15.5.16

महिला सशक्तिकरण के लिए वैदिक आज्ञाएँ : डा उमाशंकर नगायच

भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक परिवेश नारी के प्रति कभी भी नकारात्मक न था. इस मुद्दे की पड़ताल तब अधिक आवश्यक है जब सनातनी व्यवस्था के विरुद्ध एक मुहिम मुसलसल जारी हो . जब ये कहा जा रहा हो भारत में असहिष्णुता सर चढ़ के बोल रही है . न केवल मनु-स्मृति वरन सभी अन्य सनातनी  धार्मिक आज्ञाओं अनुदेशों को गलत ठहराया जा रहा हो तब ऐसे विमर्श की अनिवार्यता को  नकारा नहीं जा सकता .   विचार-कुम्भ उज्जैन से लौटकर मुझे महसूस हुआ कि- हम नारी विमर्श को आगे ले जाते समय देश की प्राचीन  एवं अर्वाचीन पृष्ठभूमि को अवश्य देखें . आयातित विचारों में सन्निहित  बिन्दुओं एवं  अनाधिकृत मुद्दों से इतर भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक परिवेश के पासंग पर रख कर विमर्श आवश्यक है . यह दायित्व  डा. नगायच ने बखूबी निबाहा है . आप आलेख अवश्य देखिये 
















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मेरे बारे में

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जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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