21.12.16

भ्रमर दंश सहे कितने, उसको कैसे कहो, कहूंगा ?

आभार :- नितिन कुमार पामिस्ट 

  एक अकेला कँवल ताल में,  संबंधों की रास खोजता !
     रोज़ त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!

बहता दरिया  चुहलबाज़ है,
 तिनका तिनका छीन कँवल से ,
दौड़ लगा देता है अक्सर
,   पागल सा फिर त्राण  मसल के ! 
है सबका सरोज प्रिय किन्तु  
,
 उसे दर्द क्या.? कौन सोचता !!
     एक अकेला कँवल ताल में,  संबंधों की रास खोजता !

रात कुमुदनी जागेगी तब,  मैं विश्रामागार रहूँगा
भ्रमर दंश सहे कितने, उसको कैसे कहो, कहूंगा ?
कैसे पीढा व्यक्त करूंगा अभिव्यक्ति की राह खोजता !!
              जाग भोर की प्रथम किरन से, अंतिम तक मैं संत्रास भोगता !

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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