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मोबाइल में व्यस्त हो गया : सौरभ पारे

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                      रेखा चित्र : शुभमराज  अहिरवार बालश्री एवार्डी ( इंजीनियर सौरभ पारे मेरे भांजे हैं ज्ञानगंगा कालेज के लेक्चरर.. सौरभ अपने पापा की तरह ही संगीत में रमे रहते हैं उनका छोटा   सा ट्रेवलाग पेश है )      शाम के साढ़े छः बज रहे थे , दिन भर उमस भरी धूप के बाद जो बादल छाए थे , वो अब ढलते सूरज की रौशनी में लाल लाल हो गए थे।   यों तो सफर सिर्फ पांच घंटे का था , पर अभी थोड़ा लंबा लग रहा था। साथ वाली सीट पर एक सज्जन बैठे हुए थे और सामने उनकी धर्मपत्नी। लेखक :- इंजीनियर सौरभ पारे    शुरुआत में तो हम सब शांत ही थे , मैंने तो सोच भी लिया था कि कु छ देर में मोबाइल पे मूवी लगाऊंगा और समय काट लूंगा , पर मेरे एक सवाल ने मेरे इस प्लान को सार्थक नहीं होने दिया। "कहाँ तक जायेंगे आप ?" , इस एक सवाल ने बातों की सिलाई खोल दी ।  कमीज से बाहर निकले हुए धागे को खींच दे तो सिलाई निकलने लगती है और धीरे धीरे उधड़ जाती है , ठीक वैसे ही मेरे इस सवाल ने उन सज्जन की झिझक मिटा दी और बातो का सिलसिला चल निकला रेलगाडी की रफ़्तार को चुनौती देता हुआ।   चर्चा में पता चला कि वो स