23.5.16

आज के बुद्धों को बुद्धुओं की ज़रूरत

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यारों से मिले दर्द सम्हाले हुए हूँ मैं
कमा रहा हूँ सूद वापसी के वास्ते
  मित्रो नमस्कार कल बुद्ध याद किये गए इसी क्रम में मेरा भी तथागत को नमन । बुद्ध के बाद हज़ारों हज़ार बुद्धों का अवतरण हुआ , जो समाज को बदल देने के लिए बुद्ध बने और  छा गए  धारा पर । फिर जो हुआ उस पर अधिक न लिखूंगा । फिर आया वो समय जब अंतहीन बुद्ध कतारबद्ध आते नज़र आ रहे हैं , जी ये है वर्तमान समय । आप कहोगे कि हम बुद्ध के बाद सीधे  बिना ब्रेक लगाए वर्तमान काल में आ गए सो हे सुधि पाठको हम कम याददास्त की बीमारी के शिकार हैं हम यानी मैं और आप भी ! सो अनावश्यक रूप से लिख कर आपको काहे इरीटेड करूं  ।
हां तो भारी संख्या में निकले  ये नए युग के बुद्ध किसी न किसी अबुद्ध अथवा बुद्धू  को पकड़ते उसे कुछ समय साथ रखते और यकीन मानिए  कुछ ही दिनों में ये सारे अबुद्ध यानी बुद्धू भी बुद्ध नज़र आने लगता ।
  सच मानिए जिसे देखो कुछ न कुछ ज्ञान वितरण कार्यक्रम से जुड़ा नज़र आता है ।कल मेरा सर दुःख रहा था सलाह 17 मिलीं इलाज़ 0 मिला । यानी 17 बुद्ध मुझे बुद्धू साबित कर रवाना हो गए अपने राम ने पेन किलर खाया और आराम में निकले । अब हमको भी बुद्धत्व मिल गया सो अगले दिन 17 मिले तो हमने सभी को बताया कि - वाह क्या बात है आपका नुस्खा अपनाया और हमारा सरदर्द  तुरन्त गायब हुआ ।
   सब के सब बुद्ध बेहद आशान्वित भाव से मुझमें अपना "चेला" तलाशते ।
    आज सुबह जब सड़क पे निकला तो मुझे लगा 17 बुद्ध मेरे पीछे आ रहे हैं मानें न मानें हम ने फैसला किया इस सबसे बात करूंगा अवश्य सो मैंने उनको अपने पीछे आने का इशारा कर आने को कहा । और घर से रानीताल स्टेडियम की तरफ भागा । ज्यों ही स्टेडियम के मध्यभाग में खड़े होकर मैंने देखा तो 17 के 17 सौ लोग मुझे घेर खड़े नज़र आए ।
  सबके हाथ मेरी ओर लगातार लंबे होते हुए आते नज़र आ रहे थे । इतने हाथ मेरी बोटियाँ नोंच लेने के लिए पर्याप्त थे । मित्रो इस बीच  अपने सर का विग हटा कर हमने भी तथागत भाव से उनको घूरा और हाथ आकाश की और उठाया तभी अज्ञात चमत्कार से हमारे हाथ में वृद्धि शुरू हुई । 1700 बुद्धों के हाथ सामान्य स्थिति में आ गए अब हम सही के बुद्ध साबित होने लगे बाकी सब अबुद्ध  ।
इस कथा का सत्य असत्य होना आप तय करते रहिये यह भी आप को ही तय करना है की इस संस्मरण में हमने क्या कहा पर एक वास्तविकता बता दें कि आज हम दोपहर को अधिक दाल-चावल खाने की वज़ह से सो गए थे और  नींद खुली तो स्वप्न याह आया जो हमने लिख दिया .......

girishbillore@gmail.com

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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