श्री शैलेंद्र अत्रे की कविता*
*" कन्यादान नहीं करूंगा "*
जाओ , मैं नहीं मानता इसे ,
क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,
जिसको दान में दे दूँ ;
मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में ,
पति के साथ मिलकर निभाना तुम ,
मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा ,
आज से तुम्हारे दो घर ,
जब जी चाहे आना तुम ,
जहाँ जा रही हो ,
खूब प्यार बरसाना तुम ,
सब को अपना बनाना तुम ,
पर कभी भी ,
न मर मर के जीना ,
न जी जी के मरना तुम ,
तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,
ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम ,
न तुम बेचारी , न अबला ,
खुद को असहाय कभी न समझना तुम ,
मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें ,
मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ ,
उसे बखूबी निभाना तुम .................
*- एक नयी सोच एक नयी पहल*