डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी |
हम बहुत बड़े और काबिल लेखक/ समीक्षक/
टिप्पणीकार/ स्तम्भकार/ पत्रकार हैं- होते रहें। किसी की बला से। भला बताइए यह सब
कुछ होते हुए भी मैं एक गरीब पीड़ित को पुलिस महकमें में न्याय न दिला सकूँ, तब मेरी उपयोगिता और कथित रूप से बड़ा
होना उस पीड़ित के लिए क्या मायने रखेगा। कुछ दिनों पहले जी नहीं फरवरी 2015 के अन्तिम दिनों में
हमारे गाँव का एक सीधा-सादा और गरीब 65 वर्षीय कहाँर
जाति का टेकईराम मुझसे मिला था। उसको बड़ी आशा और अपेक्षाएँ थीं कि मैं उसकी 32 वर्षीया बेटी संगीता की दहेज हत्या
में नाम जद आरोपियों को पुलिस में पैरवी करके सलाखों के पीछे करवा दूँगा। यहाँ
बताना चाहूँगा कि संगीता की मौत का संवाद प्रमुखता से वेब/प्रिण्ट मीडिया में
प्रकाशित भी हुआ, जिसकी
रिपोर्टिंग रीता विश्वकर्मा जैसी धाकड़/ईमानदार और स्पष्टवादी पत्रकार ने की थी, लेकिन-23 फरवरी 2015 से इस आलेख के प्रकाशन तक संगीता दहेज हत्याकाण्ड का पूरा
प्रकरण ही पुलिस द्वारा ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। अब आप ही बताइए कि मेरा
पत्रकारिता जगत में वरिष्ठ और बड़ा होना उन गरीब माँ-बाप और मृतक संगीता के अन्य
परिजनों के लिए क्या मायने रखता है। जब भी खबरें पढ़ता हूँ कि अमुक थाना क्षेत्र के
अमुक स्थान पर दहेज हत्यारोपियों को पुलिस ने जेल भेजा, तब मेरा कथित रूप से बड़ा पत्रकार होना
खुद मुझे ही सालने लगता है। कई सक्रिय और पुलिस से अच्छे सम्बन्ध रखने वाले युवा
रिपोर्टर्स से कहा कि वह लोग संगीता देवी दहेज हत्या प्रकरण में हुई प्रगति के
बारे में पता करें तो वह लोग भी मेरी अपेक्षा के अनुरूप खरे नहीं उतरे- अब तो
मिलके व मोबाइल पर वार्ता करने से भी परहेज करने लगे। साहस करके एक दिन शहर
कोतवाली फोन मिलाया। दीवान जी को फोन करने का प्रयोजन बताया। उत्तर मिला कि उक्त
मामले में सी.ओ. सिटी दफ्तर से पता करने पर ही कोई जानकारी मिल सकती है। ‘सॉरी’ मामला दहेज हत्या का है, इसलिए उसकी जाँच सी.ओ. स्तर पर होने के उपरान्त पर्चा सी.ओ.
दफ्तर से ही कटेगा।बेहतर होगा कि उक्त दफ्तर से पता करे। फोन रख दिया जाता है।
मैंने सुन रखा था कि सी.ओ. सिटी की
कुर्सी पर एक तेज-तर्रार/ईमानदार युवा महिला विराजमान है। उम्मीद बढ़ी थी, यह भी विश्वास हो चला था कि महिला के
मामले में पुलिस अवश्य ही ईमादारी से सख्त कदम उठाएगी। धीरे-धीरे दो माह का समय
बीत गया। नतीजा सिफर ही दिख रहा है। यहाँ बता दें कि संगीता देवी (32) की लाश ऊँचे गाँव गौसपुर के करीब
मखदूमपुर गाँव के निकट रेलवे ट्रैक पर क्षत-विक्षत अवस्था में 23 फरवरी 2015 की प्रातः पाई गई थी। 23 फरवरी 2015 को थाना
कोतवाली अकबरपुर, जनपद-
अम्बेडकरनगर (उत्तर प्रदेश) के रोजनामचे पर मु.अ.सं.071/2015 धारा 498ए, 304बी, 201
आई.पी.सी. के तहत वादी टेकईराम कहांर पुत्र राम सुमेर कहांर निवासी ग्राम
अहलादे, थाना बेवाना, जनपद अम्बेडकरनगर (उ.प्र.) द्वारा दी
गई तहरीर पर मृतका संगीता देवी (32) के पति संतोष
कुमार धुरिया पुत्र छोटेलाल, ससुर छोटेलाल, सास नाम अज्ञात, ननद पुष्पा देवी 4 लोगों को उक्त प्रकरण में नामजद किया
गया था। आरोपी खुले आम घूम रहे हैं साथ ही टेकईराम मृतका के पिता एवं परिवार को
तरह-तरह से धमकियाँ भी दे रहे हैं। यही नहीं टेकई राम जो पहले सुलह-समझौता चाहता
था अब आरोपियों की हरकतों से तंग आकर उनको जेल की राह दिखाना चाहता है। इसीलिए
उसने लोवर कोर्ट जिला सत्र न्यायालय में वाद दायर कर दिया है, जिसकी पैरवी फौजादारी के एक जाने-माने
एवं महंगे वकील द्वारा की जा रही है।
मैंने पत्रकार रीता से कहा कि वह ही सी.ओ. स्तर पर जानकारी हासिल करे, तब उसने भी मुँह बिचका दिया और अफसोस जताया कि महिला पुलिस उपाधीक्षक से बात करना व्यर्थ है। कहने मात्र के लिए महिला (नारी) है। उसके बारे में सुना है कि वह लेडी पुलिस ऑफिसर घमण्डी स्वभाव की है। शायद उसको अपने ओहदे और आधुनिक नारीत्व पर घमण्ड है, सीधे मुँह किसी से बात नहीं करती। रीता ने कहा कि पहले जब उसके बारे में सुना नही था तब इच्छा हुई थी कि मैं भी महिला होने की वजह से सम्पर्क बनाऊँ बाद में उसके ओवर पुलिसिया हरकत से मन खिन्न हो गया। संगीता मरे या कोई अन्य नारी उस पर कोई असर नहीं होने वाला। मैं खामोश हो गया, फिर सोचने लगा कि जब एक नारी पुलिस अफसर का रवैय्या ऐसा है तब भला किसी महिला को न्याय कैसे मिल सकता है।
मुझे याद आने लगी ऐसी कुछ नारियाँ जो महिलाओं ही नहीं समाज के हर पीड़ितों के लिए फ्रण्ट बना लेती हैं, और संघर्ष करके न्याय दिलाने का हर सम्भव प्रयास करती हैं। उत्तर प्रदेश काडर के वरिष्ठ आई.पी.एस. अमिताभ ठाकुर जो वर्तमान में आई.जी. सिविल डिफेन्स हैं उनका परिवार तो इस तरह के मामले में जानकारी मिलने पर संघर्ष शुरू कर देता है। उनकी संहधर्मिणी डॉ. नूतन ठाकुर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। एन.जी.ओ. संचालित करने वाली इस सुशिक्षित महिला के कार्यों की प्रशंसा की जाती है। अब संगीता देवी दहेज हत्या के मामले में डॉ. नूतन ठाकुर और उनके पति अमिताभ ठाकुर से अपेक्षा करता हूँ कि यदि उन तक यह आलेख पहुँचे तो वह लोग कुछ सकारात्मक करेंगे।
मैंने पत्रकार रीता से कहा कि वह ही सी.ओ. स्तर पर जानकारी हासिल करे, तब उसने भी मुँह बिचका दिया और अफसोस जताया कि महिला पुलिस उपाधीक्षक से बात करना व्यर्थ है। कहने मात्र के लिए महिला (नारी) है। उसके बारे में सुना है कि वह लेडी पुलिस ऑफिसर घमण्डी स्वभाव की है। शायद उसको अपने ओहदे और आधुनिक नारीत्व पर घमण्ड है, सीधे मुँह किसी से बात नहीं करती। रीता ने कहा कि पहले जब उसके बारे में सुना नही था तब इच्छा हुई थी कि मैं भी महिला होने की वजह से सम्पर्क बनाऊँ बाद में उसके ओवर पुलिसिया हरकत से मन खिन्न हो गया। संगीता मरे या कोई अन्य नारी उस पर कोई असर नहीं होने वाला। मैं खामोश हो गया, फिर सोचने लगा कि जब एक नारी पुलिस अफसर का रवैय्या ऐसा है तब भला किसी महिला को न्याय कैसे मिल सकता है।
मुझे याद आने लगी ऐसी कुछ नारियाँ जो महिलाओं ही नहीं समाज के हर पीड़ितों के लिए फ्रण्ट बना लेती हैं, और संघर्ष करके न्याय दिलाने का हर सम्भव प्रयास करती हैं। उत्तर प्रदेश काडर के वरिष्ठ आई.पी.एस. अमिताभ ठाकुर जो वर्तमान में आई.जी. सिविल डिफेन्स हैं उनका परिवार तो इस तरह के मामले में जानकारी मिलने पर संघर्ष शुरू कर देता है। उनकी संहधर्मिणी डॉ. नूतन ठाकुर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। एन.जी.ओ. संचालित करने वाली इस सुशिक्षित महिला के कार्यों की प्रशंसा की जाती है। अब संगीता देवी दहेज हत्या के मामले में डॉ. नूतन ठाकुर और उनके पति अमिताभ ठाकुर से अपेक्षा करता हूँ कि यदि उन तक यह आलेख पहुँचे तो वह लोग कुछ सकारात्मक करेंगे।
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
प्रबन्ध सम्पादक
रेनबोन्यूज डॉट इन
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