3.6.16

सारे बंधन सहज टूटते, आँचल में छुप जाने में ..!!

तुमने दर्द सहा ही होगा, इस दुनियाँ में लाने में .....
कितने जतन किये होंगे माँ- जीना हमको सिखलाने में !!

बोली अक्षर रंग स्वाद सब से परिचय का कारण तुम
सारी पीढा और कष्ट का माँ हो एक निवारण तुम !!
जिद्दी बचपन को देर न लगती माँ तुमको समझाने में !!

जन्म पर्व मेरा माँ तुम बिन कैसे संभव हो पाएगा
आंचल तट सचमुच माँ जीवन अभिनव हो जाएगा
हमको मिलता सुख देवों सा, बस तेरे मुसकाने में !!

ईश्वर से पहले माँ तुम हो, ईश्वर के पश्चात  भी तुम
लोरी हो तुम, हर गीत तुम्ही , गीतों का हर राग भी तुम  
सारे बंधन सहज टूटते, आँचल में छुप जाने में ..!!

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