सका कारण ईश्वर का एहसास करना बेहद कठिन है लेकिन मां एक ऐसी सृजक है जिसका एहसास आप आसानी से कर सकते हैं उसके साथ होने पर भी और अगर वह अनंत यात्रा पर कुछ कर गई हो तो भी मां सर्वथा साथ ही होती है ।

3.12.18

अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस 2018 पर विशेष आलेख



आज भी दिव्यांगों के लिए केवल संवेदन शीलता का भाव तो देखता हूँ परन्तु जब कभी प्रथम पंक्ति में खड़े होने की बात होती है अधिकांश नाक भौं सिकोड़ते  नजर आते हैं इसके मैंने कई उदाहरण देखें हैं भुक्तभोगी भी रहा हूं कुछ लोगों का शिकार भी बना हूं मैं जानता हूं कि यह कह कर मैं बहुत बड़ा खतरा मोल ले रहा हूं लेकिन यह भी सत्य है कि इसे बड़ी संख्या उन लोगों की है जो दिव्यांग ता को एक बाधा नहीं मानते .
मित्रों ने मुझे बहुत शक्ति दी है परिवार ने बहुत शक्ति दिए लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर पाते की मैं उनके बराबर खड़ा हो सकता आप भी देखें सोचें सशक्तिकरण का अर्थ क्या है कुछ लोग इतने नकारात्मक होते हैं वे हताशा के कुएं में ढकेलने  के के लिए पूरी तरह कोशिश किया करते हैं ।
 यद्यपि मैं यह बात इसलिए सामने नहीं रख रहा हूं यह हाथ से मेरे साथ हुए बल्कि यह इसलिए सामने रखा जा रहा है कि अगर एक ही व्यक्ति किसी दिव्यांग के प्रति ऐसा भाव रखता है तो वह वास्तव में दिव्यांग है ।
पिछले 2 महीनों में  मुझे  बहुत अच्छे अनुभव हुए हैं जिससे मैं अभिभूत हूं ।
पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कुछ लोग ठीक उसी दौर में नकारात्मक वातावरण बनाने से ना
चूके जो कि सामान्यत है कोई भी व्यक्ति नहीं बनाता है ।  कुछ तो इस बात को स्वीकार ने के लिए भी तैयार नहीं कि वे मेरे मार्गदर्शन में भी काम करें ।
लेकिन अच्छे लोगों की कमी नहीं है अच्छे और बुरे लोगों के बीच एक रास्ता गुजरता है उस रास्ते का नाम है साहस का रास्ता साहस के रास्ते पर चलते हुए मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं हुआ कि मैं यहां सही हूं या वहां गलत था ।
सही और गलत के इस अनुक्रम में पहचाने गए बहुत से  वो लोग जिनकी कथनी और करनी के बीच एक बड़ी विचित्र सी दूरी है ।
 सूरदास प्रोफेसर हॉकिंस और भी कई इतना अधिक संघर्ष कर  दिलों में बस गए जो संघर्ष सामान्य आदमी नहीं कर पाता ।
 सच कहूं जब हमें कुछ करना होता है तो हम बेहद युक्तियों का सहारा लेते हैं हमें बहुत सारी व्यवस्थाएं उस काम तक पहुंचने के लिए करनी होती है उसके बाद काम आसान हो जाता है सामान्य के साथ में यह संभव नहीं है वे सामान्य परिस्थिति में ही काम कर सकते हैं सच मानिए दिव्यांग असामान्य परिस्थिति में कार्य करने के लिए अपने आप को तैयार कर लेते हैं ।
आप जानते हैं क्यों ऊंट की गर्दन लंबी क्यों होती है ?
 सच बताऊं कटीली झाड़ियां ऊंचाई पर होती थी और ऊंट ने परिस्थिति को अपने कंट्रोल में किया ना कि वह परिस्थिति से नियंत्रित रहा । अगर परिस्थिति से नियंत्रित होता तो कोई भी ऊंट जिंदा नहीं रह पाता एक समूची प्रजाति का अंत जाता लेकिन सदियों से विश्व में सी फॉर कैमल के नाम से पहचानी जा रही है बच्चे पढ़ रहे हैं ,  अगर आर्केटिक के भालूओं के बारे में सोचें  तो आप समझ जाएंगे की ऐसी जगहों पर जहां हम जा नहीं सकते वहां कोई प्रजाति इतराती इठलाती जीवित है ।
मित्रों असामान्य शारीरिक परिस्थितियों को कमतर नापना घोर मानवीय भूल है अष्टावक्र पर हंसकर समाज को एक अद्भुत ग्रंथ उपहार स्वरूप मिला ।  अष्टावक्र की तरह असामान्य से दिखने वाले ब्राम्हण चाणक्य ने क्या कर डाला आप खुद ही समझ सकते हैं ।
 मैं असामान्य नहीं पर मैं सामान्य भी नहीं मुझे सामान्य लोगों से स्पर्धा भी नहीं है पर अपेक्षा अवश्य है और वह है साम्य की अपेक्षा  वैसे आप चाहे तो दे चाहे तो ना दे हासिल तो हम कर ही लेंगे हमें किसी से भय नहीं है चलिए ठीक है उन मित्रों को मैं आज अपनी यह पोस्ट ट्रेक कर रहा हूं जिन्होंने मुझे बनाया है और उन मित्रों को भी चेक करने की कोशिश करूंगा जिनके दिल में कहीं ना कहीं एक काला चोर बसता है दिव्यांगों के सशक्तिकरण को लेकर वे तो स्वयं के अलावा किसी को श्रेष्ठ नहीं मानते दिव्यांगों में श्रेष्ठता साबित करने की लालसा नहीं होती लेकिन मानसिक दिव्यांग बेशक श्रेष्ठता की ओर बिना किसी कारण दौड़ते हैं ईश्वर उन सबको माफ करना जिन्होंने मुझे यह लेख लिखने के लिए बाद किया विश्व दिव्यांग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...