14.7.15

चंद शेर : गिरीश"मुकुल"


बदला ? कोई सवाल   नहीं  क्या लेके करूंगा
दिल जीतने निकला हूँ, दिल जीत ही लूंगा ..!!
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मेरे तुम्हारे बीच में क्या रफ़्तार का नाता ?
तुम तेज़ी से आ रहे हो मैं पर्वत सा खडा हूँ
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आओ कहीं मिल बैठ के बचपन को पुकारें
आएगा क्या हम जैसा ही छिप जाएगा कहीं
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मेरी ख़ाक बिखेर देना  हरियाली ही मिलेगी  
फसले - बहार हूँ, कोई  सेहरा नहीं हूँ मैं  !!
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दामन पे मेरे दाग ! ज़रा बच के निकलना
षडयंत्र तुम्हें तुम्हारे  कहीं याद न आएं  ?

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आँखों में मेरी  झौंक गया किरकिरी सी रेत
फिर आके पूछता है ज़रा रास्ता बताइये ?

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आँखों की किरकिरी हूँ वज़ह कोई तो होगी 
जा गुलबकावली का अर्क खोज के ले आ !

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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