1.8.16

चंद शेर करीब दोस्तों के लिए

शायर नहीं मुकुल कह देना है लोहार !!

जिसको मेरी मैयत में चलने का शौक था 
मेरी तीमारदारी में सब आए उसके बाद ।
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पट्टी चला दो या कि अखबारों में भर दो
ज़िंदा ही रहेगा मुकुल हर कोशिशों के बाद ।
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मेरी लाश का मुतमईन मुआयना किया
डर था उसे गोया कि ज़िंदा तो मैं नहीं ।
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सागर ज़मीन फलक चाँद और सितारे
सब कुछ लुटाया मुझपे जब काम कोई था !
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कुछ तंज़ शेर दोस्तों ने मेरे क्या सुने
कहने लगे मुकुल जी, चलो कहवा घर चलें ?
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दिल पे लगी हो बात तो सह लेना मेरे यार
शायर नहीं मुकुल कह देना है लोहार !!
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*गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”*


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