सरकती रात से सहर तक जागता हूँ मैं
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हर इक लम्हा तुम्ही को देखा लजाते
देखा !!
वही लम्हा तुम्हारी हसरतें करता है बयाँ
इश्क में भीग के बैठी हो – तुम जाने कहाँ
अपनी आँखों पे आकाश उठाती होगी -
उन सितारों को आँखों में समाते
देखा..!
हौले-हौले तुम्हारा इस तरह करीब आना
तन्हा रातों में मेरे ख्वाब में सिमट
जाना
यक-ब-यक जागके, खुद से ही लिपटते देखा
जब भी आँखें लगीं तुम्हें ख्वाब आते
देखा !!
कुण्डियों से बहुत तेज़ खनकते कंगन
चुनरिया थी कि प्रीत का महकता परचम
मेरी मौजूदगी का तुमको जो एहसास हुआ –
हथेलियों से चेहरे को छिपाते देखा ..
सरकती रात से सहर तक जागता हूँ मैं
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हर इक लम्हा तुम्ही को देखा लजाते
देखा !!
*गिरीश बिल्लोरे
मुकुल**