25.10.15

“सूक्ष्म-पूंजी निर्माण में विफलताएं :कुछ कारण कुछ निदान ”


 विकासशीलता का सबसे बड़ा संकट “आय अर्जक का उत्पादकता में सहभाग न करना सकना ” है . अर्थात औसत आय अर्जित करने वाला कोई भी व्यक्ति अपने धन को पूंजी का स्वरुप देकर स्वयं के स्वामित्व में रखने असमर्थ है. जबकि भारतीय मान्यताओं के प्रभाव से उसकी अपेक्षा बचत के लिए प्रेरित तो करती है परन्तु परिस्थितियाँ आय-अर्जक के सर्वथा विपरीत होती है .
     “भारतीय वैदिक जीवन प्रणाली में जीवन में “अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष” का भौतिक अर्थ !”
अर्थ को सर्वोपरी रखते हुए जीवन के प्रारम्भ में ही नागरिक को अर्जन करने का संकेत स्पष्ट रूप से दिया गया है ... कि आप अपनी युक्तियों, साधनों, एवं पराक्रम (क्षमताओं  एवं स्किल ) से धन अर्जन कीजिये . जो आपके धर्म अर्थात सामाजिक-दायित्वों के निर्वहन जैसे परिवार-पोषण, सामाजिक दायित्वों के निर्वहन – दान, राजकीय लेनदारियों जैसे कर (टेक्स) , लगान  आदि का निपटान कीजिये . काम अर्थात अपनी आकांक्षाओं एवं ज़रूरतों  की प्रतिपूर्ति पर व्यय कीजिये, शेष धन को संग्रहीत कीजिये भविष्य की आसन्न ज़रूरतों के लिए और मुक्त रहिये किसी भी ऐसे भय से मोक्ष का भौतिक तात्पर्य सिर्फ यही  है.
यहाँ अध्यात्म एवं धर्म से इतर मैं अलग दृष्टि से सोच एवं लिख रहा हूँ  सुधिजन सच कितना है इसका निष्कर्ष आप पर छोड़ता हूँ....!
आप विनिमय प्रणाली के बाद के आर्थिक एवं व्यावसायिक विकास पर गौर कीजिये तो पाएंगे कि सामाजिक विकास में “वैयक्तिक सेक्टर” जिसका ज़िक्र प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2015 को  अमेरिकी यात्रा में किया की है की  सबसे बड़ी भूमिका रही . “वैयक्तिक सेक्टर”  ही आधार रहा है प्राचीन  भारतीय अर्थ व्यवस्था का . “वैयक्तिक सेक्टर” कहीं न कहीं सूक्ष्मपूंजी निर्माण की ओर इशारा है . स्वतन्त्रता के उपरांत नेहरू माडल बेशक एक अच्छी व्यवस्था कही जा सकती है वरना विश्व में भारत अल्प विकसित देशों की फेहरिस्त में शामिल रहता . किन्तु बाज़ार ने स्थानीय उत्पादों तक को हाई जैक कर “वैयक्तिक सेक्टर” को बेहद नुकसान पहुंचाया तो एकीकृत ग्रामीण विकास का कांसेप्ट लाकर सरकारी पहल ने स्थानीय उत्पादों को पुन: प्रतिष्ठित करने की कोशिश की यह भी किया गया कि की लघु-पूंजी सरकार ही देने लगी परन्तु स्थानीय उत्पादन में सकारात्मक प्रगति नहीं हुई कारण थे
1.     फैक्टरियों में बने बाज़ार के उत्पादों सापेक्ष मूल्य अधिक था
2.     फैक्टरियों में बने बाज़ार के उत्पादों सापेक्ष गुणवत्ता की दृष्टि से पीछे होना.
3.     कुटीर उत्पादकों में मार्केटिंग स्किल के ज्ञान का अभाव अथवा कमी
4.     कुटीर उत्पादकों द्वारा सामाजिक परम्पराओं के लिए उपलब्ध कराई गई पूंजी का विनियोग करना .
सन उन्नीस सौ नब्बे के बाद सरकारों ने स्वयं-सहायता-समूह आधारित आर्थिक कार्यक्रमों को आकार देने के प्रयास किये जो अप्रत्याशित रूप से सफल रहे हैं . न केवल पुरुष बल्कि महिलाओं को व्यावसायिकता एवं आर्थिक विकास का सामान रूप से मौका मिला . यहाँ इस तथ्य का ज़िक्र इस लिए किया गया कि “वैयक्तिक सेक्टर” के महत्व को समझा जा सके .
“वैयक्तिक सेक्टर” क्या है”
“वैयक्तिक सेक्टर” सूक्ष्म पूंजी निर्माण का साधन है . एक परिवार जिसमें 4-6 सदस्य हों तथा जितनी एक अथवा कुछेक मिलकर जो आय अर्जित करे तथा आय से पारिवारिक-पोषण के साथ बचत से सूक्ष्म पूंजी का निर्माण करें तथा  उसे विनिवेश करे . जो तात्कालिक अथवा दीर्घ अवधी के लिए हो परन्तु अब वो यह कर नहीं सकता क्योंकि –
1.     बदलते परिवेश में आवश्यकताएं अधिक हो रहीं है.
2.     आय का कम होना
3.     कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी के साथ बदलाव
4.     उत्पादों के उत्पादन मूल्य में अनावश्यक राशियों ( जैसे विज्ञापन व्यय, अत्यधिक कराधान लगाम-हीन लाभ की व्यवसायिक वृत्ति )  का जुड़ना
5.     चिकित्सा शिक्षा तथा अन्य सेवाओं के प्रबंधन के ऋण लेना
6.     बीमा एवं बैंकिंग सिस्टम अर्थ-संग्रहण करने प्रवृति से मुक्त न हो पाना हालांकि भारत सरकार ने इन दौनों बीमा एवं बैंकिंग सिस्टमस पर लगाम लगाईं है . जो बेशक सराहनीय भी है .
7.     भ्रष्टाचार     
हम आप जो सामान्य परिवारों के सदस्य हैं इस वज़ह से जहां एक ओर पूंजी निर्माता नहीं बन पाते वहीं दूसरी ओर आर्थिक रूप से सहज-संपन्न नहीं बन पाते जब तक कि कोई विशेष परिस्थिति न बन पाए. जब तक राज्य (अर्थ-व्यवस्था-नियंत्रक ईकाई) का हस्तक्षेप नहीं होता तब तक हम कर सकते लघु-पूंजी निर्माण की कोशिशें .
“तो फिर कैसे करें पूंजी निर्माण”
हम आपसे अनुत्पादक व्यय पर नियंत्रण का अनुरोध कर सकते हैं साथ ही  हमें विज्ञापनों से मोहित न रहने की शिक्षा बच्चों को देते  रहें .
पडौसी अथवा नातेदारों की आर्थिक सम्पन्नता जनित प्रतिश्पर्धा  से मुक्त रहें. मंहगी शादियाँ रोंके, आवश्यकतानुरूप साजो-सामान कपडे-लत्तों, पर व्यय करें, अनावश्यक संपन्न दिखने की कोशिशों से बचें . भ्रष्टाचार के समक्ष न झुकें . बचत की कोशिश करना तीन साल की आयु के बच्चों को सिखाने के लिए गुल्लक अवश्य खरीदें .
                         “निर्मित पूंजी का क्या करें ?”
हर कोई व्यक्ति किसी न किसी सेवा व्यवसाय के योग्य होता है अथवा निकटवर्ती समुदाय को अथवा धन की ज़रुरत पर अल्प-कालिक ऋण सुविधा मुहैया कराएं . किसी भी स्थिति में जितना संभव हो उत्पादकता आधारित व्ययों  के लिए सूक्ष्म-पूंजी का विनियोग करें . सेवा-आधारित व्यवसाय का दौर है . कोशिश हो सेवा-आधारित व्यवसाय जो कम पूंजी एवं श्रम से आरम्भ किये जा सकतें हैं में विनियोग करें .  


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