बराक ओबामा के भारत
दौरे के बाद बराक ने अमेरिका में भारत में धार्मिक असहिष्णुता के इजाफे की
चिंता सताई . बराक साहेब की ही नहीं वरन हम सबकी चिंता यही है किन्तु जो बोलना जानते हैं वो ..! जो लिखना जानते हैं
वो .... एक मत होकर सेक्यूलर विचारधारा के
परदे की ओट से सदाचारी आवाजों को पागल तक कहने में नहीं हिचकते . क्या यही
सैक्यूलरिज्म है ? हम यदि भारत पर नज़र डालें तो पाते हैं कि विश्व के सापेक्ष भारत
अधिक धार्मिक रूप से सहिष्णु देश है . सनातन न तो उपनिवेश के ज़रिये विस्तारित हुआ
है न ही बंदूकों और तलवारों के ज़रिये .
इस बीच यदि हम ये समझाने के लिए यत्नरत हैं कि भाई हम सदियों से साथ साथ रह सकते
हैं ... तो क्या गलत कह रहें हैं . हम न तो आतंक के ज़रिये विचारधारा विस्तारित
करते हैं और न ही उपनिवेश के ज़रिये . राम अथवा कृष्ण को आप ने “मिथकीय पात्र” साबित किया है तो
उसके पीछे आपकी यह भावना थी कि इतिहास केवल उतना अंकित हो जितना कि आप चाहें .
इतिहास में न तो राम को दर्ज किया जावे न ही कृष्ण को ताकि कभी आप साबित कर सकें
कि मिथक-किसी धर्म के प्रणेता नहीं हो सकते .
चलिए मान भी लिया कि न राम थे न कृष्ण , तो फिर वेदों को भी मान्यता मत दीजिये
जिसके आधार पर आपने विज्ञान को विस्तार दिया . आयुर्वेद अर्थ-शास्त्र, संगीत,
खगोल, सब कुछ जो ताड़पत्रों पर लिखे वेदों में दर्ज हैं उसका अर्थ क्या है .... ?
हम केवल हिंदुत्व की बात नहीं करते हमें
सम्पूर्ण मानवता की चिंता है . हो भी क्यों न ... आज जब विश्व आतंक के साए में सहमा सहमा सा नज़र आ
रहा है तब हमें क्या सोचना चाहिए ...और न केवल सोचना चाहिए वरण हमें शंखनाद कर ही देना होगा आतंक के खिलाफ .
गांधी
सार्वकालिक सत्य है क्योंकि वो अहिंसा के प्रणेता हैं . किन्तु अहिंसा से हिंसा को किस हद तक रोका जा
सकता है जब की आतंकवाद ने सारी हदें पार कर दीं हों . मूर्तियाँ तोड़ कर खुद खुद को
चिस्थाई बनाने की कोशिशें , लोगों से बलात आस्था छीन कर मत परिवर्तन की कोशिशें
क्या मानव अधिकारों का अतिक्रमण नहीं है . मेरा मानना है कि ये न केवल अतिक्रमण है
वरन सार्वजनिक रूप से किये जाने वाले अपराध का प्रत्यक्ष प्रमाण है .
ऐसे अपराध जब विश्व के कोने कोने में पनपाए जा रहें
हों तब लेखक कैसे हास्य-व्यंग्य मनोरंजक आलेखन या प्रस्तुतीकरण करा सकता है . अगर
वो ऐसा कर रहा है तो बेहद स्वार्थी कहूंगा
उनको जो ऐसा कर रहे हैं . आज सोशल-मीडिया के ज़रिये चेतन भगत ने चिंता ज़ाहिर करती टिप्पणी
देखने में आई जिसे दुबारा नहीं लिख पा रही हूँ आप स्वयं देखें सच ही तो कहा है कि जब केवल एक धर्म होगा तो सेक्यूलारिज्म का
क्या होगा...? सवाल सही वक्त पर सटीक तरीके से किया गया
है . उनका विचार पॉलिटिकल होते हुए मानव-शास्त्रोक्त चिंतन अधिक है इसी वज़ह से
आलेख में शामिल कर रहा हूँ . चेतन की
चिंता हम सभी की चिंता है चाहे यजीदी हों, ख्रिस्त हों, सिख हों बौद्ध हों जैन
हों, पारसी हों सभी सहमे सहमें हैं . हम अपनी आस्था तो छोडिये बहन-बेटियों को भी न सुरक्षा दे पाएंगे यदि अतिवादियों के समर्थन में "सैक्यूलारिज़म" की झंडा बरदारी की गई. वास्तव में भारत में किसी वर्ग-विशेष को उकसाने के लिए सैक्यूलरिज्म का सहारा लिया जा रहा है . न कि मानवता की रक्षा के वास्ते . भारत में कई धर्मों को मानने वालों को एक साथ सह-अस्तित्व के साथ रहने का अच्छा अभ्यास है . किन्तु वैचारिक विपन्नों ने जी भर के अपने अपने रोट सकें हैं . ..... पर भारत में ज़फर का जग्गू के साथ जग्गू का जॉन के साथ जॉन का जसबीर के साथ जसबीर का जिनेद्र के साथ पक्के वाला नाता है जो शायद ही टूटेगा