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लाल-टोपी बेचने वाले थके व्यापारी को पेड़ की छांह भा
गई थी उसने लट्टे में बंधे 4 रोट में से दो रोट सूते और ठंडे पानी से प्यास
बुझाई ... एक झपकी लेने की गरज से गठरी सिरहाना बनाया और लगा ख़ुर्र-ख़ुर्र
खुर्राटे भरने. तब तक बन्दरों के मुखिया टोपी पहन कर चेलों को भी टोपी पहना दी .
जागते ही व्यापारी ने अपने अपने सर की टोपी फैंकी सारे बंदरों ने वही किया अपने सर
की लाल-टोपियाँ ज़मीन पर फैंक दी .
सदियों
से नानी दादी की इस कहानी का अर्थ हर हिन्दुस्तानी के रक्त में बह रहा है. ........
रक्त जो ज़ेहन तक जाता है
जेहन जो उसे साफ़ करता है
जो मान्यताएं बदलता है...
ज़ेहन जो संवादी है ... उसे साफ़ रखो
जोड़ लो पुर्जा पुर्ज़ा
जिनको ज़रुरत है जोड़ने की ...!!
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मंगलवार, नवंबर 03, 2015
“लाल टोपी फैंक दी बंदरों ने ...!!”
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