हां सदमा तो लगा है सुनकर
हादसा देखा नहीं है
न तो साथ मेरे जुड़ती है कोई भी कहानी
इस हादसे जैसी......!!
मग़र नि:शब्द क्यों हूं..?
सोचता हूं अपने चेहरे पे
सहजता लांऊ कैसे ?
मैं जो महसूस करता हूं
कहो बतलाऊं कैसे..?
वो जितना रोई होगी बस में दिल्ली वाली वो लड़की
मेरी आंखों के आंसू भी सुखाए उसी पगली ने
न मैं जानता उसे न पहचानता हूं मैं ?
क्या पूछा -"कि रोया क्यूं मैं..?"
निरे जाहिल हो किसी पीर तुम जानोगे कैसे
ध्यान से सुनना उसी चीख
सबों तक आ रही अब भी
तुम्हारे तक नहीं आई
तो क्या तुम भी सियासी हो..?
सियासी भी कई भीगे थे सर-ओ-पा तब
देखा तो होगा ?
चलो छोड़ो न पूछो मुझसे
वो कौन है क्या है तुम्हारी ?
तो सुन लो जानता नहीं में उसे रत्ती भर
खूब रोया जी भर के
दिन भर ... हुक उठती थी मेरे मन में
मेरे माथे पे बेचैनियां
नाचतीं दिन भर !
मेरा तो झुका है
क्या तुम्हारा
झुकता नहीं है सर..?
सुनो तुम भी.. ध्यान से
दिल्ली से देशभर में गूँजतीं चीखें
ज्योति सिंह : फोटो - विकीपीडिया से |
हर तरफ़ से एक सी आतीं.. जब तब
तुम सुन नहीं पाते सुनते हो तो शायद
समझ में आतीं नहीं तुमको
समझ आई तो फ़िर किसकी है चीखें ?
ये तुम सोचते होगे
चलो अच्छा है जानी पहचानी नहीं थीं ये चीखें !!
हरेक बेटी की आवाज़ों फ़र्क करते हो
दिमागी हो अपने मासूम दिल से तर्क करते हो..?
हमें सुनना है हरेक आवाज़ को
अपनी समझ के अब
अभी नहीं तो बताओ
प्रतीक्षा करोगे कब तक
किसी पहचानी हुई आवाज़ का
रस्ता न तकना तुम
वरना देर हो जाएगी
ये बात समझना तुम !!