31.3.15

पूरे शहर को मेरी कमियाँ गिना के आ



पूरे शहर को मेरी कमियाँ  गिना के आ

जितना भी  मुझसे बैर हो, दूना निभा के आ ।

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कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये

सब आए तू न आया  , मुलाक़ात के लिये  !

तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा ईंतज़ार है –

वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये !!

       चल दुश्मनी का ही सही रिश्ता निभा ने  आ 

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रंगरेज हूँ  हर रंग की तासीर से वाकिफ 

जो लाता  है दुआऐं मैं हूँ  वही काज़िद  ।

शफ़्फ़ाक हुआ करतीं  हैं झुकी डालियाँ मिलके 

इक तू ही मेरी हकीकत न वाकिफ  . 

       आ मेरी तासीर को आज़माने आ  .    

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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