जिनके
लिए कोई साहित्यकार लिखता है वो या तो अनपढ़ होता है अथवा अत्यधिक व्यस्त या फिर इतना अहंकारी मानो सैकड़ो रावण समाए हुए हैं उनमें . आज के दौर में पढ़ने वालों की तादात कम ही है .
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मुझे उन चुगली पसन्द लोगों से भले वो जानवर लगतें हैं, जो चुगलखोरी के शगल से खुद को बचा लेते हैं । इसके बदले वे जुगाली करते हैं । अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने वालों को आप किसी तरह की सजा दें न दें कृपया उनके सामने केवल ऐसे जानवरों की तारीफ जरूर कीजिये । कम-से-कम इंसानी नस्ल किसी बहाने तो सुधर जाए। आप सोच रहे होंगें, मैं भी किसी की चुगली कर रहा हूँ, सो सच है परन्तु अर्ध-सत्य है !
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*गिरीश बिल्लोरे मुकुल* |
मुझे उन चुगली पसन्द लोगों से भले वो जानवर लगतें हैं, जो चुगलखोरी के शगल से खुद को बचा लेते हैं । इसके बदले वे जुगाली करते हैं । अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने वालों को आप किसी तरह की सजा दें न दें कृपया उनके सामने केवल ऐसे जानवरों की तारीफ जरूर कीजिये । कम-से-कम इंसानी नस्ल किसी बहाने तो सुधर जाए। आप सोच रहे होंगें, मैं भी किसी की चुगली कर रहा हूँ, सो सच है परन्तु अर्ध-सत्य है !
मैं
तो ये चुगली करने वालों की नस्ल से चुगली के समूल विनिष्टीकरण की दिशा में किया
गया एक प्रयास करने में जुटा हूँ । अगर मैं किसी का नाम लेकर कुछ कहूँ तो चुगली
समझिये । यहाँ उन कान से देखने वाले लोगों को भी जीते जी श्रद्धांजलि अर्पित करना
चाहूँगा जो गांधारी बन पति धृतराष्ट्र का अनुकरण करते हुए आज भी अपनी आँखे पट्टी
से बांध के कौरवों का पालन-पोषण कर रहें हैं। सचमुच उनकी ''चतुरी जिन्दगी`` में मेरा
कोई हस्तक्षेप कतई नहीं है और होना भी नहीं चाहिए ! पर एक फिल्म की कल्पना कीजिए,
जिसमें विलेन नहीं हो, हुजूर फिल्म को कौन
फिल्म मानेगा ? अपने आप को हीरो-साबित करने के लिए मुझे या
मुझ जैसों को विलेन बना के पहले पेश करते हैं । फिर अपनी जोधागिरी का एकाध नमूना
बताते हुये यश अर्जित करने के मरे जाते हैं।
ऐसा हर जगह हो रहा है हम-आप में ऐसे अर्जुनों की तलाश है, जो सटीक एवं समय पे निशाना साधे हमें चुगलखोरी को दुनियां से नेस्तनाबूत जो करना है आईए हम सब एकजुट हो जाएँ- इन चुगलखोरों के खिलाफ!
''चुगली` का बीजारोपण माँ-बाप करते हैं- अपनी औलादों में बचपने से-एक उदाहरण देखें, ''क्यों बिटिया, शर्मा आंटी के घर गई थी``, ''हाँ मम्मी शर्मा आंटी के घर कोई अंकल बैठे थे``।
अब 'अंकल और शर्मा आंटी` के बीच फ्रायडी-विजन से देखती मैडम अपनी पुत्री से और अधिक जानकारी जुटाने प्रेरित किया जाओ अंकल का इतिहास, उनकी नागरिकता, उनका भूगोल पता लगाओ और यहीं से शुरू होता है चुगलखोरी का पहला पाठ जहां बालमन में चुगली के वायरस प्रविष्ट कराए जातें हैं ।
इसमें केवल माँ ही उत्तरदायित्व निभाती है- ये भी एक तरह का अर्द्धसत्य है । पूर्ण सत्य यह है कि ''चुगलखोरी के कीड़े के वाहक पिता भी हुआ करते हैं``
ऐसा हर जगह हो रहा है हम-आप में ऐसे अर्जुनों की तलाश है, जो सटीक एवं समय पे निशाना साधे हमें चुगलखोरी को दुनियां से नेस्तनाबूत जो करना है आईए हम सब एकजुट हो जाएँ- इन चुगलखोरों के खिलाफ!
''चुगली` का बीजारोपण माँ-बाप करते हैं- अपनी औलादों में बचपने से-एक उदाहरण देखें, ''क्यों बिटिया, शर्मा आंटी के घर गई थी``, ''हाँ मम्मी शर्मा आंटी के घर कोई अंकल बैठे थे``।
अब 'अंकल और शर्मा आंटी` के बीच फ्रायडी-विजन से देखती मैडम अपनी पुत्री से और अधिक जानकारी जुटाने प्रेरित किया जाओ अंकल का इतिहास, उनकी नागरिकता, उनका भूगोल पता लगाओ और यहीं से शुरू होता है चुगलखोरी का पहला पाठ जहां बालमन में चुगली के वायरस प्रविष्ट कराए जातें हैं ।
इसमें केवल माँ ही उत्तरदायित्व निभाती है- ये भी एक तरह का अर्द्धसत्य है । पूर्ण सत्य यह है कि ''चुगलखोरी के कीड़े के वाहक पिता भी हुआ करते हैं``
मेरे दफ्त़र में आकर चुगली करने वाला पवित्र धवल लिबास में
आया वो व्यक्ति मुझे अच्छी तरह याद है, जो मेरे मातहत गाँव में काम करने वाली कर्मचारी से रूष्ट था।
उसकी विजय हुई यह जानकार कि मैं उसकी ''शिकायत उर्फ चुगली`` पर ध्यान दूँगा।
स्वयं गाँव का भ्रमण करने पर पाया कि 'धवल से पवित्र वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति के अलावा सारा गांव उस विधवा महिला को देवी की तरह पूजता है और यही उसकी चुगली का मूल कारण है ।
उसकी विजय हुई यह जानकार कि मैं उसकी ''शिकायत उर्फ चुगली`` पर ध्यान दूँगा।
स्वयं गाँव का भ्रमण करने पर पाया कि 'धवल से पवित्र वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति के अलावा सारा गांव उस विधवा महिला को देवी की तरह पूजता है और यही उसकी चुगली का मूल कारण है ।
मित्रों, दफ्तरों
में, बैठकों में, फोरमस् में, इस प्रयोग को करने से बड़े-बड़े की चुगलखोरों की चुगलखोरी का अंत सहज ही
हो जाता है। चुगली कमीने पन गुप का जीवाणु है, जिसने कईयों को तख्त से उठा फेंका है। इसका वाहक बेहद मीठा, आकर्षक, प्रभावशाली व्यतित्व वाली मानवीय काया का
धारक हो सकता है। चुगली को कानूनी जामा भी पहनाया गया है ।
मियाँ फत्ते लाल एंड कंपनी पता नहीं गिरी से काहे खार खाए
बैठी थी बस अचानक उनने एक टीम बनाई अपने साथ कई हाँ हुंकारा भरने वालों की एक चार
की गारद लेकर मंत्री के पास पहुंचा और खुद को सत्यवादी हरिश्चंद्र का पुनर्जन्म साबित कर लगा चुगलखोरी करने . बाकायदा
चुगली हुई भी पर दीवारों के कान से होते हुए बाकायदा व्हाया कानों कान सर्वव्यापी
हो गई . ये अलग बात है गिरी पर कुछ
प्रशासनिक फायर हुए पर ज्यों गिरी ने हूबहू चुगली को बयाँ किया तो सच मानिए
हजूर के बरसों से पीला पलाए तोते फुर्र हो
गए इतना ही नहीं मोहल्ले के तोते भी संग साथ फुर्र हुए.
सियासत का तो मूलाधार है ये चुगलियाँ । जहाँ सौभाग्यशाली लोगों को ही इससे बच सकने का
मौका मिलता है जिनको साक्षात प्रभू का आशीर्वाद मिला हो. वरना क़मोबेस सभी लोग इस ''चुगली`` के शिकार हो ही जाते हैं। उधर समाजी
रिवायतों की तो मत पूछिए - ''चुगली के बिना संबंध बनते ही
नहीं । रहा तंत्र का सवाल सो - ''चुगली को शासन के हित में
जारी सूचना की शक्ल में पेश करने वाले अधिकारी कर्मचारी, सफल
एवं श्रेष्ठ समझे जाते हैं । अरे हाँ बताना ही भूल गया कि मियाँ याहया खान से लेकर
मियाँ परवेज़ मुशर्रफ अब नवाज़ शरीफ तक अपने अपने आकाओं से भारत की चुगलियाँ किया
करते हैं जेईच्च इंटरनॅशनल सत्य है.
कारण जो भी हो- चुगली एक खतरनाक रोग है । यदि इसे आप पनपने
नहीं देना चाहते ''एण्टी-चुगली-ड्राप`` की दो बूंदे अवश्य देनी होगी । हमें ''पल्स पोलियो``
अभियानों की तरह ''चुगलखोरी उन्मूलन अभियान``
चलाने चाहिए । शासकीय कार्यालयों में इस अभियान के चलाने की बेहद
जरूरत है।
मेरे दृष्टिकोण से आप सभी एकजुट होकर इस राष्ट्रीय अभियान
को अपना लीजिए। अभियान के लिये-उन एन.जी.ओ. का सहयोग जुटाना न भूलें, जो अपने संगठनों के कार्यो की श्रेष्ठता
सिद्ध करने दूसरों की (विशेषकर सरकारी सिस्टम की) चुगली करते हर फोरम पे नज़र आते
हैं।
मित्रों! साहित्य, संस्कृति, कला, व्यापार, रोजिया चैनल, आदि सभी क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर हमें चुगली से निज़ात पानी है। और हाँ जो चुगलियाँ गाँव से शहर के दफ्तरों में साहबों के पास लाई जातीं हैं। उनके वाहक भी हमारे प्रमुख लक्ष्य होने चाहिए ।
मित्रों! साहित्य, संस्कृति, कला, व्यापार, रोजिया चैनल, आदि सभी क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर हमें चुगली से निज़ात पानी है। और हाँ जो चुगलियाँ गाँव से शहर के दफ्तरों में साहबों के पास लाई जातीं हैं। उनके वाहक भी हमारे प्रमुख लक्ष्य होने चाहिए ।
कैसे पिलाएँ चुगली की दो बूंदे-''सबसे पहले लक्ष्य को पहचानें, उसे कांफिडेन्स में लें`` और उसका मुँह खुलवाएँ ।
बेहतर ढंग से सुने । जिसकी चुगली की जा रही
है-उसे उसके सामने ले आएँ । फिर हौले से चुगलखोर की कही बातों में से एक दो बातें
बूँदों की तरह सार्वजनिक करने की शुरूआत करें।``
इससे चुगलखोर के वस्त्र स्वयम् ही ढीले पड़ने लगेंगें। हाथ
पाँव का फूलना, सर झुका लेना, माथा पकड़ना या हड़बड़ाकर ''हाँ...हाँ...हाँ....नहीं...नहीं..``
की रट लगाना बीमारी की समाप्ति के सहज लक्षण होते हैं।
{लेखक स्वयं एक सरकारी मशीनरी का हिस्सा है }