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रविवार, अगस्त 28, 2016

दाना मांझी बनाम : सरकार मीडिया और सिस्टम

पलपल इंडिया पर प्रकाशित समाचार देखिये   दाना मांझी द्वारा पत्नी की लाश ढोते हुई तस्वीर ने पूरे देश में हलचल मचा कर रख दी. कालांहडी के भवानीपुरा के हॉस्पिटल में दाना माझी को अपनी पत्नी की लाश ढोने के लिए एंबुलेंस न मिलने पर सिस्टम की भी खूब आलोचना हुई.
तस्वीर के सामने आने के बाद जांच के आदेश दिए गए, विरोध-प्रदर्शन किए गए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाए जाने का आश्वासन भी दिए गए. लेकिन अब खुद उस शख्स ने सामने आकर कहा है कि उसने किसी से मदद नहीं मांगी थी. उसने कहा कि उसकी हालत उस वक्त बहुत दयनीय थी और उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.
माझी ने बताया कि उसने खुद किसी से मदद नहीं मांगी थी. उसने हॉस्पिटल प्रशासन को भी सूचित नहीं किया था और अपनी पत्नी की लाश लेकर वह चुपचाप निकल पड़ा था. यहां तक कि उसने गांव तक पत्नी के शव को ले जाने के लिए भी किसी ग्रामीण से भी मदद नहीं मांगी थी. जब मुझे पता चला कि अब वह जीवित नहीं बची है तो मैं बिना किसी को कुछ बताए शव को ले जाने लगा. उस वक्त फीमेल वार्ड में कोई अटेंडेंट मौजूद नहीं था इसलिए मैंने खुद ही शव को घर तक कंधे पर ले जाने का फैसला किया.
पत्नी की मौत के बाद मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था और मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए. मैंने हॉस्पिटल से भी अपनी पत्नी के शव को ले जाने के लिए वाहन की मांग नहीं की थी.
ये बात सही है पर सही ये भी है कि –
1.      हस्पताल से शव ले जाते वक्त हस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था क्या थी ?
2.     टी बी की बीमारी ग्रस्त  अभाग देई की मृत्यू के बाद शव की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी न निबाहने के पीछे  मंशा क्या थी.
रवीश की मानें तो बेशक मीडिया ने अपनी जवाबदारी बखूबी निभाई वास्तव में उनने एक ओर उनने तंत्र को जगाने की कोशिशें भी की थीं इस बात की कई सूत्रों से पुष्टि भी हुई .
इस घटना पर  मीडियाकर्मीयों की भूमिका संदिग्ध नहीं पाई गई .  बेशक पुलित्ज्ज़र सम्मान प्राप्त  केविन कार्ट की तरह काम नहीं किया    
स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवस्थागत कमियों से इंकार किस आधार पर किया जावे. यह स्थिति समूचे भारत में है एक सी इसकी पुष्टि  हमारे मध्यप्रदेश की एक घटना से होती है  आपको याद होगा  25 मार्च 2016 को  दमोह कलेक्टर श्री श्रीनिवास शर्मा  की माता जी को भी  जबलपुर के लिए रिफर्ड अपनी माँ को जबलपुर के अस्पताल लाने के लिए इक्यूप्ड एम्बुलेंस न मिली  और उनका नि:धन हो गया था. 
आइये  सोचें कि स्वास्थ्य सेवाओं अथवा अन्य कल्याणकारी योजनाओं में मिशन-स्प्रिट क्यों नहीं ? ये सवाल आपके सामने  रख रहा हूँ...  

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